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भगवान महावीर की शिक्षाएं

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भगवान महावीर के जन्म दिवस को जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा महावीर जयंती या महावीर जन्म कल्याणक के रूप में मनाया जाता है, जो एक धार्मिक त्यौहार है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, महावीर जयंती मार्च या अप्रैल के महीने में मनाई जाती है।

भगवान महावीर न्यास के पुत्र थे और भारत में 599 ईसा पूर्व एक शाही दंपती के यहाँ इनका जन्म हुआ था। महावीर स्वामी जैन धर्म के अंतिम और 24वें तीर्थंकर थे। हालांकि, महावीर स्वामी एक शाही परिवार में पैदा हुए थे और उनका जीवन बहुत ही सुखमय था, लेकिन उन्होंने बहुत ही कम उम्र से ही अपने आप को सभी सांसारिक चीजों से (ऐशो-आराम) दूर कर लिया था। तीस वर्ष की आयु में महावीर जी ने अपने परिवार और राज्य को छोड़ दिया। महावीर स्वामी ने एक तपस्वी के रूप में 12 वर्षों तक काफी संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया था। इस अवधि के दौरान, महावीर ने अन्य सभी सांसारिक चीजों यहाँ तक कि अपने वस्त्रों को भी त्याग दिया था। महावीर ने इन वर्षों में ध्यान और आत्म-संयम प्राप्त करने में अपना समय व्यतीत किया। इस प्रकार महावीर ने अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में संपूर्ण ज्ञान बयालिस वर्ष की आयु में प्राप्त कर लिया था।

भगवान महावीर का ज्ञान

तीन आध्यात्मिक और पांच नैतिक सिद्धांत महावीर के ज्ञान का आधार हैं। भारत में अन्य महान संतों के ज्ञान की तरह, महावीर के ज्ञान का उद्देश्य जीवन की गुणवत्ता की उन्नति करना था। इसके अलावा, आध्यात्मिक उत्कृष्टता प्राप्त करते समय किसी भी व्यक्ति को नैतिक व्यवहार बनाए रखना चाहिए। महावीर की अधिकांश शिक्षाएं उनके पूर्वजों पर आधारित थीं।

 

जैन धर्म अपनाने के बाद एक व्यक्ति को पांच प्रतिज्ञाएं लेनी चाहिए:

भगवान महावीर ने अपनी पूरी जिन्दगी आध्यात्मिक स्वतंत्रता का उपदेश देने में समर्पित कर दी। सत्तर वर्ष की आयु में, भगवान महावीर ने 527 ईसा पूर्व निर्वाण को प्राप्त किया था, जिसका अर्थ यह है कि महावीर जन्म और मृत्यु के बंधन (चक्र) से मुक्त हो गए।

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