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ट्रंप द्वारा नए एच 1-बी वीजा नियमों का भारतीयों पर कड़ा प्रहार

April 22, 2017


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डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी वादों को पूरा करने का तरीका आमेरिकी हितों को नुकसान पहुंँचा सकता है। अपने राष्ट्रपति पद के तीन महीने के शासन के दौरान डोनाल्ड ट्रंप के पास दिखाने के लिए लगभग कुछ भी नहीं है। एक विद्रोही अमेरिकी राष्ट्रपति, जिसे गुलदस्ते की तुलना में आलोचना ज्यादा मिली है, 18 अप्रैल को एच-1 बी वीजा, एक गैर-अप्रवासी वीजा के प्रवर्तन के एक सख्त कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जो अमेरिकी नियोक्ताओं को अस्थायी रूप से विशेष व्यवसायों में विदेशी श्रमिकों को रोजगार देने की अनुमति देता है जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी व्यवसाय।
पिछले कुछ महीनों में, एच-1 बी वीजा कार्यक्रम को गहरे संकट में पाया गया, जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों के उच्च वेतन वाले अमेरिकी श्रमिकों को काम पर रखने से बचाने के लिए उन्हें अपमानित करने की आलोचना की। लॉटरी प्रणाली के माध्यम से कुशल विदेशी श्रमिकों को बाहर निकाल दिया गया, और ऐसा कहा जाता है कि वर्तमान में 60,000 से 90,000 श्रमिक अमेरिका में एच-1 बी वीजा पर कार्यरत हैं।

गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी आईटी कंपनियां अमेरिकी राष्ट्रपति के इस कार्यकारी आदेश से सबसे ज्यादा प्रभावित होगी। सुंदर पिचई और सत्य नडेला की अध्यक्षता वाली ये दोनों अमेरिकी कंपनियां अपनी कंपनियों के आईटी से संबंधित कार्यों को पूरा करने के लिए भारतीय मूल के पेशेवर तथा कुशल विदेशी श्रमिकों पर निर्भर करती हैं।
विडंबना यह है कि कई अमेरिकी कंपनियां, अमेरिकी अर्थव्यवस्था के विकास में विदेशी श्रमिकों की भूमिका का आंकलन करे बिना ही एच-1 बी वीज़ा पर ट्रंप के फैसले का समर्थन करती है। वे कहते हैं कि नया वीजा कानून उन लोगों के लिए भी लागू होगा जिनके पास मास्टर या पी एच.डी जैसी उन्नत डिग्री है। डोनाल्ड ट्रंप के 45 वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण करने से कुछ हफ्ते पहले दो अमेरिकी कांग्रेसियों ने एच-1 बी वीजा के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए एक बिल पेश किया था।
एच 1-बी वीजा की फीस में वृद्धि 60,000 से वर्तमान में न्यूनतम 100,000 अमेरिकी डालर करने की मांँग के साथ, बिल से मास्टर डिग्री छूट को हटाने की मांग की है। डिज्नी और दक्षिणी कैलिफोर्निया की एडिसन जैसी कंपनियों ने आईटी के आउटसोर्सिंग के लिए बेंगलूर-आधारित कंपनियों को आउटसोर्स करने के बाद बिल जारी किया था। इस बात की शंका की जा रही थी कि अमेरिका अपनी कंपनियों पर विदेशी लोगों के चयन को लेकर एच-1 बी  वीजा के उपयोग के लिए दवाब बढ़ाएगा। जैसा कि अब यह एक वास्तविकता बन गई है, एक बड़ा सवाल पूछा जा रहा है कि अमेरिका ने ऐसे संरक्षणवादी उपाय क्यों किए हैं? क्या यह अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को नुकसान नहीं पहुंँचाएगा? हाँ, यह अमेरिकियों को नुकसान पहुंँचाएगा लेकिन विदेशी कंपनियों के लिए एच-1 बी वीजा के वितरण पर डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय से भारतीय कंपनियों को सबसे ज्यादा तगड़ा झटका मिलेगा।

ट्रंप के निर्णय से भारतीयों पर प्रभाव
केवल प्रमुख अमेरिकी कंपनियों ही नहीं, यहांँ तक ​​कि स्टार्ट-अप कंपनियाँ भी अपने अनुसंधान और अनुप्रयोग कार्यों को पूरा करने के लिए भारतीय आईटी पेशेवरों पर निर्भर करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही गहरी वित्तीय जेब वाली शीर्ष अमेरिकी कंपनियां अपने कामों का प्रबंधन कर लें, लेकिन अमेरिकी स्टार्ट-अप कंपनियों को अत्यधिक प्रतिस्पर्धी आईटी मार्केट में जीवित रहने में मुश्किल हो जाएगी। ऐसा कहा जाता है कि कम बजट वाली छोटी अमेरिकी कंपनियां ट्रंप की नीति “बाय अमेरिकन,हायर अमेरिकन” का समर्थन नहीं कर पाएगीं। वे तंग बाजार में अपनी प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि वीजा प्रणाली, जो कि उच्चतम भुगतान करने वाले श्रमिकों के पक्ष में है, सफल और उच्च भुगतान वाली कंपनियों जैसे-माइक्रोसॉफ्ट, ओरेकल, फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों में काम करने वाले अप्रवासियों को धक्का दे देगी। दूसरी ओर, अमेरिका और यूरोप में सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्यातक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी भारतीय आईटी कंपनियों का कहना है कि उन्होंने पिछले कुछ सालों से पहले ही लागू वीजा की संख्या कम कर दी है। वे कहते हैं कि वे अमेरिका में पहले से ही विकास केंद्र स्थापित हो चुके हैं और यह विकास केंद्र स्थानीय इंजीनियरों की भर्ती कर रहे हैं। भारतीय आईटी प्रमुख, इंफोसिस का कहना है कि यह अमेरिका में स्थानीय समुदायों में निवेश करना जारी रखता है और यह परियोजनाओं पर तैनाती के लिए स्थानीय इंजीनियरों की भर्ती कर रहा है।

निष्कर्ष
यद्यपि भारतीय कंपनियांँ पहले से अमेरिकियों की आवश्यकता के अनुरूप खुद को ऊपर उठाना शुरू कर चुकी हैं, फिर भी ऐसे कई लोग हैं, जो अपनी प्रतिभा और प्रशिक्षण के आधार पर अमेरिका में काम करने का सपना देखते हैं, लेकिन अब उनके सपने अधूरे रह जाएंगें क्योंकि ट्रंप ने एच-1 बी वीजा के अनुदान पर सख्त नियम रखे हैं। यह आवेदकों की व्यक्तिगत डिग्री की जांँच और कड़ी स्क्रीनिंग के बाद केवल कुछ लोगों को प्रदान किया जाएगा।