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नरेन्द्र मोदी का “स्वच्छ गंगा मिशन”

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने चुनाव अभियान के दौरान वाराणसी आए और वहाँ पर उन्होंने पवित्र गंगा नदी को स्वच्छ करने की आशा व्यक्त की। सांस्कृतिक विरासत के वर्गों के तहत भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के घोषणापत्र में गंगा नदी की सफाई का भी उल्लेख किया गया है। उन्होंने प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए कुछ बदलाव भी किए। गंगा एक्शन प्लान जो पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) का हिस्सा था अब जल संसाधन मंत्री उमा भारती के तहत स्थानांतरित कर दिया गया।

प्राकृतिक संसाधनों को शुद्ध बनाये रखना बहुत जरूरी है क्योंकि ये जीवन को सुरक्षित रखते हैं और परिस्थितिओं को संतुलन मे बनाए रखते हैं। औद्योगिक अपशिष्ट, अनुपचारित मल और नदी के प्राकृतिक प्रवाह में कमी जल प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, गंगा के पारिस्थितिक प्रवाह को वापस लाना अति आवश्यक है, जो कि 115 छोटी नदियों से जुड़ी हुई है। लेकिन इनमें से केवल सात छोटी नदियों को बहाल कर दिया गया है और पारिस्थितिकीय प्रवाह को पुनर्जीवित करने के लिए शेष 108 नदियों पर काम करना होगा।

गंगा सफाई परियोजनाओं का इतिहास

गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) – 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने 462 करोड़ रुपये की लागत से वाराणसी में गंगा को साफ करने के लिए परियोजना शुरू की थी। इस योजना के तहत मलजल उपचार संयंत्रों की स्थापना की गयी जिसमें अनुपचारित मलजल के प्रवाह को नदी के स्थान पर नालों में कर दिया गया था, बिजली और शवदाहगृह स्थापित किये गए तथा सस्ती स्वच्छता सुविधाएं प्रदान की गईं। यह गंगा एक्शन प्लान सफल नहीं हुआ, इसलिए 31 मार्च सन् 2000 को इसे खारिज कर दिया गया लेकिन दूसरे चरण के कार्यक्रम को मंजूरी मिली। फरवरी 2014 तक 59 विभिन्न योजनाओं सहित गंगा कार्य योजना के लिए 993 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनआरबीए) – प्रदूषण को कम करने और गंगा के संरक्षण के लिए, फरवरी 2009 में एक नियामक निकाय राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनआरबीए) बनाया गया इसमें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अध्यक्ष थे। लेकिन जवाबदेही और प्रतिबद्धता की कमी के कारण उन्होंने और दो सदस्यों के साथ पद से इस्तीफा दे दिया। 44 शहरों में 56 योजनाओं को संचालित करने के लिए एनआरबीए को 3,031 रुपये की निधि प्रदान की गई। यहाँ उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, सितंबर 2013 तक 785 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। और एनआरबीए का समर्थन राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन परियोजना के द्वारा किया गया था।

भारत का सर्वोच्च न्यायालय – भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि गंगा के साथ बने औद्योगिक कारखानों को स्थानांतरित करें। 2010 में गौमुख और उत्तरकाशी के बीच नदी के विस्तार को ‘पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र’ कहा गया है।

गंगा बचाओ आंदोलन – संतों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गाँधीवादी अहिंसक आंदोलन शुरू किया गया। राष्ट्रीय महिला संगठन (एनडब्ल्यूओ) और कई अन्य संगठनों ने भी इसमें रुचि दिखाई।

गंगा की पुकार – गंगा को बचाओ – एनवीरो-लीगल एक्शन (आईसीईएलए) के लिए भारतीय परिषद द्वारा समर्थित एक अभियान।

गंगा नदी को प्रदूषित करने वाले तथ्य

नदी कुल 4,00,000 वर्ग मील की दूरी में फैली हुई है।

यह नदी 29 शहरों की 1,00,000 से अधिक की आबादी को कवर करती है और 50,000 से 1,00,000 की आबादी वाले 23 शहरों और लगभग 48 कस्बों के बीच बहती है।

गंगा बड़े पैमाने पर आध्यात्मिक, धार्मिक और अनुष्ठान महत्व के साथ भारत में सबसे पवित्र नदी के रूप में मानी जाती है। लगभग 40% भारतीय आबादी गंगा के जल का उपयोग करके ही जीवित है।

शौच, अनुपचारित औद्योगिक अपशिष्ट और धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान प्रदूषण गंगा में प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। हर दिन यहाँ 1.7 बिलियन लीटर कचरा नदी में चला जाता है। लगभग 98 मिलियन लीटर गंदे नाले हर रोज गंगा नदी में गिराये जाते है।

गंगा नदी भारत में सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। यह डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से 3000 गुना अधिक असुरिक्षत है।

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए अध्ययनों के मुताबिक, हरिद्वार के पास गंगा नदी के पानी में 5,500 के स्तर पर कालिफोर्म बैक्टीरिया पाए गए जो स्वीकार्य सीमा से 100 गुना अधिक है। यहाँ नदी में मानव मल-मूत्र और गंदगी को डालना इसकी प्रदूषण  वृद्धि का प्रमुख कारण है। कालिफोर्म बैक्टीरिया को मानव आंत्र मे पाया जाता है, लेकिन जब यह पानी या भोजन में पाया जाता है तो यह अत्यधिक खतरनाक हो जाता है।

आधे जले या अशक्त मानव के मृत शरीर के साथ-साथ पशुओं के शवों को भी नदी में फेंक दिया जाता है।

कृषि रोक-थाम में हानिकारक कीटनाशक और उर्वरक पानी को प्रदूषित करते हैं। इस पवित्र नदी का पानी पीने, स्नान करने और कृषि उद्देश्यों के लिए भी सुरक्षित नहीं है।

पटना विश्वविद्यालय जूलॉजी विभाग, पर्यावरण जीवविज्ञान प्रयोगशाला द्वारा किए गए, अध्ययन से गंगा नदी के पानी में पारा भी पाया गया है। हालांकि पारा प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक नहीं पहुँचाता है लेकिन इसकी उपस्थिति अभी भी चिंताजनक है।

सभी योजनाओं, कार्यों, और निधियों के बावजूद, गंगा नदी अभी भी प्रदूषित है।

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