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भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ – भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में इसकी भूमिका

August 11, 2017


quit-india-movement-anniversary-hindiभारत छोड़ो आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय इतिहास के सबसे बड़े आंदोलनों में से एक है। इस आंदोलन ने भारत में लंबे समय से चले आ रहे ब्रिटिश औपनिवेशकों के कानून (शासन) से आजादी प्राप्त करने में बहुत मदद प्रदान की है।

महात्मा गाँधी द्वारा 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बॉम्बे सत्र में ब्रिटिश शासन के तत्काल अंत की मांग के लिए नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया, इस आंदोलन को अगस्त आंदोलन या अगस्त क्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है। मार्च 1942 में क्रिप्स मिशन की विफलता के कारण यह आंदोलन काफी लंबे समय तक चला।

क्रिप्स मिशन

ब्रिटिश सरकार ने भारतीय लोगों से बिना कोई परामर्श किये भारत को एकतरफा द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया। अपने प्रयासों से द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का पूर्ण समर्थन प्राप्त करने तथा राजनीतिक गतिरोध को शांत करने के उद्देश्य से, ब्रिटिश सरकार ने प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल के कैबिनेट के एक मंत्री सर स्टॉफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। इसके पीछे ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य अपनी सरकार के वादे से साथ द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को पूर्ण सहयोग, भारत के लिए एक प्रभुता और साथ ही इस युद्ध के बाद भारत में चुनाव का आयोजन करने के लिए  सहमत करना था। इस प्रस्ताव में क्रिप्स के स्वयं के विचार थे, भारतीयों के साथ-साथ ब्रिटिश सरकार को भी इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए सामान्य ही नहीं बल्कि बहुत कट्टरपंथी पाया गया।

भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए इंकार कर दिया, महात्मा गाँधी ने युद्ध के बाद भारत के लिए प्रभुता की पेशकश की तुलना बर्बाद होती बैंक के द्वारा दिये गये पोस्ट डेटेड चेक से की, अंततः यह मिशन विफल रहा। 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा भारत में ब्रिटिश शासन को तुरन्त समाप्त करने की घोषणा की जरूरत पर एक प्रस्ताव पारित किया।

भारत छोड़ो आंदोलन, 1942

8 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में अपने भारत छोड़ो भाषण में करो या मरो का आह्वान किया। ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा और क्रियान्वयन द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में किया गया।

अपने भारत छोड़ो भाषण में महात्मा गाँधी ने दोहराया कि यह आंदोलन निश्चित ही एक निष्क्रिय प्रतिरोध था, क्योंकि आंदोलन को पूरी तरह से भारत की स्वतंत्रता के लिए निर्देशित किया गया था यह सत्ता प्राप्त करने के लिए संघर्ष या तानाशाही स्थापित करने के लिए सैन्य तख्तापलट नहीं था। जब भी स्वतंत्रता की शक्ति प्राप्त होगी वह पूर्णतया भारतीयों के लिए होगी।

इस विद्रोह से आखिरकार भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। महात्मा गाँधी द्वारा दिये गए भारत छोड़ो के नारे में संदेह के लिए कोई स्थान नहीं था। इस नारे से स्पष्ट था कि ब्रिटिशों का भारत में अब और स्वागत नहीं है और उनको भारत छोड़ना पड़ा। गाँधी द्वारा दिये गए नारे “करो या मरो” ने भारतीयों में आजादी प्राप्त करने के लिए एक नया जोश भर दिया।

इस आंदोलन में गाँधी जी के साथ कांग्रेस के सभी नेताओं को ब्रिटिश सरकार के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन यह गिरफ्तारी भारतीयों के प्रतिरोध को शांत नहीं कर पाई और प्रत्यक्ष नेतृत्व के अभाव के बावजूद, वयस्क पूरूषों द्वारा किये जाने वाले नेतृत्व की कमी के बाद महिलाओं और छात्रों के नेतृत्व में देश भर में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किये गए। सभी प्रदर्शन शांति पूर्ण नहीं थे, अंततः अंग्रेजों ने कांग्रेस पर बैन (प्रतिबंध) लगा दिया था। हालांकि यह केवल लोगों के बीच सहानुभूति बनाने की दिशा में काम करता था, मजदूर काम पर नहीं गये और गैर सामूहिक रूप से हड़ताल कर दी। हिंसा में कई नागरिक मारे गये और कई लोगों को पुलिस और सेना के द्वारा गोली मार दी गई, इसके साथ ही आंदोलन समाप्त हो गया।

भारत छोड़ो आंदोलन 1944 में विफल हो गया था, यह सच है। हालांकि, यह पराधीनता के लिए अंतिम संघर्ष साबित हुआ। इसने कांग्रेस को एकजुट होकर नेतृत्व करने में मदद की और राष्ट्रीय आंदोलन के तत्काल एजेंडे पर स्वतंत्रता की मांग को स्थापित किया। भारत छोड़ो आंदोलन के बाद, भारत की स्वतंत्रता पर सौदा या समझौता करने की कोई संभावना नहीं थी और ब्रिटिश सरकार के साथ किसी भी प्रकार की बातचीत का तो सवाल ही नहीँ उठता था। अब तो केवल एक ही मांग थी और वह थी सत्ता का हस्तांतरण। इस आंदोलन के केवल 3 साल बाद, 1947 में अंग्रेजों ने भारत को अपने हथियार सौंप दिये और देश छोड़ कर चले गये।

इस प्रकार 75 साल

1942 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गए भारत छोड़ो आह्वान के अब 75 साल बीत चुके हैं। कांग्रेस के साथ भारतीय जनता पार्टी ने इस आंदोलन का सम्मान किया था जो भारत में ब्रिटिश राज के अंत की शुरूआत थी। भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वीं वर्षगांठ पर भाजपा युवा मोर्चा (भाजपा युवा विंग) “भारत जोड़ो अभियान” शुरू करने की योजना बना रही है।

महात्मा गाँधी के शब्दों का आज भी प्रतिवाद किया जाता है और वर्तमान राजनीतिक दुनिया में भी यह प्रचलित हैं। इन शब्दों में कहा गया था कि “आज़ादी के बाद जो भी ताकत आएगी उसका संबंध भारत की जनता से होगा और भारत की जनता ही ये निश्चित करेगी की उन्हें यह देश किसे सौंपना है।”