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उत्तर पूर्व में बाढ़ की समस्या – एक लंबे समाधान की आवश्यकता

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north-east-flood-problem-hindiभारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु परिस्थितियाँ हैं जो हिमालय और थार रेगिस्तान से प्रभावित हैं, जिसमें उष्णकटिबंधीय गीला, उष्णकटिबंधीय सूखा, उपोष्णकटिबंधीय आर्द्र और पर्वतीय चार प्रमुख जलवायु समूह शामिल हैं। भारत में जलवायु की परिस्थितियां बहुत ही विविध है। जैसे कि एक वर्ष में, एक समय पर भारत के कुछ क्षेत्रों को सूखे का सामना करना पड़ता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है।

भारत के उत्तर पूर्वी भाग में, ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की 6वीं सबसे बड़ी नदी है, जो 41 सहायक नदियों के साथ भारत के माध्यम से 918 कि.मी. की लंबाई तक बहती है, यह मानसून के दौरान अत्यंत संवेदनशील हो जाती है और साथ ही इसके आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बना रहता है। नदी खासकर मानसून के दौरान और वैसे भी लगभग साल भर खतरे के निशान से ऊपर बहती है। ब्रह्मपुत्र के मार्ग के साथ-साथ उपनदियों का अतिरिक्त पानी भी गंभीर बाढ़ का कारण बनता है।

इस साल भी कुछ अलग नहीं है क्योंकि असम, अरुणाचल, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम सहित 7 संगत पूर्वोत्तर राज्य बड़े पैमाने पर बाढ़ के कारण प्रभावित हुए हैं। इन राज्यों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें बाढ़ से प्रभावित चार जिलों के 39 गाँवों के 40,000 लोग शामिल हैं।

सरकारी सहायता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 1 अगस्त 2017 को बाढ़ की स्थिति और भूस्खलन की समस्याओं का जायजा लेने के लिए गुवाहाटी की यात्रा पर गए थे, जिसने असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड के पाँच उत्तर-पूर्वी राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। मोदी ने बाढ़ से प्रभावित पूर्वोत्तर राज्यों को निम्नलिखित सहायता राशि देने की घोषणा की है:

क्या उत्तर पूर्व बाढ़ का स्थायी समाधान संभव है?

आईआईटी-रुड़की के प्रोफेसर, हाइड्रोलिक स्ट्रक्चर्स तथा रिवर इंजीनियरिंग एंड इरीग्रेसन के विशेषज्ञ नयन शर्मा ने कहा है कि लंबे समय तक मदद करने वाला एक स्थायी समाधान तो हो सकता है लेकिन किसी भी स्थायी समाधान पर संदेह है। उन्होंने निम्नलिखित टिप्पणियां की हैं।

 

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