भारत में स्नातक और स्नातकोत्तर में अध्ययन करने की चाहत रखने वाले छात्रों के लिए इंजीनियरिंग बेहतर विकल्पों में से एक है। देश के हजारों इंजीनियरिंग कॉलेजों में से केवल 3000 कॉलेजों को स्थायी मान्यता प्राप्त है। इनमें से कुछ को अभी तक विश्वविद्यालय समझा जाता है। हर साल इन कॉलेजों से लाखों छात्र पढ़ाई करके बाहर निकलते हैं, इन कॉलेजों द्वारा छात्रों को बड़े सपने दिखाकर एक आकर्षक राशि कमाई जाती है। इनमें से ज्यादातर छात्र आईटी उद्योग और कोर इंजीनियरिंग उद्योगों में नौकरी करने की चाहत रखते हैं लेकिन शीर्ष इंजीनियरिंग से स्नातक किये हुए छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं या कॉर्पोरेट जगत में बड़ी नौकरी पाने की इच्छा रखते हैं। लेकिन क्या हमारे पास इंजीनियरिंग की डिग्री रखने वाले इन लाखों छात्रों को आवश्यक अवसर प्रदान करने की क्षमता है? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वे एक समृद्ध कैरियर की गारंटी के लिये आवश्यक कौशल क्षमता से लैस हैं? हाल ही में एक अध्ययन से पता चला है कि यहां एक असली चुनौती सामने आई है।
अध्ययन से चौंकाने वाले खुलासे
हाल ही में दिल्ली आधारित रोजगार योग्यता मूल्यांकन संगठन (एस्पियरिंग माइंड) ने कंप्यूटर और आईटी से संबंधित शाखाओं से इंजीनियरिंग छात्रों के प्रोग्रामिंग तर्क के लिए कोडिंग कौशल का आकलन करने के लिए एक अध्ययन किया। अध्ययन के परिणाम से बहुत से लोगों को दुःखी कर सकते हैं। एस्पियरिंग माइंड के अनुसार, भारतीय कॉलेजों से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले लगभग 4.7 छात्र ही सही प्रोग्रामिंग कोड लिखने में सक्षम हैं। इस अध्ययन में भाग लेने वाले 60 प्रतिशत अभ्यर्थी कोई भी कोड लिखने में असफल रहे।
एस्पियरिंग माइंड ने भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित 500 महाविद्यालयों के 36,000 इंजीनियरिंग छात्रों पर यह अध्ययन किया। दिल्ली के इंजीनियरों ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, शायद, उन्होंने अपने कौशल और प्रथाओं का परीक्षण करने के लिये बनाये गये स्वचालित प्रोग्राम पर 100 में से 23.48 की औसत स्कोरिंग की। मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई के इंजीनियरों ने अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन सबसे खराब प्रदर्शन कोलकाता और हैदराबाद के इंजीनियरों ने किया। यह एक घिनौना आश्चर्य है क्योंकि कथित तौर पर हैदराबाद ऐसा शहर है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसईईएम) की डिग्री हासिल करने के लिये बहुत अधिक संख्या में छात्रों को आमेरिका भेजता है। एस्पियरिंग माइंड का यह पहला अध्ययन नहीं है। पिछले साल कंपनी ने पूरे देश में स्नातक वर्ग के 1,50,000 इंजीनियरिंग छात्रों का अध्ययन किया, जिनमें के केवल 7 प्रतिशत छात्र ऐसे पाये गये जो कोर इंजीनियरिंग में नौकरी पाने के योग्य थे।
प्रमुख चुनौतियां
यह क्या है और इसमें किसका दोष है? विशेषज्ञों का मानना है कि पूरे देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की अधिकता से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी इस निराशाजनक स्थिति के लिए जिम्मेदार है। ज्यादातर प्राइवेट कॉलेज कैपिटेशन फीस के रूप में बड़ी राशि लेते हैं और छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक पर्याप्त व्यवस्था के बिना छात्रों की भर्ती कर लेते हैं और इस क्षेत्र में सामने आने वाली व्यवहारिक चुनौतियों का निर्वाहन नहीं करते हैं।
भारत के किसी भी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी कॉलेज की (यहाँ तक कि आईआईटी जैसे शीर्ष पाठ्यक्रम वाले कॉलेजों की भी) दुनिया के शीर्ष कॉलेजों में कोई गिनती नहीं है। कई क्षेत्रों जैसे सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रमों में शिक्षण की नीति अक्सर पुरानी है। कंप्यूटर सिस्टम और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लगातार परिवर्तनों के अनुकूलन माँग वाला एक बहुत ही गतिशील क्षेत्र है, ऐसा क्या है कि हमारी शिक्षा प्रणाली इसे सीखने में असफल रहती है। हमारे केवल सॉफ्टवेयर पेशेवरों ने ही पुरानी प्रोग्रामिंग भाषाओं को नहीं सीखा है बल्कि हमारे इंजीनियरों को भी पुरानी इंजीनियरिंग और उत्पादन तकनीकि का अध्ययन करने करने के लिये कहा जाता है।
महत्वाकांक्षी क्षमताओं की पहचान
भारत स्वयं को दुनिया में विनिर्माण केंद्र बनाने की महत्वाकांक्षाओं को शरण दे रहा है। भारत को विनिर्माण केंद्र को रूप में उभारने के लिये भारत सरकार ने “मेक इन इंडिया” नामक एक कार्यक्रम चलाया है जिसका उद्देश्य भारत में विनिर्माण एवं सेवाओं को बढ़ावा देना और विदेशी निवेशों को आमंत्रित करना है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि जो शिक्षा और कौशल हम उत्पन्न करते हैं, उसकी गुणवत्ता ऐसी विशाल महत्वाकांक्षाओं के साथ समन्वय में नहीं है। छात्रों और विद्यार्थियों के माता- पिता के रूप में, हमें यह एहसास करना होगा कि इंजीनियरिंग एक तरक्की है, एक बुलावा है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हर किसी को समझना होगा कि इंजीनियरिंग केवल एक प्रतीक नहीं है बल्कि कार्य कुशलता का संग्रह है।