17 दिसंबर 2018 के दिन लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। इस तारीख में इतना खास क्या है? कोई भी पूछ सकता है। खैर, बहुत सारे लोग इसे बिडंवनाओं या मुकाबले का दिन कहते हैं। यह वह दिन था जब कांग्रेस के चुने गए सदस्य तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के रूप में शपथ ग्रहण कर रहे थे।
यह वह दिन भी था जब दिल्ली उच्च न्यायालय के बेंच से ऐतिहासिक निर्णय आया था। 1984 के सिख विरोधी दंगों या बड़े पैमाने पर हुई हत्याओं के लिए, उनके खिलाफ दायर मामले में दोषी पाए जाने के बाद एक प्रमुख कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
यह तुलनात्मक कैसे? मध्य प्रदेश में, एक अन्य अनुभवी कांग्रेस नेता कमलनाथ को नए मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। 1984 की हिंसा को बढ़ावा देने के लिए नाथ मुख्य आरोपी लोगों में से एक थे, यहां तक कि वह इस घटना में अग्रणी थे। जहां सज्जन कुमार को अब “उनके जीवन के बाकी दिनों” को जेल में बिताना पड़ेगा वहीं कमल नाथ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे।
तो, गिरफ्तारी क्या संकेत देती है, आगे क्या है? वे लोग जो अभी भी 1984 के लिए न्याय चाहते हैं?
1984 के दंगे और कांग्रेस
सज्जन कुमार को सजा सुनाने से पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा था कि “सत्य की जीत होगी और न्याय किया जाएगा।” निर्णय ऐतिहासिक है, क्योंकि न केवल 2013 के विमोचन को उलट दिया, बल्कि यह पहली बार ही होगा जब 1984 के दंगों के लिए एक कांग्रेस प्रमुख नेता को दंडित किया गया। सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक आत्मसमर्पण करना होगा, जिसके बाद वह उम्रकैद की सजा काटेंगे।
इस दंगों के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार लगभग 3000 लोगों की मौत हुई थी, इन आंकड़ों पर आप विश्वास कर सकते हैं लेकिन मरने वालों की वास्तविक संख्या इससे अधिक थी। इंदिरा गांधी के दो सुरक्षा गार्ड बेअंत सिंह और सतवंत सिंह द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी जिसके कुछ समय बाद दंगे शुरू हो गये थे। उसके दुष्परिणामों में, सिख समुदाय के हजारों लोगों पर क्रूरता से हमला किया गया, उन पर तेजाब फेंका गया, हत्याएं की गईं, महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। यहाँ तक कि बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया था। आज भी, कई परिवार अपने प्रियजनों को खोने के बाद 1984 की भयावहता के साथ जी रहे हैं।
इन दंगों में कांग्रेस की भूमिका क्या थी? कई गवाह ने, जो उस समय के दंगों के साक्ष्य गवाह थे, सज्जन कुमार, कमलनाथ, जगदीश टाइटलर जैसे कांग्रेस नेता पर आरोप लगाया है। वे न केवल वहाँ मौजूद थे बल्कि भीड़ को इकठ्ठा करके उकसा रहे थे यही नहीं वे कटु भाषण भी दे रहे थे। गवाहों के अनुसार, कमलनाथ को रकाब गंज साहिब जगह पर देखा गया था, जहाँ भीड़ ने दो सिख पुरुषों को जला दिया था और गुरुद्वारा पर हमला किया था। हमलावरों ने सिख परिवारों को तलाशने के लिए मतदाता सूची का सहारा लिया, ऐसा कुछ भी आधिकारिक सहायता के बिना करना संभव नहीं था, यदि निर्देश नहीं दिये गये थे तो ऐसा कैसे हो पाया।
वर्तमान परिदृश्य
जब बात आती है कमलनाथ की जो पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं, तो 1984 के सामूहिक हत्याओं का मामले में उनका नाम लोगों के जहन में आ जाता है। हालांकि उन्हें सबूत न मिलने की वजह से रिहा कर दिया गया था, एक वरिष्ठ पत्रकार सहित कई गवाह उनके दोषी होने की बात कर रहे हैं। इसके अलावा, रकाबगंज के लिए उनका बचाव पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है।
मुख्यमंत्री की गद्दी पर कमलनाथ को बैठाना बहुत ही गलत है जो जनता में एक गलत संदेश भेजती है। घोषणा के बाद से, जनता से कई लोग आगे आए हैं और राहुल गांधी के पुराने घावों पर नमक ड़ालने का आरोप लगाया। यह सिर्फ कमल नाथ की नियुक्ति नहीं है जो समस्याग्रस्त है, बल्कि सज्जन कुमार के फैसले पर भी प्रतिक्रियाएं हैं।
जब सज्जन कुमार को दोषी ठहराए जाने के एक दिन बाद राहुल गांधी को दंगों के बारे में पूछा गया, तो पहले सवालों के समाधान से इनकार कर दिया। राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि “मैंने दंगों पर अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है, और मैंने पहले भी यह कहा है। यह प्रेस कॉन्फ्रेंस देश के किसानों के लिए है।
कोई भी कह सकता है कि यह एक गंभीर गलती है। कुमार की गिरफ्तारी कई लोगों के लिए जश्न मनाने के मामले में आई है, जिनमें से कई न्याय के लिए दशकों का इंतजार कर रहे थे। यह तीन दशकों से अधिक समय में पहली बार था कि एक बड़ा नाम न्याय में लाया गया था। राहुल गांधी के लिए, जो 2019 में प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद करते हैं, इस मामले को इस तरह पूरी तरह से उपेक्षा के साथ कम से कम कहने के लिए निराशाजनक है। राजनीतिक दृष्टिकोण से भी उनका यह निर्णय बहुत गलत है।
निष्कर्ष
1984 शायद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए बहुत नकारात्मक पहलू है और इसलिए, संवेदनशीलता के समान स्तर के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह ने उनकी पार्टी की तरफ से नरसंहार के लिए माफी मांगी थी। क्या यह नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त था? बिल्कुल नहीं। हालांकि, यह एक आवश्यक (यद्यपि छोटा) कदम था, स्थापित पार्टी इस अतीत के बारे में माफी मांगना चाहती थी।
अब, कमल नाथ ने एक महत्वपूर्ण पोस्ट करते हुए कहा कि पार्टी के दुख की घड़ी समाप्त हो चुकी है। क्या उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए? हरगिज नहीं। जबकि भारतीय जनता पार्टी के लिए 2002 का मामला और कांग्रेस के लिए 1984 का मामला, उनकी राह का एक बड़ा रोड़ा है।