देशभक्ति के राष्ट्रवादी उत्साह, स्वतंत्रता दिवस के सिर्फ दो दिन शेष रह गये थे। इसी समय सोमनाथ चटर्जी के निधन की खबर से पूरा माहौल शोकाकुल (शोक मग्न) हो गया। देश अभी भी एम करुणानिधि की मौत से उबर नहीं पाया था कि अचानक इस दुखद सूचना ने पूरे देश को फिर से आहत कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट में सोमनाथ चटर्जी को कमजोर लोगों की मजबूत आवाज के रूप में संदर्भित किया जिन्होंने उनकी जिंदगी की स्थितियों का उत्थान करने के लिए कड़ी मेहनत की।
कोलकाता के एक अस्पताल में कई अंग विफल हो जाने के कारण सोमनाथ चटर्जी की आज सुबह मृत्यु हो गई और उनकी मृत्यु का समाचार पूरे देश में फैल गया। सोमनाथ चटर्जी 89 वर्ष के थे। सोमनाथ चटर्जी किडनी की समस्या से जूझ रहे थे जिसकी वजह से उन्हें 8 अगस्त को कोलकाता में बेले व्यू अस्पताल में भर्ती कराया गया था। रविवार की सुबह, उन्हें कार्डियक अरेस्ट का दौरा पड़ा था जिसके बाद उन्हें वेंटिलेटर (जीवन समर्थन प्रणाली) पर रखा गया था। सोमनाथ चटर्जी की स्थिति में कोई सुधार न होने के कारण, आखिरकार, आज सुबह 8 बजे उनका निधन हो गया।
सोमनाथ चटर्जी का राजनीतिक सफर
एक पेशेवर वकील सोमनाथ चटर्जी ने 1968 में अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की और वर्ष 2009 में सेवानिवृत्त हो गए।
10 बार रहे लोकसभा सांसद
1971 के बाद से वह दस बार सदन में चुने गए जिससे वह सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले लोकसभा सदस्यों में से एक बन गए। सोमनाथ चटर्जी ने 1971 से 2009 तक संसद (1984 के चुनावों को छोड़कर जिसमें उन्हें ममता बनर्जी ने हरा दिया था) के एक सदस्य के रूप में कार्य किया।
एक पूर्व लोकसभा स्पीकर
2004 के लोकसभा के आम चुनाव के तत्पश्चात चटर्जी को शुरुआत में लोकसभा के 14 वें अस्थायी स्पीकर के रूप में नियुक्त किया गया था। लेकिन बाद में, वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के अध्यक्ष बने, जिसमें उन्होंने 2004 से लेकर 2009 तक पहले पांच साल के कार्यकाल तक सेवा की।
सीपीआई (एम) में उनकी भूमिका
सोमनाथ चटर्जी ने 1968 से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के केंद्रीय समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया। 2008 में, उन्हें संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से इनकार करने के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। सीपीआई (एम) भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर यूपीआई सरकार से असहमत थी जिसके बाद वो अलग हो गई थी। 2008 में चटर्जी को अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार के खिलाफ वोट करने के लिए कहा गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि वह विपक्षी पार्टी भाजपा का समर्थन करने के इच्छुक नहीं थे। उन्होंने सीपीआई (एम) से अपने निष्कासन का उल्लेख “सबसे दुखद दिनों में से एक” के रूप में किया।