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बाघिन अवनि को मार दिया गया : क्या यह न्यायोचित है?

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2 नवंबर को, 2 महीने की तलाश के बाद, बाघिन अवनि को महाराष्ट्र के जंगल में घेर कर मार दिया गया। 6 साल की बाघिन, जो आधिकारिक तौर पर टी-1 के नाम से जानी जाती थी, के दो 10 महीने के बच्चे अनाथ हो गए। नरभच्छी होने के बाद दुनिया भर से लोग इसके विरोध में खड़े हो गए थे। जबकि वन विभाग की टीम और कुछ कार्यकर्ता अवनि को बचाना चाहते थे।

अब, उसकी मृत्यु के साथ, लोग फिर से शोक कर रहे हैं। क्या यह हत्या न्यायोचित है और वास्तव में इसका कोई दूसरा समाधान नहीं था?

कौन थी बाघिन अवनि, क्यों मारी गई उसे गोली?

एक पुलिस अधिकारी ने मीडिया को बताया, “रालेगांव पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र के तहत बोराती जंगल के विभाग संख्या 149 में प्रसिद्ध शार्प शूटर नवाब शाफात अली के बेटे शार्प शूटर असगर अली ने बाघिन अवनि को गोली मार दी गई।”

छः वर्षीय बाघिन को पहली बार वर्ष 2012 में देखा गया था। अगस्त में, बाघिन ने अपने बच्चे के साथ यवतमाल जिले में तीन लोगों का शिकार किया था। इसके तुरंत बाद, सितंबर में उच्च न्यायालय ने चेतावनी जारी की थी कि पहले बाघिन को जिंदा पकड़ने के प्रयास किए जाएंगे, लेकिन अगर रेंजरों को बाघिन को गोली मारना पड़े तो इसमें न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। 2016 के बाद से, इस क्षेत्र में 13 लोग बाघों का शिकार हो चुके हैं। डीएनए प्रमाण के आधार पर इनमें से 5 लोग अवनि का शिकार हुए थे।

शिकार का सिलसिला शुरू होने के तुरंत बाद वन विभाग द्वारा बाघिन को पकड़ने का काम शुरू कर दिया गया।  स्निफर कुत्तें, शार्प शूटर के साथ ही 200 से अधिक कर्मचारी बाघिन को पकड़ने के लिए तैनात किए गए। पास के गांव के लोग भी सतर्क थे, कुछ सावधानी बरतने और सुरक्षा उपायों को अपनाने के लिए कहा गया था। प्रयासों के बावजूद, बाघिन लंबे समय तक पकड़ में नही आई।

आखिरकार, 2 नवंबर को बाघिन को घेरकर मार दिया गया, उस समय उसके शावक मौजूद नहीं थे। “अधिकारियों ने शुरू में उसे जिंदा पकड़ने की कोशिश की थी। हालांकि एक अधिकारी ने कहा, घने जंगल और अंधेरे के कारण, वे उसे पकड़ने में असमर्थ थे इसलिए उन्होंने एक फायर की जिसकी वजह से बाघिन वहीं पर ढ़ेर हो गई”।

याचिकाएं और विरोध प्रदर्शन

न्यायालय द्वारा बाघिन के बारे में अपना पहला आदेश जारी करने के तुरंत बाद, इसके विरोध में एक प्रदर्शन शुरू किया गया। पूरे देश और यहां तक कि बाहर के लोग भी, एक साथ प्रदर्शन में खड़े थे, जो अवनि के लिए दया की मांग कर रहे थे। “13 हत्याएं हुई हैं, लेकिन केवल तीन मृत शरीरों को फोरेंसिक परीक्षण किया गया है। अर्थ ब्रिगेड फाउंडेशन की सह-संस्थापक और निदेशक डॉ. सरिता सुब्रमण्यम ने कहा, तीनों में से केवल एक पर ही बाघिन का डीएनए मिला था”।

लोगों ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप न किए जाने के फैसले पर असंतोष जताया। साथ ही साथ महाराष्ट्र वन विभाग की आलोचना की गई। अक्सर पूछा जाने वाला प्रश्न: जब इसे पकड़ने के लिए कहा गया था, तो इसे मारने के लिए, एक शिकारी (नवाब शौकत अली खान) को नियुक्त क्यों किया गया?

विचार

29 अक्टूबर को, अवनि की मृत्यु से कुछ दिन पहले, चीन ने “चिकित्सा और अनुसंधान उद्देश्यों” के लिए बाघ की हड्डियों और गैंडे की सींगों पर अपनी 25 वर्षीय पुराने कार्य पर प्रतिबंध लगा दिया। कार्यकर्ताओं के अनुसार, इससे वन्यजीव डेरिवेटिव की मांग में वृद्धि होगी।

भारत में लगभग 70% बाघ और 85% एक सींग वाले गैंडे निवास करते हैं। तो फिर इस फैसले से देश में पहले से ही लुप्तप्राय वन्यजीवन के लिए स्वतः रूप से खतरा पैदा हो जाएगा। विडंबना यह है कि जिस समय लुप्तप्राय जानवरों को बचाने के लिए जद्दोजहद की जा रही थी, उसी वक्त अवनि की हत्या हो गई। किसी “नरभक्षी” जानवर का शिकार करने के लिए यह सबसे लंबे समय तक चलने वाले अभियानों में से एक था। सवाल यह है कि, क्या उसे मार देना उचित था?

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि देश में वन्य क्षेत्र, जंगली जानवरों के लिए प्राकृतिक आवास, तेजी से कम हो रहे है। मनुष्यों द्वारा जंगलों का कटान हालिया प्रवृत्ति नहीं है। यह स्वाभाविक रूप से मानव-वन्यजीवन के अंतःक्रिया की संभावनाओं और जोखिमों को बढ़ाता है। प्रदर्शनकारियों के अनुसार, जंगल में 437 हेक्टेयर खनिज समृद्ध भूमि के अवैध होने के कुछ ही समय बाद, पहले मृत शरीर को अवैध रूप से एक व्यापार में बेचा गया था।

दूसरी तरफ, कई लोग तर्क देंगे कि अवनि को “नरभच्छी बाघिन” के रूप में संदर्भित करना एक समस्याग्रस्त दृष्टिकोण है, क्योंकि यह सच नहीं है। खुद की रक्षा के लिए जानवरों पर हमला करना स्वाभाविक है।

निष्कर्ष

बाघिन अवनि की मौत की खबर सुनकर, इलाके के ग्रामीणों ने पटाखे फोड़े और मिठाई बाँटी। कोई भी व्यक्ति किसी जानवर के खतरनाक घोषित हो जाने पर उसका सामना नहीं कर सकता और न ही करना चाहिए। इसके अलावा, जांच से पता चला है कि इस क्षेत्र में बाघिन के दो शावक ही नहीं बल्कि एक नर बाघ बाघ भी है। गंभीरता से इस बात पर विचार करने से पता चलता है कि क्षेत्र में बाघ की जनसंख्या कम होती जा रही है।

कई बार जब हम नियमित रूप से पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता का हवाला देते हैं, तो इस तरह की एक घटना को और गंभीरता से देखा जाना चाहिए। क्या कोई रास्ता नहीं था कि उसकी मौत को रोका जा सके? वन्यजीव जानवरों के साथ किसी भी आकस्मिक मानवीय बातचीत से बचने के लिए और अधिक कठोर उपाय किए गए थे, क्या अवनि और लोगों, जिनकी हत्या हुई थी, के जीवन को बचाया जा सकता था।

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बाघिन अवनि को मार दिया गयाः क्या यह न्यायोचित है?
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बाघिन अवनि की मौत के साथ 2 महीने से रहा मौत का खेल 2 नवंबर को थम गया। 2016 के बाद से क्षेत्र में 13 मौतों में से कम से कम 5 लोगों की मौत के लिए बाघिन अवनि को जिम्मेदार ठहराया गया। हालांकि, ग्रामीणों ने बाघिन की मौत का जश्न मनाया। लेकिन एक सवाल जो हमारे जहन में आता है कि क्या अवनि को मारा जाना ही एकमात्र विकल्प था।
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