फरवरी 2018 में संज्ञान में आया, पंजाब नेशनल बैंक घोटाला मामला, जो कि संभवतः भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है। जौहरी नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक को कुछ बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर अरबों रुपए का चूना लगाया, जो कि भारत का दूसरा सबसे बड़ा बैंक है। इस मामले ने उन सभी लोगों को हिला कर रख दिया, जिन्होंने बैंकों के पास अपनी खून-पसीने की कमाई को अपने पैसों का संरक्षक समझ कर जमा कर रखा था।
फरवरी 2018 के मध्य में, एक रिपोर्ट उभरकर सामने आई जिसमें नीरव मोदी, जो कि एक जौहरी है, ने पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में धोखाधड़ी से लेन-देन किया है। इससे अधिक चौंकाने वाला सच क्या हो सकता है कि बैंक लोगों की 11,300 करोड़ रुपये की बड़ी रकम को हजम कर गई।
इससे भी अधिक दिलचस्प बात तो यह थी कि बैंक के मुख्य अधिकारियों की नाक के नीचे इस प्रकार के महाघोटाले को कैसे अंजाम दिया गया। बैंकों का खराब रवैया और उचित प्रक्रियाओं का पालन करने में असफलता ही इस घोटाले का प्रमुख कारण है।
नीरव मोदी कौन हैं?
नीरव मोदी देश के सबसे अमीर व्यापारियों में से एक हैं। फोर्ब्स के अनुसार, नीरव मोदी एक ज्वैलरी हाउस के मालिक हैं, उनकी माली हैसियत अनुमानित मूल्य लगभग 1.73 अरब डॉलर ( लगभग 110 अरब रुपए) है। इस व्यक्ति को क्रिस्टी और सोथबी जैसे प्रमुख नीलामी घरों की सूची में चित्रित किया गया है और यह सम्मान पाने वाले यह पहले भारतीय हैं। उनके बारे में यह बताया गया है कि वह 20 से अधिक संपत्तियों और 100 से अधिक बैंक खातों के मालिक हैं।
कैसे हुआ पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाला
नीरव मोदी ने अपने स्वयं के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बैंकिंग प्रणालियों की खामियों का फायदा उठाया। नीरव मोदी ने बैंक के अधिकारियों और फर्म (कंपनियों) के साथ मिलकर अपने व्यापारियों का भुगतान करने के इरादे से विदेशी बैंकों से क्रेडिट जुटाने तथा अपनी और अपनी परिवारिक संपत्ति – डायमंड्स आर यूएस, सोलर एक्सपोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स – द्वारा साख पत्र (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) की माँग करके बैंक को मूर्ख बनाया।
हालांकि, नीरव और उसके सहयोगियों के पास आवश्यक दस्तावेजों या क्रेडिट की मंजुरी नहीं थी। बैंक के साथ उनका लेन-देन या जमा धनराशि संबंधी कोई संबंध नहीं था। दो बैंक कर्मचारियों द्वारा एलओयू को धोखे से जारी किया गया। निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था और लेन-देन के लेखों से बचने के लिए बैंकिंग सिस्टम में प्रविष्टियां भी नहीं बनाई गईं थी।
पिछले सात वर्षों से, मोदी और उनकी फर्म मुंबई में ब्रैडी रोड पर बैंक शाखा से एलओयू जुटा रहे थे। एलओयू एक बैंक गारंटी है जो विदेशी भुगतान के लिए जारी किए जाते हैं। यह एलओयू की इन गारंटियों की वजह से था कि नीरव मोदी ने सफलतापूर्वक भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से अल्पकालिक ऋण उठाए जिससे उन्हें कच्चे-माल के आपूर्तिकर्ताओं का भुगतान करने में मदद मिली, जो इस मामले में किसी न किसी तरह बिना चमक के हीरे थे।
नीरव पंजाब नेशनल बैंक द्वारा जारी किए गए एलओयू (लेटर ऑफ अंडरटेकिंग) के जरिए इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और एक्सिस बैंक से भी ऋण प्राप्त करने में सक्षम रहे। हालांकि नीरव के इस घोटाले का भांडा जनवरी में फूटा, जब उसके प्रतिनिधियों ने दोबारा लोन लेने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से संपर्क किया। बैंकिंग प्रणाली में व्यक्तिगत परिवर्तन के दस्तावेजों की समीक्षा नीरव के लिए दुर्भाग्यशाली रही। नीरव के प्रतिनिधियों के अनुसार, उन्हें पहले से ही ऋण प्राप्त हो रहा था, लेकिन शाखा रिकार्डस में फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के बारे में पर्याप्त विवरण नहीं दे पाई, जिसके चलते यह बड़ा घोटाला सामने आया।
क्या इन घोटालों से बचा जा सकता है?
बैंकिंग प्रणाली में चल रही अधिक कठोर ऑडिट और बैंकिंग प्रक्रियाओं का सही प्रकार से अनुपालन ना किए जाने के कारण यह घोटाला लंबे समय तक गुप्त रहा। इस घोटाले का एक मुख्य कारण राजनीतिक और व्यापारिक संबंध भी हो सकता है जो लंबे समय तक अज्ञात था। पंजाब नेशनल बैंक की इंटरनल कोर बैंकिंग प्रणाली इंटरनेशनल मैसेजिंग सिस्टम के साथ एकीकृत नहीं है, जो स्विफ्ट द्वारा संचालित की जाती है। यदि इन सब चीजों का ध्यान रखा गया होता तो आज यह समस्या सामने नहीं आती।