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नवीकरणीय ऊर्जा – भारत के लिए एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत

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नवीकरणीय ऊर्जा - भारत के लिए एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत

विशेषकर गर्मियों के दौरान होने वाला अंधेरा, ऊर्जा के एक वैकल्पिक स्रोत की आवश्यकता का संकेत देता है। वर्ष 2012 में, भारत के नई दिल्ली और कोलकाता के क्षेत्र में सबसे अधिक अंधेरा देखा गया था। 30 और 31 जुलाई को उत्तर, पूर्व और उत्तरी-पूर्वी विद्युत ग्रिड फैल हो गए थे और जिसने भारत के 19 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था तथा जिसके परिणाम स्वरूप भारत के लगभग 70 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। इससे रेलवे, अस्पताल और बसों जैसी आपातकालीन सेवाएं भी बाधित हो गई थी।

बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण और आर्थिक विकास के कारण बिजली की खपत के साथ-साथ अतिरिक्त बिजली पैदा करने का संघर्ष कई गुना बढ़ गया है। आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण बिजली की आपूर्ति की कमी को चुनौती देते हैं। इसलिए, भारत को बिजली की माँग और आपूर्ति के बीच के अंतर को भरने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

भारत के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत

भारत में सूर्य के प्रकाश, जैव ईंधन और वायु जैसे अक्षय ऊर्जा संसाधनों की कमी नहीं है। पूरी दुनिया में हमारा देश एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ उसी के लिए एक मंत्रालय – गैर- पारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (एमएनईएस) समर्पित है। गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय (एमएनईएस), को अब नए और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के रूप में जाना जाता है। यह विभाग अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने, प्रौद्योगिकियों के संवर्धन और व्यावसायीकरण के लिए अनुकूल वातावरण बनाने, संसाधनों के मूल्यांकन तथा विस्तार आदि के लिए उत्तरदायी है। भारत निश्चित रूप से ऊर्जा के गैर-प्रदूषणकारी अक्षय स्रोतों का उपयोग करने की दिशा में कार्य कर सकता है। ऐसा करके यह केवल आवश्यक बिजली की जरूरतों को ही पूरा नहीं करेगा, बल्कि इससे लाखों लोगों के लिए नौकरियों के दरवाजे भी खुल जाएंगे। भारत को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप जैसे वायु, सौर ऊर्जा, जैव ईंधन, जल, भूतापीय और बायोगैस के बारे में भी सोचना चाहिए।

अक्षय स्रोतों से बिजली उत्पादन वित्तीय वर्ष 8 में 7.8 प्रतिशत की तुलना में वित्तीय वर्ष 13 में 12.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। भारत विश्व का पाँचवां सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक है। शेष ऊर्जा छोटे जल विद्युत, जैव-ऊर्जा और सौर ऊर्जा द्वारा उत्पन्न की जाती है।

भारत पवन ऊर्जा के क्षेत्र में नया है और भारत में इसकी शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी, लेकिन अल्प समय के भीतर, हमारा देश पवन ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता के मामले में पाँचवां सबसे बड़ा देश बन गया है। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल और पश्चिम बंगाल वह मुख्य राज्य हैं, जहाँ विशाल क्षमता वाले पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित किए गए हैं। देश की कुल बिजली में से 1.6 बिजली हवा के माध्यम से उत्पन्न की जाती है।

भारत में सौर ऊर्जा, बहुतायत में उपलब्ध ऊर्जा का एक अतुलनीय स्रोत है। हर साल, भारत में लगभग 5000 टीडब्ल्यूएच सौर ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। इस उपलब्ध संसाधन के दसवें भाग का उपयोग करके, भारत में बिजली की समस्या का समाधान किया जा सकता है।

भारतीय सौर ऋण कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समर्थित सबसे प्रभावशाली कार्यक्रमों में से एक है। इसने स्थिरता के लिए एनर्जी ग्लोब अवार्ड भी जीता है। इस कार्यक्रम के तहत सिर्फ तीन वर्षों के लिए 2,000 बैंकों के माध्यम से घर पर लगाई जाने वाली 16,000 से अधिक सौर प्रणालियों के लिए वित्त (धन) प्रदान किया गया है।

अमेरिकी-भारत ऊर्जा साझेदारी कार्यक्रम, जिसे सेरियस (भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सौर ऊर्जा अनुसंधान संस्थान) के रूप में जाना जाता है, यह एक काफी प्रभावशाली कार्यक्रम है। सेरियस रोजगार के अवसर और अति आवश्यक बिजली का उत्पादन करेगा और यह पर्यावरण के नजरिए से भी काफी सुरक्षित होगा।

भारत में वर्ष 2009 के अंत में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन (जेएनएनएसएम) की भी स्थापना हो गई थी। इसका लक्ष्य सौर ऊर्जा से 10 प्रतिशत ऊर्जा का उत्पादन करना है, लेकिन इसे कुछ बड़े कदम उठाकर इस दिशा में एक बड़ी भूमिका निभानी होगी।

विभिन्न मानव गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन की रहनुमाई करती हैं। इसलिए, सभी देशों को विशिष्ट कार्यों को पूरा करना होगा। भारत को ऊर्जा स्रोतों के वैकल्पिक तरीकों का पता लगाना चाहिए। हाइड्रोकार्बन और कोयले का उपयोग करने की बजाय, भारत को अक्षय ऊर्जा के उपयोग पर ध्यान देना चाहिए। अपनी 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) में, भारत सरकार ने अक्षय ऊर्जा स्रोतों से 18.5 गीगावॉट ऊर्जा उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें 11 गीगावॉट पवन ऊर्जा शामिल है।

भारत को तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला और परमाणु संबंधी ऊर्जा संयंत्रों के साथ-साथ नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। सरकार को नवीकरणीय संसाधनों से ऊर्जा उत्पादन करने के लिए अनुकूल नीतियाँ तैयार करनी चाहिए। इनके उपयोग को लोकप्रिय बनाने के लिए कुछ प्रोत्साहनों या योजनाओं के साथ-साथ अक्षय संसाधनों का उपयोग करने वाले लोगों या समुदायों को लाभान्वित करना चाहिए। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के उपयोग को विकसित करने के लिए, उसे बढ़ावा देने के लिए और उसमें वृद्धि करने के लिए, भारत को एक समर्पित अनुसंधान और विकास केंद्र में तब्दील होना पड़ेगा।

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