मेघालय में देखने लायक स्थान

मेघालय पर्यटन
मेघालय एक छोटा राज्य है। यह ऊंचे-ऊंचे चीड़ के पेड़ों और बादलों का एक अंतहीन सिलसिला है। इसी वजह से इस राज्य का नाम “मेघालय” पड़ा है यानी मेघों (बादलों) का डेरा। अंग्रेजों को तो जैसे इस राज्य से प्रेम हो गया था, तभी तो उन्होंने इसे ‘पूर्व का स्कॉटलैंड’ कहकर पुकारा।

मेघालय के प्राकृतिक दृश्यों में तीन पहाड़ियों- खासी, जैंतिया और गारो का प्रभुत्व है। मेघालय 1972 में ही भारतीय संघ का पूर्ण राज्य बन पाया था। इस तरह मेघालय भारत के सबसे युवा राज्यों में से एक है। मेघालय अभी भी पर्यटन परिदृश्य की चमक-धमक से दूर है। इस वजह से अब भी यहां कई अनदेखे नजारे मौजूद हैं। यदि आप शहरी पागलपन से दूर सुखद जीवन की अनुभूति चाहते हैं तो मेघालय की यात्रा कीजिए।

मेघालय में आप ताजा पहाड़ी हवा में सांस ले सकते हैं। अपनी आत्मा को ऊंचे चीड़ के पेड़ों की सरसराहट वाली हवा में खो जाने दीजिए। आपने आखिरी बार पानी की कलकल ध्वनि कब सुनी थी? मेघालय की यात्रा कीजिए, इस राज्य में सबकुछ है- ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से नीचे गिरते झरने या अनदेखी गुफाएं या पृथ्वी की सबसे गीली जगह- चेरापूंजी जहां सबसे ज्यादा बारिश होती है।

बीहड़ इलाकों में प्राचीन बस्तियों की झलक आपको यहां मिलेगी। आधुनिकताओं से अछूते विनम्र आदिवासियों के आकर्षक जीवन से दोस्ती करने मेघालय की यात्रा कीजिए। भारत के बाकी हिस्सों के विपरीत यहां का आदिवासी समाज मातृसत्तात्मक है। आदिवासी उत्सवों के दौरान मेघालय आइये। आपको यहां काफी कुछ देखने को मिलेगा। मिथकों और किंवदंतियों का इतिहास और धर्म के साथ तालमेल। आदिवासियों के रंगीन उत्सव में भाग लेते आदिवासी।

कैसे पहुंचें मेघालय
मेघालय एक पहाड़ी राज्य है, जो पूर्वी उप-हिमालयी पहाड़ियों में स्थित है। मेघालय भारत के सबसे खूबसूरत परिदृश्यों में से एक है, जहां प्रकृति ने कई उपहार दिए हैं। यहां बारिश भी है और धूप भी। धुएं से ढंकी पहाड़ियों और बादलों का कभी खत्म न होने वाला सिलसिला और हरियाली से आच्छादित जंगल आपकी कल्पनाओं में रच-बस जाएंगे। सत्कार के लिए हमेशा तैयार रंगीन जनजातियां इस आकर्षण को और बढ़ाने की क्षमता रखती है।

हवाई मार्ग से
मेघालय में कोई विमानतल नहीं है। सबसे निकट का विमानतल है गुवाहाटी, जो मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से 128 किमी दूर है। हेलिकॉप्टर सेवा के जरिए गुवाहाटी से शिलॉन्ग (30 मिनट) और तुरा (60 मिनट) पहुंचा जा सकता है। यह सस्ता भी है और आरामदेह भी। कुछ हेलिकॉप्टर ऊपरी शिलॉन्ग पर उतरते हैं तो अन्य नीचे शहर में उमरोई हैलिपेड पर।

सड़क मार्ग से
राज्य में सड़क नेटवर्क काफी अच्छा है। पूरे राज्य में सड़कों का जाल बिछा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग -40 हर मौसम में इस्तेमाल होता है, जो राज्य से होकर गुजरता है। शिलांग से गुवाहाटी को जोड़ने वाली सड़क देश के अन्य बड़े शहरों को भी जोड़ती है।

रेल मार्ग से
मेघालय में कोई भी रेल सेवा नहीं है। सबसे पास का रेलवे स्टेशन है गुवाहाटी। मेघालय से गुवाहाटी का सड़क संपर्क बहुत अच्छा है। मौसम इस यात्रा में अड़ंगा नहीं डालता।

मेघालय में खरीदारी
भारत का समूचा पूर्वोत्तर क्षेत्र ही हस्तशिल्पों की समृद्ध परंपरा के लिए पहचाना जाता है और मेघालय भी इसमें अपवाद नहीं है। हम कह सकते हैं कि मेघालय के आदिवासियों की जिंदगी में बुनाई – फिर वह बेंत हो या कपड़ा- अभिन्न हिस्सा है। यह उत्कृष्ट हस्तशिल्प मेघालय में खरीदारी को बेहतरीन बनाते हैं।

मेघालय में वन क्षेत्र बहुत ज्यादा है और लकड़ी की कोई कमी नहीं है। इसी वजह से मेघालय के आदिवासियों ने काष्ठकला और बेंत और बांस के कामों में अपनी एक विरासत विकसित की है।

मेघालय की बेंत से बुनी चटाइयां और बास्केट्स टिकाऊपन की वजह से प्रसिद्ध है, जबकि यहां के कपड़ों के फ्लोरल डिजाइंस उन्हें बेहतरीन बनाते हैं। कलाकृतियां ऐसी हैं कि आपको चुनने में काफी मुश्किल आएगी।

मेघालय में शॉपिंग के दौरान यह वस्तुएं खरीदारी के लिए देखें-
  • लकड़ी को काटकर बनाए गए चित्र
  • अनानास के फाइबर की वस्तुएं
  • बेंत और बांस का काम
  • जेवर
  • कारपेट और रेशम की बुनाई

आपको मेघालय में कमर्शियल प्लाजा मार्केट नहीं मिलेंगे, लेकिन स्थानीय बाजार आपको मेघालय में बेहतरीन खरीदारी की पेशकश करते हैं। पूरे राज्य में सरकारी एम्पोरियम भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं।

मेघालय के पर्यटन स्थल

मेघालय का आकर्षण मुख्य रूप से यहां के अनगिनत खूबसूरत पर्यटन स्थल हैं, जो इस राज्य के पर्यटन की रीढ़ भी हैं। यहां क्रेम मॉम्लुह, क्रेम फिलुत, मावसिनराम, मॉस्मई और सीजू प्रमुख स्थान हैं, जो आपको रोमांच से भर देते हैं।

क्रेम मॉम्लुह मेघालय के बड़े आकर्षणों में से एक है। इसकी गुफा चेरापूंजी के करीब है। यहां से पांच नदियां निकलती हैं। क्रेम मॉम्लुह गुफाओं की उंचाई 4503 मीटर है।

मावसिनराम गुफा अपनी स्टलैग्माइट के लिए मशहूर है। स्टलैग्माइट यानी चूने के पत्थरों से बनी चोटियां, जिनकी उंचाई 25 30 फीट तक हो सकती है। ये चोटियां शिवलिंग के आकार की तरह दिखती है। इस गुफा का दूसरा नाम मावियमबुइन भी है। चोटी पर खड़े होते ही यहां का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। यहां से घाटियां, पहाड़ियां और बांग्लादेश की ओर बहती नदियां व मैदान एक साथ देखे जा सकते हैं। यही नैसर्गिक नजारे इसकी लोकप्रियता बढ़ाते हैं।

मॉस्मई गुफा को क्रेम फिलुत के नाम से भी जाना जाता है। यह गुफा नाहसिंहथियांग झरनों से ज्यादा दूर नहीं है। म़ॉस्मई गुफा का रास्ता चेरापूंजी के पास स्थित मॉस्मई गांव के पास से गुजरता है। गुफा मॉस्मई गांव के पास ही है। गुफा का प्रवेश द्वार खड़ी चढ़ाई वाला और संकरा है। मॉस्मई की गुफाएं मेघालय का प्रमुख आकर्षण है। यह अपने बड़े बड़े हॉल के लिए प्रसिद्ध है, जिनसे एक से दूसरी गुफाएं जुड़ती हैं। हॉल कुछ ऐसे ही हैं जैसे रंगमंच सजे हों।

सीजू की गुफाएं भी मेघालय के प्रमुख आकर्षणों में से एक हैं। यह सिमसैंग नदी के किनारे, सीजू गांव के निचले हिस्से में नफक झील के पास हैं। ये गुफाएं बाघमारा से 30 किमी दूर उत्तर में स्थित हैं। यह गुफा चूने के पत्थरों से बनी है। सीजू की गुफाएं ब्लू ग्रोटो गुफाओं की तरह है, जो आइजल ऑफ कापरी का बड़ा आकर्षण है। इन गुफाओं की खूबसूरती इसकी स्टलैक्टाइट्स हैं। स्टलैक्टाइट्स जमीन की ओर बढ़ती वे चोटियां हैं, जो गुफाओं की छत पर उल्टी लटकी होती हैं। भारत के सभी गुफाओं में यह तीसरी सबसे बड़ी गुफा है। यहां गुफाओं को दोबाक्कोल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ चमगादड़ों की गुफा है।

मेघालय के घूमने लायक स्थल

मॉस्मई
मॉस्मई का सबसे बड़ा आकर्षण मॉस्मई की गुफा हैं। मेघालय की इस खूबसूरती को क्रेम फिलुत के नाम से भी जाना जाता है। यह गुफा नाहसिंहथियांग झरनों के पास हैं। मॉस्मई गुफा जाने का रास्ता चेरापूंजी के पास स्थित मॉस्मई गांव से है। गुफा मॉस्मई गांव के बेहद करीब है। गुफा का प्रवेश द्वार खड़ी चढ़ाई वाला और बेहद संकरा है।

कोई भी व्यक्ति मॉस्मई की गुफा का भ्रमण साधारण प्रवेश शुल्क देकर कर सकता है। ये गुफा पर्यटकों के लिए सुबह नौ बजे से शाम साढ़े चार बजे तक खोली जाती हैं।

मॉस्मई गुफा की आंतरिक बनावट बेहद खूबसूरत है। इसके भीतर बड़े बड़े हॉल हैं। हर एक की बनावट ऐसी है जैसे कोई रंगमंच सजा हो। गुफा में घुप अंधेरा रहता है। टॉर्च की एक रोशनी या प्रकाश की कोई किरण पड़ते ही यहां की छुपी हुई खूबसूरती का हैरतअंगेज नजारा देखने को मिलता है। ये गुफा अपनी भीतरी बनावट के लिए ही जगप्रसिद्ध है। टपकते पानी से पत्थरों पर बनी विभिन्न प्रकार की सुंदर बनावटें प्रकृति का चमत्कार ही है। स्टलैग्माइट व स्टलैक्टाइट और दीवारों का सतरंगी दृश्य अद्भुत अहसास कराता है।

इन सभी हॉल्स में सिर्फ इनके आकार प्रकार का ही अंतर है। स्टलैक्टाइट और स्टलैग्माइट के पिरामिड हर ओर बिखरे पड़े हैं। गुफा के भीतर खूब जगह है, जिससे पर्यटक यहां आसानी से घूम सकते हैं।

मॉस्मई गुफा आने के लिए चेरापूंजी से आसान रास्ता है। चेरापूंजी मेघालय की राजधानी से महज 58 किमी दूर है। शिलांग और चेरापूंजी सड़क मार्ग से जुड़े है। कोई भी व्यक्ति बस या टैक्सी से शिलांग से चेरापूंजी पहुंच सकता है। दोनों शहरों की यह दूरी करीब दो घंटे की है।

शिलांग पहुंचने के लिए पहले गुवाहाटी आना होता है। गुवाहाटी रेल और हवाई सफर के जरिए पहुंचा जा सकता है। इसके बाद वहां से शिलांग के लिए सड़क मार्ग है। सड़क मार्ग से गुवाहाटी से शिलांग पहुंचने में करीब तीन घंटे लगते हैं।

स्मित
स्मित, खासी हिल्स का सांस्कृतिक केंद्र है। यह मेघालय की राजधानी शिलांग से 11 किमी की दूरी पर है। स्मित, शिलांग से जोवारी जाने वाले रोड पर स्थित है। इसका सबसे करीबी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा गुवाहाटी है, जो 104 किमी दूर है। यह शिलांग से सड़क मार्ग से भी जुड़ा है और दोनों के बीच मेघालय रोड टांसपोर्ट की बस चलती है।

स्मित, मेघालय का प्रदूषण रहित और सुंदर गांव है, जो राजधानी से थोड़ी ही दूर है। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती आंखों के लिए किसी सुंदर उपहार की तरह है। इसका विस्तार व्यापक और विविधताभरा है। सब्जियों की खेती राज्य की आर्थिक सेहत भी मजबूत करती है। स्मित के किसान आमतौर पर झूम खेती का इस्तेमाल करते हैं। यहां मसालों की खेती भी खूब होती है, जो नजदीकी राज्यों को निर्यात किए जाते हैं। दूर से झोपड़ीनुमा दिखने वाले इस इलाके में रेशम की खेती से लेकर पशुपालन प्रमुख व्यवसाय है। पशुओं की नस्ल सुधारने के लिए सिलेक्टिव ब्रीडिंग भी यहां होती है। स्मित मेघालय का खनन केंद्र भी है। यहां चीनी मिट्टी के पत्थर पाए जाते हैं। जाहिर है यहां चीनी मिट्टी के बर्तनों का निर्माण और व्यापार होता है।

इन सबके अलावा स्मित की पहचान पारंपरिक पोम्ब्लांग नोंगक्रेम त्योहार के लिए भी है। यह शरद ऋतु में मनाया जाता है। यह त्योहार खासी डेमोक्रेटिक स्टेट के उभार का जश्न भी है। जो इस समय भारतीय संविधान के छठे शैड्यूल के तहत क्रियाशील है। पांच दिन के इस त्योहार में का ब्लेई शिंशर देवी की पूजा होती है। का ब्लेई की मान्यता फसल और समृद्धि की देवी के रूप में है। पोम्ब्लांग त्योहार यहां का सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव है। इस दौरान खासी हिल्स के प्रमुख हिमा के नाम पर बकरे की बलि भी दी जाती है।

मावसिनराम
मावसिनराम गुफा अपनी आप में खास है। यही विशिष्टता इसकी पहचान है। मावसिनराम की गुफा के चलते मेघालय का यह गांव भारत के साथ साथ दुनियाभर में लोकप्रिय है।

मावसिनराम तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को पहले मेघालय के पूर्वी खासी हिल्स जिले में आना होता है। यहां से मावसिनराम के लिए टांसपोर्ट सुविधा है। अगर रेल और हवाई सफर की बात करें तो इनकी सुविधा गुवाहाटी तक ही है, जहां से मेघालय की राजधानी शिलांग की दूरी 128 किमी है।

मेघालय के खूबसूरत नजारों में से एक है मावसिनराम, जो शिलांग से 56 किमी की दूरी पर स्थित है। इसकी गुफा मावसिनराम गांव से करीब एक किमी उत्तर में है। यह गुफा स्टलैग्माइट यानी चूने के पत्थरों से बनी बड़ी बड़ी चोटियों के लिए मशहूर है। इनकी उंचाई 25.30 फीट तक है। ये चोटियां शिवलिंग की तरह दिखती है। इस गुफा का दूसरा नाम मावियमबुइन भी है।

यहां मौजूद विशालकाय चट्टान की चोटी पर पहुंचा जा सकता है। लेकिन इसके लिए ट्रैकिंग के अनुभव की जरूरत पड़ती है। चोटी पर खड़े होते ही यहां का मनोरम दृश्य दिखाई देता है। गहरी घाटियां, पेड़ों से ढंकी पहाड़ियां और बांग्लादेश की ओर तेजी से बहती नदियां और मैदान एक साथ देखे जा सकते हैं। यही खूबसूरत नजारे इसकी लोकप्रियता बढ़ाते हैं।

इसके पास ही वीलोई गांव के करीब एक जियोलॉजिकल महत्व की भारी भरकम चट्टान है। यह गुफा से डेढ़ किमी दूर रानीकोर बलात मावसिनराम शिलांग हाइवे पर है। इसकी चोटी सपाट है। इसका आकार गुंबद का अहसास दिलाता है और यह पावरोटी की तरह भी दिखता है। इस पर चढ़कर आसपास निहारना प्रकृति का रसास्वादन करने जैसा है।

क्रेम डैम गुफा
क्रेम डैम गुफा मेघालय का ऐसा सुरम्य स्थान है, जहां प्रकृति अपने भव्य स्वरूप में दर्शन देती है। क्रेम डैम संभवतः पूरे भारतीय महाद्वीप की सबसे बड़ी गुफा होगी, जो बलुआ पत्थरों से बनी है। यह अपने विशाल आकार और बेमिसाल खूबसूरती की वजह से बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। क्रेम डैम की लंबाई लगभग 1297 मीटर है।

ऐसा पत्थर जो रेत के बारीक कणों से मिलकर बना हो, बलुआ पत्थर कहलाता है। यह तलछटी चट्टान भी कहलाता है। इसमें अधिकतर हिस्सा स्फटिक या धरती की सतह पर पाए जाने वाले तत्वों की ही होती है।

प्रकृति ने मेघालय के क्रेम डैम को बेइंतहा खूबसूरती से नवाजा है। इसका प्रवेश द्वार ही इतना भीमकाय है कि पर्यटकों की उत्सुकता का कई गुना बढ़ा देता है। छुट्टी मनाने के लिए यह आसपास का सबसे लोकप्रिय स्थान है। यह भी कहा जा सकता है कि इस गुफा का सबसे बड़ा आकर्षण इसका प्रवेश द्वार ही है। इसके रास्ते पर बहने वाली नदी और उसकी कल कल करती आवाज इसकी सुंदरता को चार चांद लगाता है। नदी का अविरल बहता नीला पानी पवित्रता और प्राचीनता का अहसास कराता है।

बलुआ पत्थर यहां अपने सबसे आकर्षक रूप में सामने आता है। यहां के पीले, भूरे, धूसर और लाल बलुआ पत्थरों को देखना प्रकृति को निहारने जैसा है। एक और बात जो इन पत्थरों को खास बनाती है, वह इनके पानी सोखने की क्षमता है। इनकी जलीय चट्टानी परत मौसम के अनुकूल खुद को ढालने में सक्षम है। इसी वजह से बारिश गर्मी की मार को सहते हुए भी ये अपने खूबी और खूबसूरती को बरकरार रखे हुए है। समय की मार को सहते हुए इसने अपना वास्तविक स्वरूप बचाए रखने की क्षमता विकसित कर ली है।

क्रेम कोत्साती
क्रेम कोत्साती गुफा मेघालय में प्रकृति की ऐसी देन है जिसे लोग रहस्यमय भी मानते हैं। सही मायने में मेघालय में बेशुमार गुफाएं मौजूद हैं। इन तक लोगों की पहुंच भी बहुत मुश्किल नहीं है। इसलिए यहां वे लोग बड़ी संख्या में खिंचे चले आते हैं, जिन्हें गुफाओं की खूबसूरती और रहस्य आकर्षित करते हैं।

आंकड़ों की बात करें तो मेघालय में विभिन्न आकार प्रकार की 1000 से अधिक गुफाएं हैं। लोग चूने के पत्थरों पर टपकते पानी से बनी आकृतियां को बस निहारते रह जाते हैं। इन्हें देखकर बस यही शब्द निकलते हैं कि कुदरत से बढ़कर कोई कलाकार नहीं।

आप क्रेम कोत्साती की गुफा में इसके आठ में से किसी भी प्रवेश द्वार से भीतर जा सकते हैं। हालांकि, इसका मुख्य द्वार झील के रास्ते से है। इसलिए अगर आप यहां से गुफा में जाना चाहते हैं तो आपको अच्छा तैराक होना जरूरी है। इसके अलावा आपको तैराकी से जुड़े साजो सामान की जरूरत भी होगी। पानी में उतरने से पहले यहां के सीनियर गाइड से जरूरी एहतियात जरूर पूछ लें और उन पर अमल करें ताकि कोई हादसा न हो। इस खूबसूरत गुफा की लंबाई 3650 मीटर है। कई बार पर्यटकों के लिए इसे पूरा घूम पाना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए आप पूरी तैयारी से आएं।

क्रेम कोत्साती गुफा बड़ी ही सुंदर नदी से घिरी हुई है। यहां आने के दो ही रास्ते हैं। पहला या तो आपको तैरकर आना होगा, या फिर आपको रबर बोट की मदद लेनी होगी, जो हवा में पलट भी सकती है।

कुल मिलाकर, क्रेम कोस्तारी मेघालय की इतनी शानदार जगह है कि आपको इससे प्यार हो जाएगा। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती में आध्यात्मिकता और अलौकिकता का अहसास है, जो बरबस ही आपको अपनी ओर खींचती है।

क्रेम लैशिंग
क्रेम लैशिंग, मेघालय की उन हजार खूबसूरत गुफाओं में से एक है, जो उसके दिल में पालने की तरह झूलती हैं। क्रेम लैशिंग राज्य के एक और पर्यटन स्थल जोवाई से 37 किमी. की दूरी पर है। बेहद शांत जगह है। यदि आपके दिल में गुफाओं के लिए भी जगह है तो मेघालय आपकी पहली पसंद साबित हो सकता है, जो आपको हर पल रोमांचित कर सकता है।

मेघालय यूं तो गुफाओं के लिए ही मशहूर है। लेकिन क्रेम लैशिंग की विशेषता इसका विशालकाय होना है, जो इसे दूसरों से अलग करता है। 50 मीटर की चौड़ाई में फैली इस गुफा की ऊंचाई 40 मीटर है। यही आंकड़े मेघालय आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर खिंचते हैं।

यदि आप इन गुफाओं में घूमना चाहते हैं तो अनुभवी गाइड अपने साथ हमेशा रखें, जो आपको इनकी खूबियां बताने के साथ साथ सुरक्षा उपायों का भी ख्याल रखेगा। ऐसा न करने पर ये अंधेरी गुफाएं कभी भी खतरनाक साबित हो सकती हैं। आपको अपने साथ हमेशा सभी जरूरी दवाएं भी साथ रखनी चाहिए क्योंकि हादसा होने पर यही आपकी सबसे बड़ी दोस्त साबित होंगी। क्रेम लैशिंग के भीतर एक तालाब भी है। यहां पानी कम और कीचड़ ज्यादा है। आसपास की चिकनी मिट्टी हमेशा गीली रहती है। फिसलने का डर बना रहता है। इसलिए भी यहां जाने पर अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है। अतः सुरक्षा जरूरतों के लिहाज से यहां जाने पर प्राथमिक चिकित्सा के सारे संसाधन अपने पास रखने चाहिए।

मुश्किलों रास्तों के बावजूद क्रेम लैशिंग बहुत ही खूबसूरत जगह है, जिसकी किसी और जगह से तुलना बेमानी होगी। यदि आप यहां घूमने के इच्छुक हैं तो मार्च अप्रैल में इसकी योजना बनाएं। इस समय पर कीचड़ से काफी हद तक बचा जा सकता है और ज्यादा गर्मी भी नहीं होती। इन सब खूबियों के साथ क्रेम लैशिंग की 1650 मीटर लंबाई भी पर्यटकों को लुभाती है।

इसमें कोई शक नहीं कि अगर आप क्रेम लैशिंग आते हैं तो यह यात्रा आपकी सबसे खुशनुमा यादों में खुद को शामिल कर लेगी।

क्रेम मॉम्लुह
क्रेम मॉम्लुह की गुफा पश्चिम चेरापूंजी से महज आधा किमी की दूरी पर है। यह मॉम्लुह के बेहद करीब है। कम से कम पांच नदियां क्रेम मॉम्लुह के पास से गुजरती हैं। इस गुफा की लंबाई शानदार 4503 मी है। इस गुफा शृंखला को भारतीय प्रायद्वीप की चौथी सबसे लंबी शृंखला माना जाता है।

इस बेहतरीन गुफा तक पहुंचने के लिए सबसे पहले तो आपको चेरापूंजी आना होगा। चेरापूंजी मेघालय की राजधानी शिलांग से 58 किमी की दूरी पर है। शिलांग और चेरापूंजी सड़क मार्ग से जुड़े है। कोई भी व्यक्ति बस या टैक्सी से शिलांग से चेरापूंजी पहुंच सकता है। दोनों शहरों की यह दूरी करीब दो घंटे की है।

शिलांग में रेलवे या हवाई सफर की कोई सुविधा नहीं है। इसलिए पर्यटकों के पास चेरापूंजी पहुंचने के लिए सड़क मार्ग ही एकमात्र विकल्प बचता है। मेघालय टूरिज्म की बसें शिलांग से चेरापूंजी तक लगातार चलती हैं। इन दोनों शहरों के बीच शेयर्ड टैक्सी की सुविधा भी पर्यटकों को आसानी से मिल जाती है।

शिलांग पहुंचने के लिए पर्यटकों को सबसे पहले गुवाहाटी आना होता है। गुवाहाटी रेल और हवाई मार्ग दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद वहां से शिलांग के लिए सड़क मार्ग है। सड़क मार्ग से गुवाहाटी से शिलांग पहुंचने में करीब तीन घंटे लगते हैं।

अगर आप क्रेम मॉम्लुह घूमना चाह रहे हैं तो भी शिलांग में ही ठहरें। शिलांग में आपको ठहरने के कई विकल्प मिल सकते हैं। यहां के प्रमुख होटल ये हैः
  • होटल पोलो टावर्स, पोलो ग्राउंड, शिलांग
  • सेंटर प्वाइंट, पुलिस बाजार, शिलांग
  • त्रिपुरा कैस्टल, क्लीब कॉलोनी, शिलांग
  • पेगसस क्राउन, वार्ड्स लेक रोड, पुलिस बाजार, शिलांग

क्रेम सोह शिम्पी
मेघालय सिर्फ अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांति के लिए ही मशहूर नहीं है, यहां और भी बहुत कुछ छुपा है। पूर्वोत्तर की यह भूमि विविधता से भरी है और देश के सबसे बेहतरीन पर्यटन स्थलों में शुमार होती है। मेघालय को अपनी 1000 गुफाओं के लिए अलग ही पहचान हासिल है। बड़ी संख्या में गुफाएं होने के बावजूद इनके अलग अलग आकार प्रकार और विशेषताएं दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सक्षम हैं।

क्रेम सोह शिम्पी एक बड़ी और गहरी गुफा है जो पश्चिमी खासी हिल्स में मॉवलोंग में स्थित है। क्रेम सोह शिम्पी की आकर्षक गुफा इसी पहाड़ी में है। इसका प्रवेश द्वार बेहद दिलचस्प है। इसमें प्रवेश करते ही संकरे रास्ते से 20 मीटर गहराई में उतरना होता है। अंधेरा इसे और रहस्यमयी बनाता है। इसकी लंबाई 760 मीटर है।

भीतर पहुंचने के बाद यह पर्याप्त चौड़ा है। यानी, यहां घुसते ही हम इसके बारे में जो पहली छवि बनाते हैं, उसके विपरीत यहां घूमना काफी आसान है। पर्याप्त चौड़ाई के कारण हम आसानी से यहां वहां जा सकते हैं। हालांकि, अपनी गहराई और अंधेरे के कारण यह हमें हमेशा थोड़ा रहस्यमय तो लगता रहता है। आगे बढ़ने पर यह इतनी गहरी है कि सूरज की किरणें या प्राकृतिक रोशनी आने का सवाल ही पैदा नहीं होता। यदि कोई भीतर तक जाना चाहता है तो उसे कृत्रिम रोशनी का सहारा लेना ही पड़ेगा। इसकी यही रहस्यमकता इसकी रोमांच को बढ़ा देती है और इसी कारण खासी हिल्स की यह गुफा मेघालय का बड़ा आकर्षण है।

क्रेम उम्शंगटक
क्रेम उम्शंगटक की गुफा मेघालय की सबसे घुमावदार गुफाओं में से एक है। इसकी यह खूबी दूर दूर तक जानी जाती है। इसी कारण आप यहां जब भी आएं, भारी भीड़ मिलती है। भीड़ इतनी होती है कि यह इको टूरिस्म की चिंता भी बन गई है। पर्यटक दूर से तो आते ही हैं। आस पास रहने वालों के लिए भी यह जगह छुट्टी मनाने की पहली पसंद है।

इस विशालकाय, घुमावदार और सम्मोहक गुफा के रोमांच का अनुभव लेने के लिए दुनिया के हर कोने से पर्यटक आते हैं। यकीनन, इसका आकार प्रकार इसे रहस्यमय भी बनाता है और यही बात पर्यटकों को इसकी ओर खींच लाती है। मेघालय जैसे खूबसूरत, रोमांचक, रहस्यमय गुफाओं की ही धरती है। प्रकृति ने इस राज्य को 1000 मनमोहक गुफाओं की सौगात दी है। लेकिन यदि आप इन गुफाओं को नजदीक से देखना और महसूस करना चाहते हैं तो पेशेवर गाइड से जरूर मदद लेनी चाहिए। यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि गुफा में जाने वाले गाइड के पास सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि सभी जरूरी साजो सामान भी हो। वास्तव में मेघालय की सबसे लंबी गुफा को क्रेम लैतप्राह या उम म्लादित के नाम से जाना जाता है। यह विशालकाय गुफा 22.2 किमी. इलाके में फैली हुई है।

क्रेम उम्शंगटक की गुफा का बड़ा आकर्षण इसका प्रवेश द्वार ही है। 350 मीटर लंबा प्रवेश द्वार गीली रेत से पटा है। इस इलाके को पार करने के लिए आपको बड़ी सावधानी से चूने के पत्थरों से बने भूखंड का सहारा लेना पड़ता है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि इस गुफा तक पहुंचने और घूमने के लिए साहस और कुशलता जरूरी है। यहां कई जगह पर पर्यटक को पेट के बल रेंगकर आगे बढ़ना पड़ता है। इसकी कुल लंबाई 955 मीटर है।

यूं तो क्रेम उम्शंगटक की यात्रा थोड़ी थका देने वाली है। लेकिन इतना तय है कि अगर आप यहां आ गए तो लौटते हुए खुशी और उत्साह से भरे होंगे।

क्रेम स्वीप
अगर आप जोवाई की यात्रा पर जा रहे हैं तो पहले थोड़ा सा क्रेम स्वीप का भ्रमण भी कर लें। प्रकृति ने इसे बेमिसाल खूबसूरती से नवाजा है। आप यहां आकर यकीनन तरोताजा हो जाएंगे। आप क्रेम स्वीप आसानी से पहुंच सकते हैं क्योंकि यह जोवाई से महज 47 किमी. दूर है।

क्रेम स्वीप का सबसे बड़ा आकर्षण यहां की खूबसूरत और अति संवेदनशील स्टलैक्टाइट और स्टलैग्माइट की आकृतियां हैं। इनकी खूबसूरती को घंटों निहारा जा सकता है। स्टलैक्टाइट की हैरतअंगेज बनावट गुफाओं को एक विचित्र और अद्भुत आकार देता है। छत से लटकते इन आकारों को देखकर कोई भी विस्मय से भर सकता है। यह यहां की गुफा का सबसे बड़ा आकर्षण है। चूने के पत्थर की और भी कई आकृतियां आपको लुभाती हैं। कई जगह तो छत के बजाय दीवार से ही कुछ आकृतियां बाहर निकली हुई हैं और आपको चौंका देती हैं। स्टलैक्टाइट को यहां टपकते पत्थरों से बनी आकृति भी कहा जाता है।

रासायनिक संरचना की बात करें तो यहां की आकृतियां मुख्यतः कैल्शियम कार्बोनेट से बनी हुई हैं। जैसे छत से निकलती आकृतियां यहां का आकर्षण है, वैसे ही जमीन से निकली आकृतियां स्टलैग्माइट भी आपको लुभाती हैं। यदि इन दोनों का लगातार विकास होता रहा तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब ये दोनों मिलकर गुफा के भीतर कॉलम यानी स्तंभ का निर्माण ही कर चुके हों।

पानी की एक छोटी सी बूंद भी यहां की अद्भुत स्टलैक्टाइट और स्टलैग्माइट का आकार बढ़ाने में सक्षम है, बस इसमें कैल्सियम कार्बोनेट की मात्रा होनी चाहिए। धीरे धीरे ही सही कालांतर में यह स्टलैक्माइट बढ़ता हुआ सतह के करीब पहुंचने लगता है और अनोखा नजारा पैदा होता है। इसकी प्राथमिक अवस्था में इसे सोडा स्टा कहा जाता है।

जब भी आप क्रेम स्वीप की यात्रा करें तो ध्यान रखें कि किसी भी स्टलैक्टाइट या स्टलैग्माइट की संरचना को न छुएं। क्योंकि हमारी तैलीय त्वचा प्रकृति की इन अतिसंवेदनशील रचनाओं को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

मेघालय की इस खूबसूरती तक आप स्कूल के रास्ते भी पहुंच सकते हैं। यह स्कूल गांव के एक किनारे पर है। इससे आगे जाने पर ही गुफा की शुरुआत होती है।

सीजू
सीजू की गुफा नफक झील के करीब है, जो सिमसैंग नदी के किनारे स्थित है। यह गुफा सीजू गांव के बेहद करीब है। गुफा बाघमारा से 30 किमी दूर उत्तर में स्थित हैं। यह चूने के पत्थरों से बनी है। सीजू की गुफा अपने स्टलैक्टाइट आकृतियों के लिए मशहूर है जो ब्लू ग्रोटो गुफाओं की तरह है, जो आइजल ऑफ कापरी का बड़ा आकर्षण है। भारत के सभी गुफाओं में यह तीसरी सबसे बड़ी गुफा है। यहां गुफाओं को दोबाक्कोल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ चमगादड़ों की गुफा है।

सीजू की गुफा के भीतर कई ऐसी सुरंगे और चैंबर जैसी आकृतियां हैं जहां आज भी नहीं पहुंचा जा सका है। यह गुफा बेहद गहरी है। हालांकि इसकी गहराई कभी नापी नहीं जा सकी है। आज की तारीख में इसके भीतर सिर्फ एक किमी दूरी तक पहुंचा जा सका है। गुफा के भीतर घुप अंधेरा पसरा रहता है। गुफा से हमेशा भांप सी निकलती रहती है और यहां जलीय जीव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। चमगादड़ों और अन्य जीवों के रहने की अनेक सुरंगें यहां आसानी से देखी जा सकती हैं। यह स्टलैक्टाइट और स्टलैग्माइट की बेमिसाल खूबसूरती का खजाना भी है।

सीजू के करीब से कुछ बेहद सुंदर नदियां बहती हैं। कल कल बहती निर्मल धारा और हरे भरे पेड पौधे यहां रूहानी नजारा पैदा करते हैं। इन सबके अतिरिक्त सीजू एक विशालकाय चट्टान के लिए भी मशहूर है। चूने से बनी इस चट्टान को प्रिंसेज डियाज चेंबर भी कहा जाता है।

सीजू अपनी गुफा और चट्टान के अलावा पक्षियों के अति सुंदर और संवेदनशील अभ्यारण्य के लिए भी प्रसिद्ध है। यह अभयारण्य सिमसैंग नदी के दूसरी ओर है। यहां बहुत सारे संरक्षित जीव जंतु और पक्षी रहते हैं। ठंड के मौसम में सर्बियन पक्षी इसे अपना बसेरा बनाते हैं। इस अभयारण्य तक आने के लिए आपको एक किमी तक लगातार ऊंचाई की ओर पैदल चलना पड़ता है। हालांकि, इसका खूबसूरत चट्टानी रास्ता आपको लगातार रोमांचित करता रहता है।

सिंदाई गांव
जयंतिया हिल्स पर बसा सिंदाई गांव मेघालय के उन गांवों में से एक है, जो पर्यटन के नक्शे में अपना खास स्थान रखता है। जयंतिया हिल्स पर कुदरत ने खास मेहरबानी बरती है। यही कारण है कि यह पर्यटकों के पसंदीदा स्थानों में से एक है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह पहाड़ी जयंतिया जनजाति का होमलैंड भी कहलाती है। मेघालय के अधिकतर मशहूर पर्यटन स्थल जयंतिया हिल्स के विभिन्न किनारों पर बसे हैं।

मेघालय की जयंतिया हिल्स पर बसा सिंदाई गांव अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। यह गांव जोवाई द्वाकी रोड पर बसा है। यह अपने तमाम गुफाओं और कंदराओं के लिए जाना जाता है। सिंदाई गांव के इन गुफाओं को ही दुनिया सिंदाई गुफाओं के नाम से जानती है।

मेघालय की रहस्यमयी गुफाओं में से कुछ सिंदाई में हैं। माना जाता है कि इनका विकास सैकड़ों साल पहले हुआ। कहा जाता है कि गारो प्रजाति के लोग इन गुफाओं का इस्तेमाल छिपने के लिए करते थे। गारो प्रजाति के लोग स्वाभाविक तौर पर बहुत बहादुर और साथ मिलकर रहने वाले होते हैं। वे दूसरे समुदाय को खुद और अपने रहने वाले स्थानों में जाने देना पसंद नहीं करते। इस कारण अक्सर दूसरों से लड़ाई कर बैठते हैं। खासकर विदेशियों से उनकी झड़प हो जाती है क्योंकि वे इस प्रजाति के स्वभाव से अनजान होते हैं। विदे गारो प्रजाति के लोग सिंदाई गुफाओं का इस्तेमाल युद्ध के समय छिपने के लिए करते थे।

सिन्तू कैसर
मेघालय की सम्मोहक धरती पर्यटन स्थलों की भंडार जैसी है। यहां प्रकृति के सानिध्य में आकर आप अपने मन मस्तिष्क को तरोताजा कर सकते हैं। यदि आप प्रकृति की गोद में कुछ दिन गुजारने का मन बना रहे हैं तो बेहिचक सिन्तू कैसर चले आइए। यकीन मानिए यह वह जगह है तो आपकी कुदरत से साक्षात्कार की उम्मीदों पर खरी उतरेगी।

सिन्तू कैसर की खूबसूरती को पास में कल कल बहती मिंत्दू नदी चार चांद लगाती है। इसी की बदौलत यहां धान की अच्छी खेती होती है। पहाड़ियों पर धान को लहलहाते देखना भी मनोरम दृश्य है और लोग इसकी खूबसूरती की वजह से इसे गोल्डन फ्लावर भी कहते हैं। सिन्तू कैसर मेघालय का वह इलाका है, जिसके करीब आते ही प्रकृति की गोद का अहसास शुरू हो जाता है।

सिन्तू कैसर आने के लिए पर्यटकों को पहले जयंतिया हिल्स जिला मुख्यालय में आना होता है। यहां से सिन्तू कैसर जाने के अनेक और आसान साधन उपलब्ध हैं।

मेघालय का प्रमुख आकर्षण सिन्तू कैसर की खूबसूरती का राज यहां बहती निर्मल नदी मिंत्दू को माना जाता है। मिंत्दू को यहां की जीवनरेखा भी कहा जा सकता है। मिंत्दू नदी सिन्तू कैसर से जोवाई को भी जोड़ती है और इसके घुमावदार मोड़ देखते ही बनते हैं। जब आप नदी या किनारों पर चलते हैं तो रास्ते में कई मनमोहक दृश्य आपको वहां रुकने को मजबूर करते हैं। इन नजारों को देखते हुए आपको अनेक लोग मिलेंगे। कई बार वे इन नजारों में ऐसे खोए होते हैं कि आपमें कुछ संदिग्ध होने का भाव पैदा हो सकता है। कुल मिलाकर यह इतनी आश्चर्यजनक जगह है जिसकी खूबसूरती निहारते हुए आपकी आंखें बार बार चमक उठेंगी।

मेघालय के सिन्तू कैसर के पास ही एक और जगह है जहां जाकर आपको अच्छा लगेगा। यह जगह है कियांग नंगबाह स्मारक। यह स्मारक पर्यटकों के जिज्ञासा का केंद्र रहता है और कई जिज्ञासाओं को शांत भी करता है। पर्यटक यहां साल भर आते हैं।

नारतियांग
जयंतिया हिल्स जिला मेघालय टूरिज्म का बड़ा केंद्र है, जहां एक से एक अद्भुत गुफाएं कंदराएं और एडवेंचरस स्पोर्ट्स के स्थान हैं। यह छुट्टी मनाने के लिए आसपास के लोगों की पहली पसंद है। हालांकि, एडवेंचर करने वालों को यहां सावधानी रखने की जरूरत भी होती है। नारतियांग, ऐसी जगह है जो पूरे मेघालय के दिल में बसता है। यह सिर्फ पर्यटन स्थल के तौर पर नहीं बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक लिहाज से भी महत्वपूर्ण है।

कभी यह इलाका जयंतिया शासकवंश के आधिपत्य में था। ब्रह्मपुत्र से लेकर सुरमा वैली तक उनका राज्य फैला था। हालांकि, बाद में वे धीरे धीरे अपना राज्य हारते गए और अंत में छोटे से इलाके पर ही उनका राज बचा। इसलिए नारतियांग का मेघालय में पर्यटन के अलावा भी महत्व है। कभी ऐतिहासिक केंद्र रहा यह शहर अब मेघालय का व्यावसायिक और प्रशासनिक केंद्र बन गया है। कभी जिस ब्रह्मपुत्र घाटी पर अहोम और कांचेरी राजवंश का शासन था, वह भी इसी जिले में आ गया है। नारतियांग मेघालय का वह हिस्सा है जिसे जयंतिया के शासकों ने 16वीं शताब्दी में अपनी राजधानी बनाया था। इसी वजह से यह स्थान पर्यटन और ऐतिहासिक महत्व के अलावा पुरातात्विक लिहाज से भी अहम हो गया है। यहां इतिहास और पुरात्विक महत्व की निशानियां बिखरी पड़ी हैं और उन्हें बस सहेजने या सहेजे रखने की जरूरत भर है।

यहां भगवान शिव का एक मंदिर भी है, जो प्राचीन निर्माण कला का उत्कृस्ट उदाहरण है। शिव अपने श्रेष्ठतम रूप में विराजमान हैं। जयंतिया के शासकों का यह रहस्यस्थल भी है और यहां कभी हथियार और गोला बारूद भी छिपाए जाते थे। इसके पश्चिमी हिस्से में देवी दुर्गा का भी मंदिर है।

यहां 100 मी. व्यास की एक ही चट्टान है। इसमें कई पुरातन संकेत चिह्न हैं। इसकी चौड़ाई दो मीटर और ऊंचाई 8 मीटर है। नारतियांग में साप्ताहिक बाजार भी लगता है।

जयंतिया हिल्स
जयंतिया हिल्स मेघालय की जयंतिया जनजाति का होमलैंड है। जयंतिया हिल्स जिला 1972 में बनाया गया। यह मेघालय के सबसे हरे भरे, विविधतापूर्ण और खूबसूरत स्थानों में से एक है। चारों ओर से हरियाली से घिरा यह स्थान ऐसा है जैसे प्रकृति की गोद में बैठा हो। घने बसे शहर से निकलकर यहां आना सुकून देने वाला अनुभव है।

घास के बड़े बड़े मैदान और पठार, जंगल, झीलें, नदियां आदि जयंतिया हिल्स के मुख्य आकर्षण हैं। यह कई जंगली जीव जंतुओं की शरणस्थली है। विभिन्न वनस्पतियों का घर है। जयंतिया हिल्स जिले का मुख्यालय जोवाई है, जो राजधानी शिलांग से केवल 64 किलोमीटर दूर है।

यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट गुवाहाटी है। गुवाहाटी ही यहां का सबसे करीब रेलवे स्टेशन भी है। यहां से शिलांग के लिए बस पकड़ सकते हैं। शिलांग से जयंतिया हिल्स के बस या टैक्सी कर सकते हैं।

जयंतिया हिल्स पर घूमने लायक प्रमुख स्थानः

    • सिन्तू कैसरः यह बेहद खूबसूरत पिकनिक स्पॉट है। आप यहां मिंत्दू नदी के किनारे बैठकर ठंडी हवाओं का आनंद ले सकते हैं। नदी किनारे बसे जोवाई कस्बे का पूरा सर्कल और आसपास का इलाका ऐसे दमकता है जैसे सोना हो। इसीलिए इसे गोल्डन फ्लावर भी कहा जाता है।

    • थदलास्कीन झील: यह झील जोवाई से आठ किमी. की दूरी पर है। ऐसा माना जाता है कि यह झील जयंतिया हिल्स के प्रसिद्ध नेता सजर नांगली के समर्थकों द्वारा तीर के नोंक से खोदी गई थी। यह झील जोवाई से शिलांग के रास्ते पर है। यहां तक पहुंचना बेहद आसान है और आप यहां बैठकर यात्रा की सारी थकान दूर कर सकते हैं।

    • सिंदाई: सिंदाई नामक छोटा सा गांव जोवाई द्वाकी रोड पर बसा है। यह मेघालय का महत्वपूर्ण स्थान है। गांव के चारों ओर बड़ी संख्या में गुफाएं और कंदराएं हैं। इन सारी गुफाओं कंदराओं को ही सिंदाई केव्स या सिंदाई गुफा के नाम से जाना जाता है।

  • नारतियांग: अगर आप पत्थरों में खूबसूरती तलाश सकते हैं तो खड़ी चट्टानों के लिए मशहूर इस जगह पर जरूर आएं। यहां इनके बारे में कई कहानी किस्से भी मशहूर हैं जैसे एक खड़ी चट्टान को फालिन्गी की छड़ी कहा जाता है। फालिन्गी के बारे में जयंतिया हिल्स में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं। यहां के कुछ चट्टानों को दुनिया की सबसे लंबी चट्टानों में शामिल किया गया है। नारतियांग, जोवाई से महज 24 किमी दूर है।

जोवाई
जोवाई को देखने पर पहला विचार आता है कि क्या यह किसी चित्रकार की रचना है, जो पहाड़ी पर ऐसे बसा है जैसे झूला झूल रहा हो। शिलांग से 65 किमी. दूर प्रकृति की गोद में बसा यह कस्बा अब शहर बनता जा रहा है। जयंतिया हिल्स पर बसा यह कस्बा समुद्र तल से 1380 मीटर की ऊंचाई पर है। प्रकृति ने इसे अपनी दौलत दोनों हाथों से लुटाई है। हरियाली और शांत वातावरण के साथ साथ इस कस्बे में ऐसी कुदरती चमक है, जो किसी का भी मन मोह लेती है। जोवाई पर्यटन स्थल होने के साथ साथ जयंतिया हिल्स जिले का मुख्यालय है। यहां मुख्य रूप से जयंतिया जनजाति के लोग रहते हैं, जो खुद को मंगोलियाई वंशज भी मानते हैं। चूंकि जोवाई खूबसूरत पहाड़ी पर बसा है, इसलिए पर्यटकों की पसंद भी है। राजधानी शिलांग से यहां आने के अनेक साधन हैं लेकिन सिर्फ सड़क मार्ग से ही। सिलचर जाने वाली बसें यहां से होकर गुजरती हैं। ये बसें शिलांग या बड़बाजार से सिलचर के बीच चलती हैं।

जोवाई की एक खासियत यह भी है कि पूरा शहर मिंत्दू नदी के किनारे बसा है। इससे पूरा शहर हरियाली से ढंका है। हमेशा ठंडक बनी रहती है। इससे आत्मिक शांति भी बनी रहती है। यदि आप तनाव से तंग आ गए हैं तो अपने परिजनों और चाहने वालों के साथ कुछ बेहतरीन दिन यहां गुजार सकते हैं। यकीन मानिए, जोवाई आपको कभी भी निराश नहीं करेगा।

यहां आने वाले पर्यटकों के लिए स्वतंत्रता सेनानी यू कियांग नांगबाह की समाधि भी घूमने की एक जगह है। यू कियांग का इस इलाके में अत्यधिक सम्मान है, जिन्होंने अंग्रेजों के सामने कभी हार नहीं मानी, बार बार लड़े और 1863 में शहीद हुए। यहां चट्टानों से बना 16 किमी. लंबा पुल भी है। माना जाता है कि यह विशालकाय पुल फालिन्गी और यू लुह लिंगसर लामरे से प्रेरणा लेकर बनाया गया है।

जोवाई के करीब एक और घूमने लायक स्थान एक झील है। माना जाता है कि थदलास्कीन नामक इस झील को सजर नांगली ने बनवाया था। आप इस झील में बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं।

गारो हिल्स
मेघालय नाम का सही अर्थ तो बादलों का घर है लेकिन इसकी जान गारो हिल्स में बसती है। लगभग पूरा राज्य ही इस इतराते हुए पहाड़ पर बसा है। जहां गारो और खासी हिल्स मिलते हैं, वह इस राज्य का सबसे खूबसूरत बिंदु है। गारो हिल्स मेघालय की कई जनजातियों का संरक्षक रहा है। इन जनजातियों की कई पीढ़ियों ने वर्षों इन पहाड़ियों पर बिताए हैं। आज यह पहाड़ी रोमांचक खेलों की प्रमुख केंद्र भी बन गई है।

दुनिया में गारो हिल्स की पहचान उस पहाड़ी के रूप में है, जहां धरती पर सबसे अधिक बारिश होती है। जाहिर है यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। जलवायु नम है और पेड़ पौधों के लिए बेहद अनुकूल है। हरे भरे जंगल दुनियाभर से लोगों को यहां खींच लाते हैं।

मेघालय की राजधानी शिलांग भी गारो हिल्स में भी बसी है। इसकी स्थिति को देखते हुए कहा जाता है कि यह गारो हिल्स के दिल में बसी है। कुल मिलाकर तीन जिले ऐसे हैं, जिनकी बसाहट गारो हिल्स और इसके आसपास ही है।

तूरा, शिलांग के बाद मेघालय का दूसरा बड़ा शहर है। गारो हिल्स में ही बसे इस शहर की आबादी करीब 70 हजार है। गारो की पहाड़ियां साल भर बादलों से ढंकी रहती हैं। यहां साल में कभी भी बारिश हो जाती है। गारो हिल्स के नामकरण को गोशाला से जोड़कर भी देखा जाता है। प्रकृति का यह अनमोल उपहार बेशकीमती वनस्पतियों और जीव जंतुओं की शरणस्थली भी है।

इन पहाड़ियों पर अनेक पर्यटन स्थल हैं और कई बार इनकी अधिकता की वजह से भ्रम भी पैदा हो जाता है। हिल्स के प्रमुख पर्यटन स्थलः
  • तूरा की चोटी, जिसकी उंचाई 872 मीटर है। यहां बड़ी संख्या में बंगले भी बन गए हैं और आप यहां आसानी से कुछ दिन बिता सकते हैं।
  • जिन्जीराम नामक नदी के किनारे बसा भाइतबरी, जो पहाड़ी और ग्रामीण बस्ती है।
  • काता बील नामक झील।
  • पीरस्थान या हजरत शाह कमाल बाबा की दरगाह।
  • नोकरेक नाम की हैरतअंगेज करती चोटी, जिसकी उंचाई 1,412 मीटर है।

मीर जुमिला का तालाब, अरबेला की चोटी, रोंगबैंग डेयर जैसे कई और स्थान भी यहां के दर्शनीय स्थल हैं।

नोकरेक चोटी
नोकरेक गारो हिल्स पर तूरा क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी है। यह पश्चिम गारो हिल्स जिले में आती है। तूरा रेंज इस पहाड़ की प्रमुख आकर्षणों में से एक है। इसकी लंबाई 50 किलोमीटर के करीब है। यह पूर्व से पश्चिम दिशा में सीजू से तूरा तक फैला हुआ है। तूरा की पहाड़िया अभी नोकरेक नेशनल पार्क के प्रबंधन के तहत आती हैं। नोकरेक की चोटी और इसका बेस तूरा के दक्षिण पूर्व में 13 किलोमीटर क्षेत्र में पसरा हुआ है।

मेघालय में नोकरेक की चोटी न सिर्फ तूरा रेंज की सबसे ऊंची चोटी है, बल्कि यह पूरे गारो हिल्स में सबसे उंची है। नोकरेक चोटी का सबसे ऊपरी सिरा समुद्र तल से 1412 मीटर ऊंचा है। यह बेहद घने हरे भरे जंगल से घिरा है। इसे देश की धरोहर के रूप में स्वीकार किया जाता है और देखरेख और प्रबंधन मेघालय का वन विभाग करता है। नोकरेक चोटी और आसपास नीबू प्रजाति का एक बहुउपयोगी फल पाया जाता है। इसे स्थानीय भाषा में मेमांग नारंग भी कहा जाता है।

इस फल को दुनिया में पाए जाने वाले नीबू वंश के सारे फलों में श्रेष्ठ और सबसे पुराना माना जाता है। इस फल की प्रजाति को संरक्षित रखने के लिए यहां जीन सैंक्चुरी या अभयारण्य स्थापित किया गया है जो दुनिया में अपनी तरह का अकेला है।

आप नोकरेक चोटी तक देरिबोक्ग्रे असांग्रे तूरा रोड से पहुंच सकते हैं। वैसे चोटी पर पहुंचने के लिए देरिबोक्ग्रे गांव से साढ़े तीन किमी बेहद कठिन रास्ता है, जिसमें आपको ज्यादातर ट्रैकिंग करनी होती है। यह जंगली हाथी समेत कई वन्य प्राणियों और ऑर्किड समेत कई बेशकीमती फल फूल और जड़ी बूटियों की शरणस्थली है।

तूरा की चोटी
तूरा की चोटी तूरा रेंज की महत्वपूर्ण चोटियों में से एक है। तूरा रेंज मेघालय के पश्चिम गारो हिल्स के प्रमुख पहाड़ों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। यह करीब 50 किलोमीटर के दायरे में फैला है। पूर्व से पश्चिम दिशा में सीजू से तूरा तक फैला हुआ है। मेघालय के दक्षिण गारो हिल्स जिले में आता है। तूरा की पहाड़िया अभी नोकरेक नेशनल पार्क के प्रबंधन के तहत आती हैं।

तूरा की चोटी पर एक ऑब्जर्वेटरी, एक टूरिस्ट बंगलो और सिंकोना प्लांटेशन हैं। यह आसपास बेहद लोकप्रिय हैं और अपनी अलग पहचान रखते हैं। तूरा की चोटी से दिखने वाला सबसे सुंदर नजारा बांग्लादेश के नदी मैदान और जंगल के दृश्य हैं। ब्रह्मपुत्र की निचली घाटी अपने फूलों के चलते यहां से पीली नजर आती है।

गारो हिल्स रीजन के डिप्टी कमिश्नर गर्मियों में तूरा की चोटी पर ही कॉटेज में रहते हैं। वे यहां से अक्सर हाथी पर बैठकर निचले इलाकों में जाते हैं। वे अक्सर तूरा शहर भी हाथी पर सवार होकर ही जाते हैं।

तूरा शहर का पूर्वी श्रेत्र तूरा की भव्य पहाड़ियों से घिरा हुआ है। तूरा, मेघालय में गारो हिल्स पर बसा सबसे बड़ा शहर है। यह समुद्र तल से 872 मीटर की ऊंचाई पर है। स्थानीय स्तर पर मान्यता है कि मेघालय में तूरा की चोटी सबसे पवित्र स्थान है, जहां भगवान निवास करते हैं। किंवदंती है कि इस स्थान का असली नाम दूरा है, लेकिन अंग्रेज उच्चारण की गलती कर इसे तूरा कहने लगे और इसके धीरे धीरे तूरा नाम ही प्रचलित हो गया। तूरा रेंज को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया है। हालांकि, इसके बहुत सारे इलाके में अतिक्रमण हो गया है और यहां झोपड़ी से लेकर बड़ी बड़ी इमारतें बन गई हैं।

बालपक्रम
बालपक्रम मेघालय का एक वाइल्ड लाइफ पार्क है। यह क्षेत्र बाघमारा से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मेघालय के बालपक्रम में जंगली गाय, जंगली भैंसे, जंगली हाथी तो मिलते ही हैं, यहां बहुत सी बेशकीमती जड़ी बूटियां भी पाई जाती हैं। इनसे आयुर्वेदिक से लेकर एलोपैथिक दवाइयां बनाई जाती हैं। बालपक्रम इलाके की विविधता और उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ही केंद्र सरकार ने बालपक्रम नेशनल पार्क की स्थापना की है। कोई भी व्यक्ति सिब बारिविया से इस पार्क में आसानी से आ सकता है। सिब बारिविया, शिलांग बैलूत रानीकोर मोहेशखोला बाघमारा रोड पर है और यहां परिवहन के पर्याप्त साधन हैं।

बालपक्रम से देश की खूबसूरती तो निहारी ही जा सकती है। विदेश यानी बांग्लादेश के हरे भरे मैदानों को देखना भी यहां से बेहद रोमांचक व अलग अनुभव देता है। बांग्लादेश का यह इलाका ब्रह्मपुत्र और सहायक नदियों के कारण हमेशा पानी से भरपूर रहता है। हरा भरा रहता है। बालपक्रम का पठारी इलाका पत्थरों और चट्टानों से भरा है। बेहद सख्त है। गारो की जनश्रुति है कि बालपक्रम के पठार पर धर्मनिष्ठ लोगों की पुण्यात्मा वास करती है। इसी वजह से गारो इस पठार को बड़ी श्रद्धा से देखते हैं। बालपक्रम में मेधालय की विविध और रहस्यमयी गुफाओं के अलावा भी कुछ घूमने लायक स्थान हैं। इनमें से कुछ प्रमुखः
    • चिडमैकः यह बालपक्रम में एक काले रंग का तालाब है। गारो जनजाति की मान्यता है कि लोगों के मरने के बाद उनकी आत्मा इस तालाब में स्नान करती है और उसके बाद ही दूसरी दुनिया में जाती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मरने वाले व्यक्ति के पाप इसी तालाब में धुल जाते हैं और इसी कारण यहां का पानी काला हो गया है।

  • दिक्कनी रिंगः बालपक्रम के दक्षिणी क्षेत्र में महादेव गांव के पास एक भारी भरकम लेकिन चपटी चट्टान है। इस चट्टान की आकृति कुछ ऐसी है जैसे पलटी हुई नाव रखी हो। गारो जनजाति की धार्मिक मान्यता है कि कई साल पहले गारो प्रजाति के नायक डिकी रात में एक बोट बना रहे थे तभी एक मुर्गा बोला और डिकी का ध्यान भटक गया। उनका ध्यान भटकने के साथ ही आधी बनी नाव चट्टान में तब्दील हो गई। इस मान्यता का संदेश ये है कि सिर्फ आत्माएं ही रात में काम कर सकती हैं।

इमिलचैंग डेयर
इमिलचैंग मेघालय में एक वॉटरफॉल या झरना है, जो पर्यटकों में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर है। यह पश्चिम गारो हिल्स जिले में तूरा रोड पर चोकपॉट के बेहद करीब है। झरने से पानी की मोटी धार गिरती है, जो हर पर्यटक को अपनी ओर लुभाती है। पानी नीचे गिरने के बाद यह झरना चौड़े और गहरे पूल में तब्दील हो जाता है। इस पूल को पर्यटक अक्सर स्वीमिंग पूल की तरह इस्तेमाल करते हैं। यह पूल विभिन्न प्रकार की मछलियों व अन्य जीवों का घर भी है। झरने और बड़े पूल के कारण यह लोगों का पसंदीदा पिकनिक स्पॉट बन गया है।

वॉटरफॉल का तेज बहता पानी पत्थरों के बीच से होकर गुजरता है। इस कारण इसके रास्ते में चट्टानों की कुछ सुंदर बिस्तरनुमा आकृति बन गई है। यह बेहद संकरी और गहरी है। आगे चलकर यह बहुत चौड़ी हो जाती है और गहरी खाई में तब्दील हो जाती है।

हवाई मार्ग सेः गारो हिल्स पर मौजूद इमिलचैंग की यात्रा के लिए यदि आप हवाई मार्ग तलाश रहे हैं तो सबसे नजदीकी विमानतल गुवाहाटी रहेगा। गुवाहाटी से शिलांग बस, कार या निजी टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। गुवाहाटी से शिलांग जाने के लिए नियमित बसों की सुविधा ली जा सकती है। पवनहंस नाम की निजी हेलिकॉप्टरों की कंपनी मेघालय से शिलांग और तूरा से लेकर आसपास कहीं भी हेलिकॉप्टर सुविधा उपलब्ध कराती है। मेघालय सरकार ने इस कंपनी को बाकायदा लाइसेंस और सुविधा दे रखी है।

सड़क मार्ग सेः अगर आप देश या विदेश के किसी कोने से इमिलचैंग आ रहे हैं तो पहले गुवाहाटी आइए। गारो हिल्स और मेघालय राज्य परिवहन निगम राजधानी शिलांग से गुवाहाटी बस चलाते हैं। शिलांग पहुंचने के बाद भी आपके लिए बस से यात्रा करने का विकल्प हमेशा मौजूद रहेगा।

रेलमार्ग सेः इमिलचैंग की यात्रा के लिए रेलमार्ग चुनने पर आपको सबसे पहले गुवाहाटी आना होगा। गुवाहाटी से शिलांग जाने के लिए आपको सड़क मार्ग से जाना होगा। शिलांग से आगे भी सड़क मार्ग उपलब्ध है।

नफक लेक
नफक लेक या झील मेघालय के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह राज्य के लोकप्रिय पर्यटन स्थल विलियमनगर से 45 किमी. दूरी पर स्थित है। यह झील फिशिंग करने और चिड़ियों को देखने के लिए बड़ी अनुकूल जगह है। नफक झील मेघालय की प्राकृतिक रूप से बनी झील है। यह 1897 के दौरान आए भूकंप यानी राष्ट्रीय आपदा के दौरान खुद ब खुद बनी। नफक झील तूरा रेंज से 112 किमी. दूर और सिमसैंग नदी के पास है।

इस झील के बारे में कई गारो जनजातीय किंवदंतियों भी प्रचलित हैं। नफक के बारे में कहा जाता है कि यह जमीन मृत आत्माओं के लिए थी। लेकिन वे यहां होने वाली हलचल से परेशान थे। इसलिए ये मृत आत्माएं यहां से नाराज होकर बालपक्रम की गुफाओं में चली गईं।

रेलमार्ग सेः नफक झील की यात्रा के लिए रेलमार्ग चुनने पर आपको सबसे पहले गुवाहाटी आना होगा। गुवाहाटी देशभर से ट्रेन रूट से जुड़ा हुआ है। गुवाहाटी पहुंचने के बाद आगे का रास्ता सड़क मार्ग का है।

सड़क मार्ग सेः इस झील तक आने के लिए आपको पहले गुवाहाटी आना होगा। यहां से आपको बस सुविधा मिलेगी। राज्य का परिवहन विभाग यहां से शिलांग और अन्य पर्यटन स्थलों के लिए साधारण और लग्जरी बसें चलाता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप कौन सी बस या टैक्सी चुनते हैं।

हवाई मार्ग सेः नफक झील की यात्रा के लिए किसी भी व्यक्ति को मेघालय के पहाड़ों के तूरा रेंज में पहुंचना होगा। हवाई मार्ग के लिए यहां से सबसे नजदीक गुवाहाटी है। गुवाहाटी से शिलांग बस, कार या निजी टैक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके लिए नियमित अंतराल पर बसें हैं। निजी हेलिकॉप्टर की सुविधा भी आपको मिल जाएगी। हेलिकॉप्टर एक निजी कंपनी पवनहंस हेलिकॉप्टर लिमिटेड के हैं। मेघालय सरकार ने इस कंपनी को बाकायदा लाइसेंस दे रखा है।

तेतेंगकोल
तेतेंगकोल अपनी गुफाओं के लिए मशहूर है। यह नेंगखोंग गांव के पास है, जो सीजू से 115 किलोमीटर दूर पड़ता है। इस गुफा का प्रवेश द्वार ज्यादा बड़ा नहीं है। सिर्फ एक मीटर व्यास वाले सर्कुलर शेप के प्रवेश द्वार से अंदर जाया जा सकता है।

हालांकि, इसके प्रवेश द्वार से इसकी विशालता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। इसकी कुल लंबाई 5,334 मीटर यानी 5 किलोमीटर से भी अधिक है। मौजूदा समय में तेतेंगकोल गुफा देश की दूसरी सबसे लंबी गुफा है। इसे स्थानीय स्तर पर उल्टे मुंह वाली गुफा भी कहा जाता है।

सड़क मार्ग सेः पर्यटकों की सुविधा के लिए यहां आने वाली अनेक बसें हैं। ये बसें साधारण से लेकर एसी डीलक्स तक हैं। राज्य का परिवहन विभाग यहां से शिलांग और अन्य पर्यटन स्थलों के लिए नियमित बसें चलाता है।

हवाई मार्ग से: मेघालय के तेतेंगकोल की यात्रा के लिए किसी भी व्यक्ति को गारो हिल्स पहुंचना होगा। अगर हवाई मार्ग से आ रहे हैं तो गुवाहाटी उतरना सबसे सुविधाजनक होगा। यह तेतेंगकोल का सबसे करीबी एयरपोर्ट है। गुवाहाटी से शिलांग बस, कार या निजी टैक्सी से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

पर्यटक गुवाहाटी एयरपोर्ट से सीधे मेघालय की राजधानी शिलांग की बसें पकड़ सकते है। निजी हेलिकॉप्टर की सुविधा भी आपको मिल जाएगी। यह सुविधा निजी कंपनी पवनहंस हेलिकॉप्टर लिमिटेड देती है।

रेलमार्ग सेः गारो हिल्स के पर्यटन स्थलों के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन गुवाहाटी है। यह रेलवे स्टेशन न सिर्फ पर्यटकों की मेघालय आने में मदद करता है, बल्कि देश भर के लोगों की गारो हिल्स की यात्रा आसान बनाता है। जाहिर है तेतेंगकोल की गुफा देखने आने वालों को अपने रेल सफर को यहीं विराम देना होगा, जिससे वे अंतरराष्ट्रीय ख्यात प्राप्त भारतीय गुफा देख सकेंगे। गुवाहाटी पहुंचने के बाद आगे का रास्ता सड़क मार्ग का है।

बोक बक दोभाकोल
मेघालय की धरती अपनी बेशुमार रोचक रोमांचक गुफाओं के लिए मशहूर है। इनके कारण ही मौजूदा समय में देश का प्रमुख पर्यटन स्थल बन गया है। यहां 1,000 आश्यर्चजनक गुफाएं हैं और बोक बक दोभाकोल इनमें से एक है, जो बेहद मशहूर है। 1,051 मीटर लंबी यह गुफा अपनी खूबियों के चलते अलग पहचान रखती है और वह इसकी हकदार भी है। लेकिन बोक बक दोभाकोल के साथ एक अनचाही चीज भी जुड़ी है जो पर्यटकों को थोड़ा परेशान कर सकती है और वह है इसका ठीक से सीमांकन न होना। सही प्लाटिंग न होने से पर्यटकों का कई बार यहां समय भी खराब होता है।

बोक बक दोभाकोल नदी की सीमा पर स्थित है और बहुत बार इसकी खाली जगह नदी के विस्तार का शिकार भी हो जाती है। कई बार नदी का पानी पूरे बोक बक दोभाकोल गुफा में भर जाता है। हालांकि, ऐसा हमेशा नहीं होता है और पहले से पता करके यहां घूमने जा सकते हैं। नदी की यह करीबी उसकी सबसे बड़ी खूबी और खूबसूरती का कारण भी है।

बोक बक दोभाकोल की गुफा मेघालय की अकेली ऐसी गुफा है जो अपनी आलौकिकता की वजह से पर्यटकों को अपनी ओर सबसे ज्यादा खींचती है। लोग यहां अपनी उत्सुकता और जिज्ञासा के साथ साल भर आते रहते हैं।

बोक बक दोभाकोल की एक और सबसे बड़ी खासियत यह है कि बरसात में इसका अधिकतर हिस्सा पानी से भर जाता है। वास्तव में, बरसात में इसके भीतर जाना असंभव हो जाता है। इसलिए यदि आप इस गुफा में घूमने की योजना बना रहे हैं तो ध्यान रखें कि मानसून से आपकी टाइमिंग न टकराए।

यह भी ध्यान रखें कि जब आप बोक बक दोभाकोल जा रहे हैं तो आपके पास सभी सुरक्षात्मक और प्राथमिक चिकित्सा से जुड़े साधन हों। बोक बक दोभाकोल की गुफा में बाकी गुफाओं के मुकाबले अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत होती है। इसलिए आप यहां आने से पहले पेशवर गाइड कर लें, जो आपको सही रास्तों से गुफा में भ्रमण करा सके।

थादलस्कीन लेक
पर्यटन मेघालय की इकोनॉमी की जीवनरेखा है। मेघालय में भारत और वैश्विक स्तर की कुछ नैसर्गिक सुंदरता वाली जगहें हैं। थादलस्कीन झील मेघालय की इसी सुंदरता में एक और रंग भरती है। पर्यटकों को यहां आने पर यह महसूस होता है कि उन्होंने पर्यटन के लिए सही जगह पर पैसे खर्च किए हैं।

थादलस्कीन झील और मेघालय के अन्य पर्यटन स्थलों में एक बड़ा अंतर यह है कि यह कृत्रिम झील है और प्रकृति की बनाई रचना नहीं है। यह झील शिलांग से जोवाई के रास्ते पर जंगलों के बीच है। झील तक पहुंचने के लिए धान के खेत, हरे भरे मैदान, और ओक व चीड़ के जंगल को पार करना होता है। इस झील तक पहुंचे के लिए दो सबसे लोकप्रिय रास्ते जोवाई और शिलांग की ओर से ही हैं। थादलस्कीन शिलांग से 56 किमी की दूरी पर है और जोवाई से महज 8 किमी है। यह नेशनल हाइवे 44 के करीब है।

जहां तक इसके उद्गम या बनाए जाने की जानकारी है, वह दस्तावेजी बातों से ज्यादा जनश्रुति पर आधारित है। माना जाता है कि यह झील जयंतिया हिल्स के प्रसिद्ध नायक यू सजर नांगली के समर्थकों द्वारा तीर के नोक से खोदी गई थी। यह मिंत्दू नदी, जंगल और घास के मैदान के बीच स्थित है। झील के आसपास की वनस्पति और जीव जंतु भी इसके आकर्षण की बड़ी वजह हैं। हजारों पर्यटक यहां की ताजा और शांत वातावरण का आनंद लेने खिंचे चले आते हैं। हालांकि, इसके रास्ते में भूस्खलन की आशंका और मेघालय के मौसम की अनिश्चितता यहां आने वालों का एडवेंचर और बढ़ा देती है। इसमें कोई शक नहीं कि जो पर्यटक शांति और सुकून की तलाश में घर से निकलते हैं, थादलस्कीन झील उनकी सभी उम्मीदों को पूरा करती है।

थादलस्कीन झील वैसे तो साल भर पर्यटकों से भरी रहती है। लेकिन सितंबर से मई के बीच इसकी नैसर्गिक सुंदरता अपने शबाब पर होती है और इस वक्त आने वाले पर्यटक इसकी छवि शायद ही कभी भूल पाते हों।

स्प्रेड ईगल फॉल्स
प्रकृति ने मेघालय की धरती को विविध और अनूठी वनस्पतियों और जीव जंतुओं से नवाजा है और दर्जनों झरनों से इसे संतुलित भी किया है। वास्तव में मेघालय के झरनों को दो तरह से बांटा जा सकता है, पहला फ्रेश फ्रॉम द हैंड ऑफ द गॉड यानी बारिश के दिनों में कल कल करते झरने और दूसरा साल के बारह महीने एक से बहने वाले झरने। यकीनन, इसमें पहला झरना कई बार आसपास के लोगों को हताहत भी करता है जबकि दूसरा सिर्फ पर्यटकों को सुकून देता है। इनसे किसी तरह के नुकसान की कोई संभावना नहीं। स्प्रेड ईगल फॉल्स मेघालय के उन झरनों में से एक है जो सिर्फ आनंद की अनुभूति कराता है। स्प्रेड ईगल फॉल्स, जैसा नाम से स्पष्ट है इसकी आकृति ईगल की तरह है जो अपने दोनों पंखे फैलाए हुए हो।

स्प्रेड ईगल फॉल्स मेघालय की राजधानी शिलांग के बाहरी छोर पर कुछ ही दूरी पर है। इसलिए लोगों के लिए इस झरने तक पहुंचना बेहद आसान है। यह शहर के पोलो ग्राउंड से महज डेढ़ दो किलोमीटर की दूरी पर है। स्प्रेड ईगल फॉल्स खड़ी चट्टान पर है और चट्टानों पर गिरता पानी, उसके बुलबुले और हवा में उड़ती बारीक भाप सी बूंदे पर्यटकों को रोमांच से भर देती हैं। अपने नाम की ही तरह स्प्रेड ईगल फॉल्स बड़ी उंचाई पर है, जैसे यह हंसता हुआ प्रकृति के और करीब जाना चाह रहा हो। लेकिन बारिश के दिनों में इसका हंसमुख और मनमोहक रूप घमंड में तब्दील हो जाता है। यहां सालभर में 600 से 1,000 सेमी तक बारिश होती है। ज्यादा बारिश से अक्सर स्प्रेड ईगल फॉल्स अपना दायरा भी बढ़ा लेता है और तब इससे भयानक आवाजें निकलती हैं और यह बेहद डरावना भी हो जाता है।

स्प्रेड ईगल फॉल्स की नैसर्गिक सुंदरता हर साल हजारों पर्यटकों को यहां खिंच लाती है। साल के अधिकतर दिन यहां काफी भीड़ होती है। यह मेघालय का बेहद लोकप्रिय स्थान है। इसलिए यदि आप मेघालय में हैं तो अपने घूमने वाले स्थानों की सूची में इसका नाम भी जरूर जोड़ लें।

क्रिनोलाइन फॉल्स
क्रिनोलाइन फॉल्स मेघालय की खूबसूरत राजधानी शिलांग के बीचोबीच स्थित है। इसके पास ही लेडी हैदरी पार्क भी है, जो छोटा सा एनिमल पार्क है। क्रिनोलाइन फॉल्स बेमिसाल खूबसूरती के चलते दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाता है। झरने से आती गड़गड़ाहट की आवाजें कई सौ मीटर दूर तक सुनी जा सकती हैं।

पूर्वोत्तर राज्य मेघालय अपने सजीव और शांत वातावरण और सुरम्य पर्यटन स्थलों के लिए जाना जाता है। एक समय था जब इस राज्य को ज्यादा अहमियत नहीं दी जाती थी और यह भारतीय पर्यटन के मानचित्र और सूची में कहीं नहीं था। लेकिन अब इस स्थति में बड़ा बदलाव आ चुका है। मेघालय में प्राकृतिक खूबसूरती तो पहले से ही है। यहां की सरकार ने भी कुछ कम विकसित स्थलों का विकास करवाकर इन्हें और आकर्षक बना दिया है ताकि पर्यटक यहां ज्यादा से ज्यादा वक्त बिता सकें।

क्रिनोलाइन फॉल्स की बात करें तो इसका ऊपरी हिस्सा हरियाली की चादर ओढ़े हुए है। इससे झरने के उस स्थान को देखना मुश्किल हो जाता है जहां से पानी गिरता है। लेकिन झरने के निचले हिस्से में बड़ा स्वीमिंग पूल है जो पर्यटकों को, खासकर तैराकी पसंद करने वालों को ठंडे और गहरे पानी में डुबकी लगाने के लिए ललचाता है।

क्रिनोलाइन फॉल्स के शहर के बीच में होने से पर्यटकों को यहां कई अन्य सुविधाएं मिल जाती हैं जो दूसरे फॉल्स के करीब नहीं होतीं। इस झरने के आसपास कई रेस्टोरेंट हैं। इनमें देश विदेश के विभिन्न स्वादिष्ट पकवान मिल जाते हैं। इस वजह से खाने के शौकीन लोगों की भी यह पसंदीदा जगह है। मेघालय का पर्यटन विभाग इस झरने के आसपास और खासकर स्वीमिंग पूल के किनारे समय समय पर कुछ आयोजन करता रहता है। इन आयोजनों का आकर्षण पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।


अंतिम संशोधन : जुलाई 24, 2018