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बलूच नेता ब्रह्मदाग बुगती भारत में क्यों चाहते हैं शरण

November 12, 2016


भारत में राजनीतिक शरण लेना चाहता है बलूच नेता ब्रहुमदाग बुगती

भारत में राजनीतिक शरण लेना चाहता है बलूच नेता ब्रहुमदाग बुगती

बलूच नेता ब्रहुमदाग बुगती ने भारत में राजनीतिक शरण लेने का फैसला किया है। ब्रहुमदाग बुगती, नवाब अकबर बुगती के पोते हैं। वे बलूच रिपब्लिकन पार्टी (बीआरपी) के अध्यक्ष और बुगतियों के प्रमुख हैं। बलूचिस्तान में बुगती जनजाती की आबादी सबसे ज्यादा है। जनरल परवेज मुशर्रफ के राष्ट्रपति काल में ब्रहुमदाग बुगती 2006 में अपने दादा की हत्या के बाद बलूचिस्तान से भाग निकले थे। अफगानिस्तान में बने पासपोर्ट के आधार पर वे जेनेवा में रह रहे हैं। हालांकि, स्विट्जरलैंड में वे राजनीतिक गतिविधियों से दूर ही रहे।

बीआरपी की एक मीटिंग के बाद बुगती ने राजनीतिक शरण लेने की प्रक्रिया की कानूनी कार्यवाही शुरू करने का फैसला लिया गया। इसी बैठक में बुगती के भारत शिफ्ट होने के विकल्प की समीक्षा की गई और उसे मंजूरी दी गई। बीआरपी के प्रवक्ता अजीजुल्लाह बुगती ने कहा- “बलूच रिपब्लिकन पार्टी की केंद्रीय समिति ने बुगती के भारत में राजनीतिक शरण लेने की कोशिश करने को मंजूरी दे दी है। इस समय हमें सबसे ज्यादा चिंता हमारी पार्टी के अध्यक्ष की है और इसी वजह से राजनीतिक शरण के फैसले को मंजूरी दी जाती है। हमने अब तक यह तय नहीं किया है कि उनके साथ भारत के सफर पर कौन जाएगा। इसका फैसला उन्हें ही करना है। पार्टी जरूरत के अनुसार उनके साथ कार्यकर्ताओं को भेजेगी।”

इसी महीने की शुरुआत में, बुगती ने इच्छा जताई थी कि पाकिस्तान से उनकी मातृभूमि की आजादी की लड़ाई में भारत उनका साथ दे। उन्होंने इसके लिए दलाई लामा और शेख मुजीबुर रहमान को भारत की ओर से किए गए सहयोग का उदाहरण भी दिया। बुगती ने उम्मीद जताई कि जरूरत पड़ने पर उन्हें भी ऐसा ही सहयोग अपनी मातृभूमि को आजाद करने में भारत की ओर से मिलेगा।
इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए जरूरी है बलूचिस्तान प्रांत के बारे में और जानकारी रखनाः

बलूचिस्तान पाकिस्तान के चार में से एक प्रांत है। पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत बलूचिस्तान में आता है। यानी तकरीबन आधा पाकिस्तान बलूचिस्तान में बसता है। यह देश का सबसे बड़ा प्रांत है। इसकी आबादी 1.3 करोड़ है। यानी पाकिस्तान की कुल आबादी का तकरीबन 7 प्रतिशत। बलूचिस्तान की मौजूदा समस्या को समझने के लिए आपको कुछ बातों की जानकारी होनी जरूरी है-
बलूचिस्तान रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण स्थिति में है। उसकी सीमाएं पंजाब, सिंध, एफएटीए के साथ ही अफगानिस्तान और ईरान से टकराती हैं।

बलूचिस्तान में ही वह ग्वादर पोर्ट भी है, जिसका पाकिस्तान के लिए बहुत महत्व है।

यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है। इसमें तेल, गैस, तांबा और स्वर्ण की खदानें हैं। यहां की अर्थव्यवस्था प्राकृतिक गैस के भंडारों से चलती है।

बलूचिस्तान में रहने वाली मुख्य जनजातियों में बलूच, पश्तून और ब्राहुई शामिल हैं।

बलूच जनजाति के लोगों के रीति-रिवाज, संस्कृति और सामाजिक ताना-बाना पाकिस्तान के अन्य प्रांतों से बिल्कुल जुदा है। उन्हें ऐसा लगता है कि पंजाबी उन पर हुकूमत कर रहे हैं।

खनिज संपदा से समृद्ध होने के बाद भी यह प्रांत गरीब और पिछड़ा हुआ है।

आजादी से पहले बलूच प्रांत 4 रियासतों में बंटा हुआ था।

1947 में जब पाकिस्तान का जन्म हुआ, तब रियासतों ने नए राष्ट्र में शामिल होने से इनकार कर दिया था।

पाकिस्तान ने ताकत के दम पर मार्च 1948 में बलूचिस्तान पर कब्जा जमाया।

उस समय के शासक यार खान ने संधि पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन उनके भाई और समर्थक इसके खिलाफ लड़ते रहे। इस वजह से इस प्रांत ने उग्रवाद के पांच दौर देखे हैं। खासकर 1958, 1962-63 और 1973-77 के बीच भयावह समय का सामना प्रांत ने किया।
पाकिस्तान से आजादी के लिए हिंसक अभियान भी शुरू किए गए।

1977 के बाद, दो दशक तक शांति रही। जनरल परवेज मुशर्रफ 1999 में सत्ता में आए और उसके बाद से तनाव फिर बढ़ने लगा।
मुशर्रफ के नेतृत्व में सेना ने बलूचिस्तान में नए कैंटोनमेंट बनाना शुरू कर दिया।

सेना की इस कवायद को प्रांत में अलग नजर से देखा गया। ऐसा समझा गया कि तथाकथित राष्ट्रवादी धड़े बलूचिस्तान पर अपने नियंत्रण को और मजबूती देना चाहते हैं।

इसी समय उग्रवाद का पांचवां दौर शुरू हुआ, जो अब तक जारी है।

उग्रवादी धड़ों में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) सबसे मजबूत है, जिसका नेतृत्व ब्रहुमदाग बुगती कर रहे हैं। पाकिस्तान ने इसे एक आतंकवादी समूह घोषित कर रखा है। यह भी दावा किया जाता है कि भारत बीएलए को समर्थन दे रहा है।

बीएलए ने पाकिस्तान की ओर से हो रहे बलूच को दबाए रखने के लिए किए गए अत्याचारों के जवाब में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और आम नागरिकों पर पिछले कुछ बरसों में कई हमले भी किए हैं।

पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर आरोप है कि उसने 19 हजार पुरुष, महिलाएं और बच्चों को दो दशक में अवैध तरीके से हिरासत में लिया। कइयों के साथ बलात्कार किए और फिर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।

प्रांत में अत्याचारों की वजह से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई है। ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया डायरेक्टर ब्राड एडम्स ने जुलाई 2011 की रिपोर्ट में कहा था- बलूचिस्तान में संदिग्ध उग्रवादियों और विपक्षी नेताओं की गैरकानूनी हत्याओं का आंकड़ा नृशंस अत्याचार के अभूतपूर्व स्तर पर जा चुका है।

बलूचिस्तान में पाकिस्तान की रुचि  

पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा बलूचिस्तान है। ऐसे में वह अपनी 50 प्रतिशत जमीन कैसे गंवा सकता है। इसके अलावा इस प्रांत में उसके अपने कुछ निजी निहित स्वार्थ भी है।

बलूचिस्तान का पाकिस्तान के भविष्य की आर्थिक और भूराजनैतिक रणनीति में बहुत बड़ी अहमियत है।

चीन के प्रस्तावित आर्थिक कॉरिडोर में बलूचिस्तान प्रांत का महत्व सबसे ज्यादा है। चीन यहां 46 अरब डॉलर खर्च करने वाला है। ग्वादर पोर्ट से पश्चिमी चीन में जिंजियांग प्रांत के व्यापारिक शहर कश्गर से जोड़ने के लिए भारी-भरकम निवेश किया जा रहा है। एक तरह से सदियों पुराने सिल्क रूट को तलाशा जा रहा है।

प्रस्तावित इरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन भी बलूचिस्तान से होकर ही गुजरेगी।

इस मुद्दे पर भारत की स्थिति

आजादी के बाद से ही पाकिस्तान का कश्मीर में दखल रहा है। लेकिन भारत ने अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर बलूचिस्तान के मुद्दे को कभी नहीं उठाया। हालांकि, पाकिस्तान ने हमेशा ही कहा कि भारत बीएलए और उसकी कथित आतंकी गतिविधियों को समर्थन देता है। यह साथ ही बलूच नागरिकों की मदद भी करता आया है।

जब पाक प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठाया तो भारत का जवाबी हमला भी तीखा था। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही लाल किले की प्राचीर से बलूचिस्तान का जिक्र किया। वे इस मुद्दे को उठाने वाले दुनिया के पहले प्रधान मंत्री बन गए। उन्होंने बलूचिस्तान के लोगों का धन्यवाद दिया। साथ ही बलूचिस्तान के लोगों की पीड़ा को उन्होंने सामने रखा।

हां, इस बार भारत ने वहां हमला किया, जहां पाकिस्तान को सबसे ज्यादा दर्द था। मोदी सरकार ने यूनाइटेड नेशंस में भी इस मुद्दे को उठाया। जेनेवा में यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल के 33वें सत्र में यूएन में भारत के राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि अजीत कुमार ने कहा- “भारत एक शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक, बहुलतावादी समाज है। हमारा देश लोगों की भलाई और कल्याण के लिए संकल्पित है। लेकिन पाकिस्तान में तानाशाही, लोकतांत्रिक मूल्यों की कमी है। पूरे देश में मानवाधिकारों का उललंघन हो रहा है। इसमें बलूचिस्तान भी शामिल है।”

मोदी सरकार के इस कदम को पाकिस्तान पर जवाबी हमला माना जा सकता है, जो अंतरराष्ट्रीय प्लेटफार्म पर बार-बार कश्मीर में हिंसा और मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाता रहता है।

बलूचिस्तान के राष्ट्रवादी संगठनों के साथ ही अमेरिका और यूरोप में स्थित संगठनों ने प्रधानमंत्री मोदी के अनपेक्षित सहयोग का स्वागत किया है। पाकिस्तान के पत्रकारों ने बलूच राष्ट्रवादियों को चेताया कि वे भारत का सहयोग न लें। इकोनॉमिक कॉरिडोर के तौर पर बड़ा प्रोजेक्ट पाकिस्तान में लग रहा है। इरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन पर काम हो रहा है। ऐसे में पाकिस्तान कतई नहीं चाहता कि बलूचिस्तान का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय फोरम पर उठे। जबकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वही किया जो पाकिस्तान नहीं चाहता था।

भारत सदियों से दुनिया में एक सहिष्णु देश के तौर पर पहचाना गया है। हालांकि, जब उकसाओगे तो भारत ने आक्रामकता भी दिखाई है। भारत ने संकेत दिए हैं कि बलूच नेताओं को राजनीतिक शरण देने की प्रक्रिया शुरू होगी। जो भी पाकिस्तान से आजादी के लिए लड़ रहे हैं, उन्हें आवेदन मिलने के कुछ ही हफ्तों में शरण भी दे दी जाएगी।

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