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परम्परागत कृषि विकास योजना

November 2, 2017
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परम्परागत कृषि विकास योजना

भारत में जैविक खेती

2013 में, ‘इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर मूवमेंट्स’ (आईएफओएएम) द्वारा संचालित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 20 लाख किसान हैं, जो जैविक तरीकों से खेती करते चले आ रहे है, जिनमें से जैविक खेती करने वाले लगभग 80 प्रतिशत किसान भारत के हैं। यह मानना गलत नहीं होगा कि हमारा देश जैविक खेती का केन्द्र बिंदु है, जो दुनिया से टक्कर लेने के लिए तैयार है। निश्चित रूप से भारत में जैविक खेती की प्रचुरता आश्चर्य करने वाली बात नहीं है, जिसे हमारे पूर्वजों द्वारा पालन की जाने वाली पुरानी कृषि पद्धतियों पर जारी रखा है।

अगर देखा जाए, तो भारत में जैविक खेती का महत्व तेजी से बढ़ रहा है और फसलों को बचाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को नजरअंदाज किया जा रहा है। ‘जीएमओ’ (आनुवंशिक रूप से संशोधित) जो फसलें होती हैं, हमें एक उत्कृष्ट उपज तो प्रदान कर सकती हैं लेकिन उन फसलों का हम पर और हमारी सेहत पर अनचाहा और बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसकी वजह से अभी तक लोग इन खाद्य पदार्थों पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके बाबजूद, दुनिया भर में जैविक खाद्य पदार्थों की मांग में एक महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। इन खाद्य पदार्थों की भारी निर्यात की क्षमता को पूरा करने के लिए, भारत ने इन जैविक खेती की तकनीकों को बढ़ावा दिया है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने परम्परागत कृषि विकास योजना का शुभारंभ करने का निर्णय लिया है।

परम्परागत कृषि विकास योजना

सन् 2015 में, एनडीए सरकार द्वारा देश में जैविक खेती को बढ़ावा देने की पहल परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) की शुरूआत की गई थी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016 के अपने बजट के भाषण में इस योजना के कार्यान्वयन करने के पक्ष में जोरदार समर्थन किया। इस योजना के अनुसार, किसानों को समूहों बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा और देश के जिन बड़े-बड़े क्षेत्रों में जैविक खेती की जाती है, उन तरीकों को समझने के लिए, उन्हें वहाँ पर जाना पड़ेगा। इस योजना का लाभ उठाने के लिए, पीकेवीवाई के तहत प्रत्येक समूह में 50 किसान होने चाहिए और उनके पास जैविक खेती करने के लिए कम से कम 50 एकड़ जमीन का कुल क्षेत्रफल तैयार होना चाहिए। इस योजना में नामांकित प्रत्येक किसान को सरकार द्वारा तीन साल तक 20,000 रुपये प्रति एकड़ प्रदान किए जाएंगे। इस रकम का उपयोग जैविक बीज प्राप्त करने, फसलों की कटाई और स्थानीय बाजारों में उपज ले जाने वाले परिवहन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य, अगले तीन वर्षों में 10,000 समूहों का निर्माण करना है और करीब पांच लाख एकड़ में कृषि क्षेत्र को जैविक खेती के अन्तर्गत लाना है। सरकार प्रमाणित लागत को सम्मिलित करने का प्रयोजन रखती है और उसी के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा देने का भी प्रयास करती है। इस प्रकार जो जैविक भोजन उत्पादित होगा, वह आधुनिक विपणन उपकरण और वहाँ के स्थानीय बाजारों से जुड़ा होगा। हमारी सरकार घरेलू और निर्यात दोनों बाजारों के साथ भारत के उत्तर पूर्वी राज्य पर विशेष ध्यान देगी और इन भागों में जैविक उत्पादन को जोड़ने के प्रयास को भी बढ़ावा देगी। परम्परागत कृषि विकास योजना को चलाने के लिए सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में 412 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है।

पूर्व की योजनाएं

2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए की जीत से पहले, यूपीए सरकार ने देश में कृषि गतिविधियों को विकसित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार लाने के उद्देश्य से कई योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए जा चुके हैं। इससे पहले लागू होने वाली योजनाओं में राष्ट्रीय बागवानी योजना के लिए (एनएमएसए), राष्ट्रीय उद्यान योजना (एनएचएम), एकीकृत विकास और बागवानी योजना (एमआईडीएच), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), जैविक उत्पादन पर राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीओपी) और कार्बनिक खेती पर राष्ट्रीय परियोजना (एनपीओएफ) शामिल थी, लेकिन इनमें से कोई भी योजना जैविक खेती से संबंधित नहीं थी। अब परम्परागत कृषि विकास योजना मुख्य रूप से दो चीजों पर ध्यान देने का प्रयास कर रही है।

  1. इस योजना में अधिक से अधिक किसानों के समूहों के निर्माण और उनके सहयोग को बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
  2. जैविक खेती को बढ़ावा देना और किसानों को बड़ी संख्या में वित्तीय लाभ पहुँचाना।

इसलिए आरोपों के बावजूद भी ‘पीकेवीवाई’ केवल मौजूदा योजनाओं को पुनर्स्थापित कर रहा है, वास्तव में यह जैविक खेती की तकनीक और इसके लाभों को बढ़ावा देने के लिए एक बहुत ही अधिक केंद्रित और बेहतर दृष्टिकोण है।

जैविक खेती की नीति 2005

यूपीए सरकार ने अपने अनुमान से कहा था कि अपनी विशिष्ट योजनाओं में जैविक खेती पर ध्यान केन्द्रित न कर पाने की कमी के बाबजूद भी भारत में बड़े स्तर पर जैविक खेती के विकास के लिए मंच तैयार किया गया था। कुछ समाचार रिपोर्टों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2005 की जैविक खेती की नीति की शुरुआत के बाद से, ग्रामीण क्षेत्रों में जैविक खेती के अन्तर्गत लगभग 70 प्रतिशत वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में, सिक्किम राज्य में पूर्ण रूप से जैविक खेती की जाती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में जैविक खेती के लिए प्रमुख रूप से जोर दिया जा रहा है, हालांकि, कई अन्य उपक्रम और बुनियादी ढांचे के समर्थन की जरूरत होगी। फसलों के रोगों के अध्ययन क्षेत्र में महत्वपूर्ण सक्रिय भागीदारी निभाने के लिए जैविक खादों का विकास, प्राकृतिक कीटनाशक, किसानों के प्रशिक्षण, भंडारण और संयोजकता के प्रावधान को ध्यान में रखते हुए फसलों की देखभाल की जाने की आवश्यकता है। अब ‘पीकेवीवाई ‘(परम्परागत कृषि विकास योजना) की नींव रखी गई है, तो अब हम केवल उम्मीद कर सकते हैं कि सरकार इसके लिए नए कदम उठाए और जैविक खेती के समर्थन को एक अगले स्तर पर ले जाए।