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लंगर – मानवता के लिए गुरु नानक का उपहार

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लंगर - मानवता के लिए गुरु नानक का उपहार

लंगरः एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले कौ मंदे

सिख धर्म को साखियों (सिख गुरुओं के जीवन और समय के बारे में वास्तविक जीवन की कहानियां, जिन्हें सिख धर्म के लोग मूल सिद्धांत मानते हैं) के माध्यम से आगे बढ़ाया गया है और लंगर की अवधारणा भी उन्हीं साखियों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि 1480 के अंत में, गुरु नानक देवजी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रुपये (उस समय की एक बड़ी राशि) दिए थे और जिसे देकर उन्होंने कहा था कि वे बाजार से सौदा करके लाभ कमा कर लाएं। गुरू साहिब इन पैसों को लेकर चल दिए और रास्ते में उन्हें संतों का समूह एक मिला, जो बहुत ही भूखा था। गुरू साहिब ने उनके साथ बातचीत की, जिसके बाद उन्हें पता चला कि उन संतों ने काफी समय से भरपेट भोजन नहीं किया था। उन्होंने अपने पिता द्वारा कही गई बात पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि विद्वान पुरुषों (भूखे संतों) को भोजन कराने से अच्छा लाभ और किसी अन्य कार्य में नहीं हो सकता। साखियों के अनुसार, लंगर की अवधारणा की व्युत्पत्ति इसी तरह से हुई है।

वास्तव में लंगर का अर्थ एक आम सामुदायिक रसोई है, जिसमें भोजन को तैयार करने और परोसने का कार्य किया जाता है। यहां लंगर के लिए कुछ अनिवार्य तथ्य दिए गए हैं –

लंगर की सबसे आधारभूत सामग्री, सिर्फ दाल (दाल सूप) और रोटी (गेहूं के आटा की रोटी) है। लंगर की प्रथा में निम्नलिखित चीजें शामिल हैः

लंगर में सिर्फ शाकाहारी भोजन की ही उम्मीद करनी चाहिए। गुरुद्वारा हजूर साहिब (नांदेड़, महाराष्ट्र) में और कुछ अन्य गुरुद्वारों में, बकरी के मांस को कुछ विशिष्ट दिनों में, एक ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार महाप्रसाद के रूप में परोसा जाता है।

यदि आपने अभी तक लंगर नहीं चखा है, तो आप जहां रहते हैं, उसके करीब एक गुरुद्वारा की खोज करें और वहाँ से दिन और समय, (जब वे लंगर की सेवा करते हैं), के बारे में पता करें तथा उस लंगर में शामिल हों और लंगर का आनंद लें !

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