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भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 क्या था?

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भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 क्या था?

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947, यूनाइटेड किंगडम (यूके) की पार्लियामेंट (संसद) द्वारा पारित वह अधिनियम था, जिसके अनुसार ब्रिटेन शासित भारत को दो स्वतंत्र उपनिवेशों, भारत तथा पाकिस्तान में विभाजित किया गया था। इस अधिनियम को 18 जुलाई 1947 को शाही परिवार की सहमति मिली। जिसके फलस्वरूप भारत 15 अगस्त और पाकिस्तान 14 अगस्त को अस्तित्व में आया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और सिख समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा इस अधिनियम के लिए अपनी सहमति देने के बाद यह यूके के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली और भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन के द्वारा एक साथ मिलकर तैयार किया गया था। इस अधिनियम को 3 जून योजना या माउंटबेटन योजना के रूप में जाना जाने लगा।

इस अधिनियम की पृष्ठभूमि

यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी 1947 को घोषणा की थी कि ब्रिटिश भारत को पूर्ण स्वाधीनता के अधिकार दिए जाएंगे। उन्होंने यह भी बताया कि जैसे ही अंतिम हस्तांतरण की तारीख की पुष्टि हो जाती है, वैसे ही रियासतों के भविष्य का फैसला किया जाएगा।

इस सम्बन्ध में, लॉर्ड माउंटबेटन ने एक योजना बनाई थी जिसे 3 जून योजना या माउंटबेटन योजना के रूप में जाना जाता था। योजना में दो सिद्धांत शामिल थे। पहला, ब्रिटिश भारत का विभाजन किया जाएगा और दूसरा, इसके बाद ही सरकार को पदभार सौंपा जाएगा।

इस अधिनियम के तहत किए गए महत्वपूर्ण प्रावधान

अधिनियम की मुख्य विशेषताएं

पाकिस्तान- पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब, सिंध, उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत, असम में सिलहट डिवीजन, बहावलपुर, खैरपुर, बलूचिस्तान के मुख्य आयुक्त के प्रांत और इसकी आठ अन्य रियासतें

बंगाल- बंगाल प्रांत का अस्तित्व समाप्त हो गया। दो नए प्रांत – पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल अस्तित्व में आए।

पंजाब: दो नए प्रांत पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब अस्तित्व में आए।

इस अधिनियम ने दोनों नए देशों का गठन करने के लिए विधानसभाओं का निर्माण भी किया। यह भी कहा गया कि 15 अगस्त 1947 के बाद भारत और पाकिस्तान के किसी भी मामले में अंग्रेजों का कोई नियंत्रण नहीं होगा।

भंग

1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 395 और 1956 के पाकिस्तान के संविधान अनुच्छेद 221 को रद्द कर दिया गया था।

इस अधिनियम ने दोनों नए देशों के गठन करने के लिए विधानसभाओं का निर्माण भी किया। यह भी कहा गया कि 14 अगस्त 1947 के बाद भारत के किसी भी मामले में अंग्रेजों का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। बिल्कुल ऐसा ही पाकिस्तान के लिए भी कहा गया था। इस अधिनियम में भारत और पाकिस्तान दोनों की संविधान-सभा के लिए भी प्रावधान किए गए थे। एक निर्णय में यह भी कहा गया था कि संविधान-सभा को निहित सभी शक्तियों का भी अधिकार होगा। वे उचित तौर पर  संघटको को किसी भी तरह से बना सकते है।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में यह भी निर्णय लिया गया कि नए देशों के लिए एक-एक जनरल-गवर्नर की भी व्यवस्था की जाएगी।यह नये राज्यों के निर्माण के परिणाम स्वरूप आने वाले परिणामो से भी निपटेगा| इस अधिनियम के अंतर्गत  उन आदेशो को भी संज्ञान में लिया जिनमें यह सनिश्चित किया गया था  कि यह वास्तविक्ता में जैसा है उसका क्रियान्वयन ठीक उसी प्रकार से हुआ था| यह उन सेवाओं पर भी नजर रखता है जिनको राष्ट्र के सचिव द्वारा लागू किया गया था। इस अधिनियम में भारत के सशस्त्र बलों के साथ-साथ भारत में ब्रिटिश सेना के संबंध में किए जाने वाले उपायों पर महत्वपूर्ण निर्देश भी दिये गये थे। इस अधिनियम के अन्तर्गत नौसेना बल को भी विभाजित किया गया जो एक संवेदनशील क्षेत्र था।

सूचनाः यह लेख 30 जुलाई, 2017 को समुद्रनिल द्वारा लिखा गया है। इस लेख में निहित जानकारी हाल ही में अपडेट की गई है।

 

 

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