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मूवी रिव्यू नानू की जानू

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कलाकारः अभय देओल, पत्रलेखा, बृजेन्द्र काला और मनु ऋषि

निर्देशकः फाराज हैदर

निर्माताः पीवीआर पिक्चर्स, साजिद कुरैशी

लेखकः मनु ऋषि

सिनेमेटोग्राफीः एस.आर. सतीश कुमार

संपादकः मनन अजय सागर

प्रोडक्सन हॉउसः पीवीआर पिक्चर्स, इनबॉक्स पिक्चर्स प्राइवेट लिमटेड

शैलीः कॉमेडी

अवधिः 2 घंटा 12 मिनट

फिल्म कथानक

फिल्म ‘नानू की जानू’ की कहानी निश्चित रूप से कुछ विशिष्ट और कुछ श्रेष्ठ है, लेकिन फिल्म के अंत और बीच में आप निराश हो जाएंगे। फिल्म का कथानक नीचे दिया गया है।

नानू (अभय देओल) प्रॉपर्टी माफिया के एजेंट हैं, जो लोगों के मकानों पर कब्जा करने का कार्य करता है। ‘नानू की जानू’ फिल्म की कहानी गंभीर और खतरनाक अपराधी गुंडे की नहीं है, बल्कि एक कॉमेडी (या माना जाना चाहिए) फिल्म है। वास्तव में, मनु ऋषि के साथ अभय देओल की जोड़ी हमें कॉमेडियन फिल्म ‘ओए लकी लकी ओए’ की याद दिलाती है। हालांकि, यह जोड़ी फिर से दर्शकों पर अपना जादू बिखेरने में असफल रही है।

फिल्म की कहानी पर वापस आते हैं, फिल्म में नानू अपने आप को खुश करने के लिए सबकुछ करता है चाहे वो खास दोस्त, बार, वाइन (शराब) और अपराध की दुनिया हो, इन सभी का वह अच्छी तरह से आनंद लेता है- वह एक भोगी, ढीठ, असंवेदनशील गुंडा है। उसकी जिंदगी में तब मोड़ आ जाता है जब एक दिन वह वास्तव में एक अच्छा काम करता है। वह पड़ोस में रहने वाली लड़की का एक्सीडेंट होने पर उसको अस्पताल लेकर जाता है, लेकिन पत्रलेखा मर जाती है। इस एक अच्छे काम की वजह से उसके विचार पूरी तरह से अचानक बदलना शुरू हो जाते है और वह अपने जीवन को अपराध और व्यभिचार से दूर रखना शुरू कर देता है। अब दिलचस्प बात यह है कि जो लड़की मर गई है उसका भूत गुंडे से प्यार करने लगता है। अजीब बात है कि एक पड़ोस की रहने वाली लड़की माफिया जैसे इंसान के प्यार में पड़ जाती है। लेकिन ठीक है, हम तय करने वाले कौन होते है। वह चुड़ैल (पत्रलेखा) उसके पीछे पड़ जाती है और नानू के घर पर कब्जा कर लेती है, जो घर नानू का अवैध कब्जा करने के लिए अगला लक्ष्य होता है, यही से फिल्म में डरावने दृश्य शुरू हो जाते है। फिल्म की शैली धीरे-धीरे डरावनी कॉमेडी के कारण धीमी पड़ जाती है, जिसे एक बेहतरीन प्रभावशाली निर्माता के लिए प्रभावशील बनाना बहुत मुश्किल है। डरावनी कॉमेडी बनाने की कोशिश में, फिल्म औधे मुँह गिर जाती है।

इसके अलावा, फिल्म की कथानक का एक और भाग किया गया है, जिसमें लोगों की रहस्यमयी तरीकों से हत्या हो रही है। क्या इसके पीछे लड़की का भूत है? जब तक आपको इस रहस्य के बारे में मालूम चलेगा तब तक आपकी जिज्ञासा खत्म हो चुकी होगी। ‘नानू की जानू’ फिल्म की उथल-पुथल देखना मुश्किल है और जो थोड़ी से कॉमेडी भी है उसके लिए आपको पूरी फिल्म समाप्त होने तक बैठना पर्याप्त नहीं है।

मूवी रिव्यू

नानू की जानू’ फिल्म नये पात्रों और कहानियों के कारण नियंत्रण से बाहर हो गई है। कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म की कहानी रोचकता से बहुत दूर है। अभय देओल का अभिनय ठीक है, लेकिन क्रियान्वयन कमजोर होने पर एक अच्छा अभिनय फिल्म को असफल होने से बचा नहीं सकता है। फिल्म का मुख्य बिंदू कॉमेडी है, जो फिल्म को ऊपर बिल्कुल भी नहीं उठाती है। अभिनेत्री पत्रलेखा, जो ‘सिटीलाइट्स’ फिल्म में बहुत प्रभावशाली दिखी थी, लेकिन इस फिल्म में वो ऐसा कुछ भी नहीं कर पायी। लगातार बदलती कहानी, दोहराव पेंच, कमजोर अभिनय और जबरदस्ती की कॉमेडी…..और अधिक मुझे कहने की जरूरत नहीं? फिल्म की कहानी पूरी तरह से फ्लॉप है।

हमारा फैसला

फिल्म में अभय देओल की मौजदूगी के बावजूद, यह वास्तव में देखने लायक नहीं है। आप घर पर रह सकते हैं, यात्रा पर जा सकते हैं, वीडियो गेम खेल सकते हैं या रात में तारे गिने सकते हैं, लेकिन इस फिल्म को देखने न जाएं। आपको अपने सप्ताहांत को मजेदार बिताने का अधिकार है।

साराँश
समीक्षका- हर्षिता शर्मा

समीक्षा का दिन- 20-04-2018

समीक्षा का आइटम- मूवी रिव्यूः नानू की जानू

लेखिका रेटिंग-**

 

Categories: Movies
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