Home / / स्वच्छ भारत अभियान

स्वच्छ भारत अभियान

July 26, 2017


swachh-bharat-hindiयूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी में आधे से ज्यादा लोग खुले में शौच करते हैं और तेजी से पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति खराब हो चुकी है। 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को 2019 तक खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बनाने के उद्देश्य से स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया। इस योजना का उद्देश्य भारत के हर गाँव में और हर व्यक्ति के पास शौचालय और स्वछता सुविधाओं को पहुँचाना है, जिसमें ठोस और तरल अपशिष्ट निपटान प्रणाली, सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल आपूर्ति और गाँवों, कस्बों और शहरों की सफाई शामिल है।

स्वच्छ भारत अभियान में कुछ नई सफलताएं

राजस्थान: राज्य के सात जनजातीय गाँव अब खुले में शौच मुक्त हैं। यह बताया गया है कि राजस्थान राज्य की 60% आबादी खुले में शौच करती है। राज्य के दक्षिणी भाग में सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ-साथ आदिवासियों का वर्चस्व है। यह सत्य है कि भारत में खुले में शौच के लिए राजस्थान का स्थान नीचे के पाँच राज्यों में शामिल है। लेकिन दक्षिण राजस्थान में जो बदलाव हुआ है वह बहुत हर्षजनक है। चित्तौड़गढ़, उदयपुर और भीलवाड़ा जिलों के सात गाँव खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) बन गए हैं। शौच से मुक्त ये निम्न गाँव प्रस्तुत हैं – उदयपुर जिले के मांतों, रेला, नेवलाताई गाँव चित्तौड़गढ़ जिले में बानसेन गाँव और भीलवाड़ा जिले में पारसरामपुर गाँव। इन गाँवों के दस हजार परिवारों ने अपने घरों में पक्के शौचालयों के निर्माण के बाद खुले में शौच करने की पारंपरिक आदत को छोड़ दिया है। ग्रामीणों को शौचालयों के निर्माण और उपयोग के बारे में परामर्श देने की आवश्यकता थी क्योंकि उन्हें स्वयं खुले में शौच करने की आदत थी। गाँव के लोग गरीब थे जिनके पास अपना व्यक्तिगत शौचालय बनवाने के लिए आवश्यक धन नहीं था। लेकिन अब सात गाँवों को अपनी सफलता पर गर्व है।

यह उपलब्धि राज्य सरकार द्वारा की गई पहल और वेदांत समूह की हिंदुस्तान जिंक की ‘मर्यादा’ परियोजना के तहत की गई थी। मर्यादा योजना को राजस्थान के 80 गाँवों को खुले में शौच से मुक्त कराने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। हालांकि यह योजना निर्मल भारत अभियान का एक हिस्सा थी। अब स्वच्छ भारत अभियान के शुभारंभ के साथ, हिंदुस्तान जिंक और राजस्थान सरकार इस स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाने के लिए 30,000 शौचालयों (10,000 शौचालयों का निर्माण पहले से ही पूरा हो चुका) का निर्माण करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ेगा और 2019 तक राजस्थान को खुले में शौच से मुक्त राज्य बना देगा। लोगों के बीच व्यवहारिक परिवर्तन लाना इस परियोजना का उद्देश्य है।

राजस्थान का चुरु जिला: खुले में शौच के मामले में भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक, राजस्थान ने अन्य राज्यों को मार्ग दिखाया है क्योंकि चुरु जिला राज्य में पहला ऐसा जिला बनने वाला है, जो जल्द ही खुले में शौच से मुक्त हो जाएगा। जिले के अधिकांश खण्ड (ब्लॉक) पहले ही प्रत्येक घरों में शौचालय उपलब्ध करा रहे हैं या प्रत्येक घर में शौचालय प्रदान कराने के 100% लक्ष्य की उपलब्धि के करीब हैं। हालांकि हाल ही में विधानसभा और लोकसभा चुनावों की वजह से शौचालयों के काम की गति धीमी हो गई थी, लेकिन स्थानीय प्रशासन अब इस वर्ष के अंत तक एक बार फिर से काम शुरू करने और खुले में शौच मुक्त का लक्ष्य हासिल करने की कोशिश कर रहा है। जिला प्रशासन द्वारा ‘चोको चुरू’ अभियान शुरू किया गया था, जहाँ पर समुदाय को एकत्र करके खुले में शौच संबंधी विषय पर जागरूक करने पर जोर दिया जाता था। इसके अन्तर्गत सार्वजनिक बैठकों, गाँव में रात की सभाओं या रात्रि चौपाल और अन्य जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि इन कार्यक्रमों से अधिकांश लोगों की सोच में बदलाव हुआ और उन्होंने खुले में शौच से संबंधित विभिन्न बीमारियों और दुष्प्रभावों का एहसास किया। परिणामस्वरूप, सरकार की मदद से लोग शौचालयों का निर्माण कराने के लिए अधिक उत्सुक हो गए। चुरु जिले की इस पहल से अन्य गाँवों को भी खुले में शौच संबंधी विषय पर पहल करनी चाहिए।

ओडिशा के कोरापुट जिले के ग्यारह गाँव: ओडिशा में कोरापुट जिले को भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक माना जाता है। हालांकि कोरापुट जिले में कोरापुट और सेमिलीगुड़ा ब्लॉक के 11 गाँव खुले में शौच मुक्त बन गए हैं क्योंकि इन गाँवों के 522 घरों के लोगों ने अपने घरों में पक्के शौचालय का उपयोग शुरू कर दिया है। यह सचमुच बहुत ही प्रसन्न करने वाली बात है कि इन इलाकों की जनजातियों ने दूसरे समुदाय के लोगों के लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण स्थापित किया है। अब जिले में खुले में शौच पर सख्त प्रतिबंध है। ये 11 खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) गाँव हैं – कोरापुट ब्लॉक के चंद्रमुंदर, गाँधीपुट, स्टेशन सुकू, चकारलिगुडा, खापरापुट, हल्दीपुट, मलीगुड़ा, और सेमिलीगुडा ब्लॉक के डोरागुडा, जागमपुट, बांदगुडा और सादाम हैं।

शुरुआत में शौचालयों का निर्माण करने के लिए ग्रामीणों की प्रतिक्रिया नकारात्मक थी। जिला प्रशासन द्वारा सड़क नाटकों पोस्टरों और सचित्र प्रस्तुतियों के रूप में जागरूकता अभियानों की एक श्रृंखला चलाई और लोगों को खुले में शौच के खतरों के प्रति सचेत किया।

निर्मल भारत अभियान के अंतर्गत 10,000 रुपये की अनुमानित लागत से शौचालयों का निर्माण शुरू किया गया था और यह स्वच्छ भारत अभियान के तहत जारी रहा। महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के माध्यम से 4,500 रुपये और जिला जल और स्वच्छता मिशन (डीडब्ल्यूएसएम) द्वारा 4,600 रुपये का प्रावधान किया गया था। प्रत्येक परिवार ने 900 रुपये का योगदान दिया।

कोरापुट जिले के ओडीएफ गाँवों के शौचालयों का इस्तेमाल करने को बढ़ावा देने वाली प्रतिक्रिया को अन्य पड़ोसी गाँवों को देखकर अपनाना चाहिए और प्रोत्साहित होना चाहिए। ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता, कोरापुट के एक कार्यकारी अभियंता द्वारा दिए गए एक बयान के मुताबिक, जिला कोरापुट में 14 ब्लॉकों के कम से कम तीन गाँव मार्च 2015 तक खुले में शौच से मुक्त हो जाएंगे।

हिमाचल प्रदेश 2019 तक ओडीएफ बनने वाला पहला राज्य होगा: हिमाचल प्रदेश की सरकार 2019 से पहले 100% ओडीएफ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए धारणा बना चुकी है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत, संशोधित परियोजनाओं के लिए 852.55 करोड़ रुपये मंजूर किए गए हैं, जिनमें से 48 करोड़ रूपये पहले से ही सरकार को प्राप्त हो चुके हैं। शौचालयों के निर्माण का कार्य निर्मल भारत अभियान के साथ शुरू हुआ था जो अब स्वच्छ भारत अभियान के रूप में जारी है। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 की शुरुआत तक राज्य में 14 लाख घरों में से करीब 12 लाख घरों में पहले से ही शौचालयों की सुविधा थी। इसलिए शेष 2.2 लाख शौचालयों को बनवाना 2019 तक मुश्किल नहीं होगा। कुल 2.2 लाख व्यक्तिगत शौचालयों में से, 54,000 शौचालय पहले से ही बनाए जा चुके हैं और स्कूलों में 1,200 शौचालयों का काम करीब पूरा होने पर है।

यह वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसमें न केवल सरकार बल्कि गैर-सरकारी संगठनों, कंपनियों और मशहूर हस्तियों की भागीदारी शामिल है, बल्कि इस पहल में आम जनता की भागीदारी भी शामिल है। 2019 तक खुले में शौच समाप्त करने की आवश्यकता है। शौचालयों का निर्माण करने के लिए लोगों को पैसा आवंटित करना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि लोग वास्तव में शौचालयों के उपयोग के बारे में और खुले में शौच से होने वाली घातक बीमारियों के बारे में जागरुक नहीं होंगे तब तक इस अभियान का सम्पूर्ण लाभ नहीं दिखाई देगा। जब इन सभी बातों पर लोग अमल करेंगे तो निश्चित रूप से बहुत अधिक बदलाव देखने को मिलेंगे।