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जलवायु परिवर्तन से भारत में मानसून पर प्रभाव

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जलवायु परिवर्तन से भारत में मानसून पर प्रभाव

पुराने समय से ही, भारत पहले ही अनुमान लगाई गई मानसूनी बारिश का आनंद लेता आ रहा है। साल में एक बार जून महीने के अंत में, हिंद महासागर और अरब सागर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट की तरफ से आने वाली भाप रूपी हवाओँ को मानसून कहते हैं। ये हवाएं पानी वाले बादल लाती हैं और गर्मियों के महीनों में प्यासी जमीन को सींचती हैं। विशाल वैश्विक प्रणाली के आधार पर एक अरब से अधिक लोग मानसून के इस सटीक समय पर निर्भर रहते हैं। इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है, लेकिन दुर्भाग्य से हाल के दिनों में, मनुष्य ने अपनी क्रियाओं के माध्यम से उस तंत्र को बहुत नुकसान पहुँचाया है जिसके माध्यम से मानसून की भविष्यवाणी की जाती है।

भारत में मानसून कैसे बनते हैं?

यह जानने के लिए कि हमने मानसून को कैसे बाधित किया है, हमें सबसे पहले उस क्रिया को समझने की जरूरत है जिसके द्वारा मानसून बनता है। यह निम्नलिखित है-

मानसून परिवर्तन का प्रभाव

पिछले कुछ सालों से, भारत मानसून के मामले में घाटे का सामना कर रहा है। वर्षा का वितरण असमान हो रहा है जिसके कारण जलाशयों को पानी एकत्र करने, उसे बनाये रखने और मिट्टी को पानी सोखने में मुश्किल हो रही है। कृषि पर भी यह गंभीर रूप से प्रभाव डालता है जो कि भारत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है।

वैश्विक चक्रों के संयोजन के परिणामस्वरूप वर्षा का वितरण असमान हो जाता है। एल नीनो (गर्म जलधारा है जिसके आगमन पर सागरीय जल का तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है) मानव द्वारा प्रभावित जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित तरीके से परिवर्तित हो रही है। अब मानसून के अनुमान को समझना अधिक जटिल हो रहा है।

भारत का अधिकांश भाग खासकर कृषि क्षेत्र मानसूनी बारिश पर निर्भर करता है। बारिश पर पड़े इस प्रकार के प्रभाव के कारण यह अप्रत्याशित हो जाती है जिससे किसानों को यह समझना मुश्किल हो जाता है कि उनको किस प्रकार की फसलों को उगाने की जरूरत है। भारतीय कृषि में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर शोध करते हुए केरल कृषि विश्वविद्यालय में एस. मॉरगन बताते हैं कि किसानों को बदलते हुए मानसून पैटर्न के अनुकूल होना चाहिए, साथ ही समान्तर समाधानों की तलाश करनी चाहिए। उनको एकल फसल के बजाय मिश्रित फसलों को बोना चाहिए।

 

हमें ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करना होगा, भारत में मानसून के सटीक और पूर्वानुमान चक्र को वापस लाने के लिए यह महत्वपूर्ण उपाय है। मानसून के बदलते पैटर्न के अनुकूल हो जाना इसका समाधान नहीं है। यह केवल ग्लोबल वार्मिंग को खत्म करने की प्रक्रिया का पूरक हो सकता है।

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