वर्ष 2018 चल है और 2019 भी लगभग आने ही वाला है। और, हमारे फेफड़े सांस लेने के लिए ताजी हवा की तलाश कर रहे हैं। यदि आप भी मेरी तरह दिल्ली में रह रहे हैं, तो संभावना है कि आपके फेफड़ों को केवल निराशा ही मिलेगी। शहर की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) दिवाली के पांच दिनों के बाद भी “बहुत खराब” और “गंभीरता” के बीच बढ़ रहा था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक निकाय पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए), शहर में सीएनजी द्वारा चालित वाहनों को छोड़कर सभी निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। नवीनतम सिफारिशों में, “किसी भी तरह” ऑड-ईवन स्कीम को लागू करने की मांग की गई है।
बेशक, राजधानी में प्रदूषण का स्तर अस्वीकरणीय है और हमें इस समस्या से निपटने के लिए सख्त कार्यवाही की जरूरत है। हालांकि, यह एक आत्मपरीक्षण मांग है – क्या निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाना एक संभव विचार है। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि, क्या यह एक अच्छा विचार है? चलो पता लगाते हैं।
वायु प्रदूषण का कारण?
सर्दियों के दौरान राजधानी में मौसम सबसे खराब होता है। धुंध से भरी वायु में सांस लेना और यहां तक कि स्पष्ट दिखाई देना भी दूभर हो जाता है। अक्सर यह दावा किया जाता है कि बाहरी कारक, अर्थात् पड़ोसी राज्यों में फसलों के बचे हुए अवशेषों को जलाना शहर में वायु प्रदूषण का कारण बनता है।
हां, बेशक शहर के प्रदूषण स्तर को स्टबल बर्निंग से बढ़ाबा मिलता है- लेकिन केवल सर्दियों के कुछ महीनों तक। यह पूरे साल दिल्ली में “24 घंटे” प्रदूषण का कारण नहीं बनता है। ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टीईआरआई) ने हाल ही में इस समस्या के जवाब का पता लगाने के लिए एक अध्ययन आयोजित किया।
शहर के प्रदूषण का औसत 75% उद्योगों से, टू से थ्री व्हीलर द्वारा 12%, ट्रक, ट्रैक्टर, एलसीवी आदि से 10% और बाकी के लिए आवासीय क्षेत्रों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हम जानना चाहते हैं कि निजी कारों का प्रतिशत क्या है, जिसे ईपीसीए हटाने का सुझाव दे रहे हैं? 3%। जो सही है।
दिल्ली के लिए आवश्यक परिवर्तन और इसके सार्वजनिक परिवहन
दुनिया भर के कई मेगा-शहरों को प्रदूषण की समस्या का सामना और समाधान करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सार्वजनिक परिवहन का फिर से उपयोग करना बीजिंग और पेरिस द्वारा अपनाया गया है। सीएनजी पर चालित वाहनों को छोड़कर, सभी निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की ईपीसीए की योजना है, यह एक संकेत है कि दिल्ली सार्वजनिक परिवहन के मार्ग पर उतरने की योजना बना रही है।
सवाल यह है कि निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाना क्या एक अच्छा विचार है? शहर की आबादी करीब 2 करोड़ है। इसके साथ ही, यह संख्या पड़ोसी शहरों से दैनिक आधार पर दिल्ली में आने वाले और बाहर जाने वाले हजारों लोगों को छोड़ कर है।
दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन सेवाएं
और, हमारी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के बारे में क्या? शहर में कुछ 5400 बसें, 314 कि.मी. का मेट्रो नेटवर्क, टैक्सी जैसे 1.5 लाख वाहन हैं। यहां तक कि किसी भी प्रतिबंध के बिना वर्तमान परिदृश्य में, दैनिक यात्री सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके संघर्ष करते हैं।
कई डीटीसी बसों में प्रतीक्षा की लंबी अवधि होती है और जब वे अंततः पहुंचते हैं, तो लोगों के लिए मुश्किल से खड़े होने की जगह होती है तो वह बैठेंगे कैसे। यही हमारे मेट्रो की भी स्थिति है। टैक्सी नेटवर्क के बारे में बात करते हुए, यह कम से कम दिन-प्रति-दिन आने-जाने वाली आबादी के एक बड़े वर्ग की पहुँच से बाहर है। इसके साथ ही, कोई भी जल्दी के कारण कीमतों में वृद्धि से अनजान नहीं है। जरा सोचिए कीमते क्या होंगी? जब पूरा शहर फिर से सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करेगा।
निजी वाहनों पर भरोसा
दिल्ली शहर में पंजीकृत वाहनों की अनुमानित संख्या 1.12 करोड़ है। इनमें से लगभग 1 करोड़ निजी कार और मोटरसाइकिल हैं। इसके अलावा, 33 लाख निजी पंजीकृत वाहनों में से केवल 4.5 लाख वाहन, लगभग 13.6%, सीएनजी द्वारा चालित हैं!
सांख्यिकीय तौर पर, इसका मतलब है कि ईपीसीए निर्देश लॉन्च होने पर लगभग 86% निजी वाहनों का उपयोग बंद कर दिया जाएगा। जनसंख्या बहुत ही ज्यादा है, ये कमजोर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का उपयोग करके वापस निजी वाहनों पर आ गए हैं। यदि यह आपदा की तैयारी नहीं है, तो क्या है?
यदि कोई विकल्प है, तो क्या है?
ईपीसीए ने कहा है कि दिल्ली में “किसी भी तरह” एक सख्त-शासन को फिर से लागू करना चाहिए। सिफारिश को आगे बढ़ाने के लिए, यह उन सभी निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए लिया गया है जो सीएनजी द्वारा चालित नही हैं। यह हमारी सड़कों से निकाले गए निजी वाहनों का 86% है, और वह भी तब, जब वे केवल प्रदूषण के 3% के लिए जिम्मेदार हैं।
लागत और लाभ विश्लेषण के परिदृश्य में बहुत अधिक लाभ नहीं होगा। यहां गंभीर प्रतिक्रिया होगी जैसे, नागरिकों के साथ भरे हुए सार्वजनिक वाहन, कैब के किराए में बढ़ोत्तरी, पूरा शहर स्थिर हो रहा है।
शायद, हम समस्या के गलत पहलू पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, हमारे उद्योगों से आने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित / विनियमित करना, ट्रकों और अन्य प्रदूषण पैदा करने वाले वाहनों पर प्रतिबंध लगाना, या कम से कम, उन्हें पर्यावरण के अनुकूल बनाना एक वैकल्पिक दृष्टिकोण होगा।
निष्कर्ष
2018 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग 35% लोगों से पूछे गए प्रश्न से पता चलता है कि दिल्ली निवासी शहर से बाहर निकलना चाहते हैं। कारण? इसकी हवा जो तेजी से जहरीली हो रही हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में स्थानांतरित लोगों के उदाहरण अब और अधिक आम बन गए हैं। कई माता-पिता, अपने बच्चों को शहर में सांस लेने में परेशानी को देखते हुए, वहां से बाहर जाने के लिए मजबूर हो रहें हैं।
बेशक, अब तक, समृद्ध परिवारों तक स्थानान्तरण सीमित है। शहर की अधिकतर आबादी के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है, बजाय अपने जीवन की नैय्या को आगे बढ़ने के। जाहिर है, हमें समस्या का एक ठोस समाधान चाहिए। लेकिन, यही कारण है कि निजी वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का सही तरीका नहीं है। यह केवल एक नियमित नागरिक के बोझ को बढ़ा देगा।