चुनावी “मौसम” का आगमन हो चुका है और इसके साथ ही रणभूमि में खड़े राजनीतिक दलों की उम्मीदें भी बढ़ने लगी हैं। 2019 के महासंग्राम से पहले इन विधानसभा चुनावों में लोगों के रुझान की एक झलक देखने को मिलेगी।
राजस्थान में, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद के लिए और भारतीय जनता पार्टी के लिए दूसरे कार्यकाल में भी बाजी मारने की उम्मीद कर रही हैं। लेकिन, सवाल यह है कि क्वीन वसुंधरा राजे अपने वंश की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए क्या अपने ताज को बरकरार रख पाएंगी?
राजस्थान में वसुंधरा राजे
2003 में पहली बार मुख्यमंत्री पद पर काबिज होते हुए, वसुंधरा राजे ने लोक-सम्मत से बाजी मारी थी। वसुंधरा राजे की परिवर्तन यात्रा (2003) और सूरज संकल्प यात्रा (2013) दोनों उनको राजस्थान के मुख्यमंत्री के पद पर पहुंचाने में सफल रहीं हैं।
वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद को संभालने वाली पहली महिला हैं, जो अभी भी ग्रामीण महिलाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। 2013 के विधानसभा चुनावों में, राजे की पार्टी ने 200 सीटों में से 163 सीटों पर कब्जा किया था, गहलोत की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार महज 21 विधानसभा सीट ही जीत पाई थी। पिछले एक साल में, राजे सरकार ने अपने नाम कई उपलब्धियाँ दर्ज की हैं लेकिन ये सभी उपलब्धियाँ किसी काम की नही रहीं।
वसुंधरा राजे के कार्यकाल के दौरान राज्य में हुए महत्वपूर्ण विकास में कई योजनाएं शामिल हैं। उदाहरण के लिए, उनके द्वारा शुरू की गई भामाशाह योजना ने राजस्थान की महिलाओं को वित्तीय रुप से स्वतंत्र बनाने में सक्षम बनाया। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य में अन्नपूर्णा स्टोर स्थापित किए गए।
हालांकि, राजस्थान में भाजपा सरकार को लेकर विशेष रूप से बढ़ते किसानों के संकट के लिए उठा पटक चलती रही है। अनियमित बारिश, किसानों आदि पर ऋण पुनर्भुगतान के दबाव ने सरकार को रडार के नीचे रखा है।
उलझन क्या है?
जैसा कि उल्लेख किया गया है, पिछले पांच वर्षों में वसुंधरा राजे सरकार के लिए सभी चीजें अच्छी नहीं रही हैं। वर्ष 2013 में वसुंधरा राजे राजनीतिक रूप से कांग्रेस के अशोक गहलोत को हराकर, मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहीं थी। हालांकि, जब 2008 में राजे का कार्यकाल समाप्त हुआ, तो अशोक गहलोत ही थे जिन्होंने वसुंधरा राजे को हार का चेहरा दिखाया था। इसके बाबजूद भी वसुंधरा राजे अपनी जीत को बरकरार रखने में पूरी तरह से भरोसा कर रही हैं। यह वास्तविकता से परे हो सकता है, जैसा कि राजे को विश्वास है।
सरकार द्वारा घोषित लोकप्रिय योजनाओं, जैसे कि ऋण छूट, अब वापस आ गई है। इस योजना के लिए अधिक से अधिक बार पैसे की व्यवस्था करना संघर्ष भरा हो सकता है। राज्य में सरकार नई नौकरियों का सृजन करा पाने में अक्षम रही है जिसके कारण लोग सरकार के अप्रत्याशित प्रदर्शन पर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं।
दूसरा कार्यकाल?
लगभग, पिछले तीन दशकों में राजस्थान राज्य अपनी वैकल्पिक सरकार के लिए जाना जाता है। सत्ता की स्थिति के लिए कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे के बीच वैकल्पिक हैं। यह स्वचालित रूप से राजे को दूसरे कार्यकाल का उपभोग करने का मौका देता है।
वसुंधरा राजे को सबसे बड़ी बाधाओं में से एक राज्य में विरोधी सत्ता की बढ़ती लहर का सामना करना है। आंतरिक राजनीति और संघर्ष, भाग्य से मिले मौके को भी खराब कर देता है। उदाहरण के लिए यह हाल ही में सुर्खियों में आया था कि 40+ बीजेपी नेता एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र का टिकट पाने की उम्मीद कर रहे थे। सभी पार्टी कार्यकर्ता पहले से ही सीट पर अपने दावे कर रहे हैं।
2003 की शुरुआत में, राजे के पहले कार्यकाल के दौरान, आम लोगों के लिए उनके नजरिए की अक्सर आलोचना की जाती थी। एक शाही परिवार से आईं, “क्वीन” कभी-कभी “लोगों की नेता” के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए संघर्ष करती रही हैं।
निष्कर्ष
इन विधानसभा चुनावों की तरह 2019 के लोकसभा चुनावों के मतदान एक अनुमानित भविष्यवाणी के रूप में कार्य करेंगे, क्योंकि राज्यों में उप-चुनाव राज्य विधानसभाओं के लिए एक ही भूमिका निभाते हैं। जनवरी 2018 लोकसभा उप-चुनावों ने उन्हें बीजेपी राज्य सरकार के लिए भारी निराशा दी।
चुनाव में आने वाले निर्वाचन क्षेत्रों में से 2 (अलवर और अजमेर) भाजपा के हाथ में थे। हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी ने दोनों सीटों को कांग्रेस के सामने खो दिया, जिसे केवल एक बुरी हार कहा जा सकता है। इस तरह की स्थिति में, बदलते उतार-चढ़ाव को अनदेखा करना मुश्किल हो गया है, शायद ऐसा होना भी नहीं चाहिए।
कई जनमत सर्वेक्षणों ने विपक्षी-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए सहज जीत की भविष्यवाणी की है। अभी तक कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है। इस क्षेत्र में कांग्रेस के पसंदीदा सचिन पायलट अगले सत्र में मुख्यमंत्री के लिए लोगों की पहली पसंद हैं।
सत्ता विरोधी लहर को देखते हुए, उप-चुनावों से हार, कम हो रही लोकप्रियता और मूल समस्याओं को साथ मिलकर कम से कम कहें तो राजस्थान में बीजेपी की जीत एक संघर्ष की तरह लगती है। क्या ‘क्वीन’ राजस्थान के वैकल्पिक सरकार के इतिहास को तोड़ कर अपने सिंहासन को बचा पाएंगी? ऐसा तभी हो सकता है जब वह मतभेदों को भेद पाने कामयाब हो पाएंगी।
2013 – राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन