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पश्चिम बंगाल का नया नाम

पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर ‘बंगाल’ करने की तैयारी
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पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर ‘बंगाल’ करने की तैयारी

पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार प्रदेश का नाम आधिकारिक तौर पर बंगाल रखना चाहती है। उसने 2 अगस्त 2016 को इस संबंध में प्रस्ताव भी पारित कर दिया है। राज्य के शिक्षा मंत्री पार्था चटर्जी के मुताबिक, पूर्वी भारत के इस राज्य की मूल भाषा बांग्ला में राज्य को अब बांग्ला या बंगा कहा जाएगा। वहीं अंग्रेजी में राज्य का नाम बंगाल कहा जाएगा। जहां तक इतिहास की बात है, पश्चिम बंगाल 1947 तक बंगाल प्रांत का हिस्सा था, जो विभाजन के दौरान अलग हो गया। पश्चिम बंगाल भारत में रह गया, जबकि पूर्वी बंगाल पूर्वी पाकिस्तान बन गया। 1971 में खूनी युद्ध के बाद पाकिस्तान से आजाद होने के बाद यह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश के तौर पर पहचाना जाता है।

विशेष सत्र

उम्मीद की जा रही है कि इस प्रस्ताव पर आदेश पारित करने के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा का विशेष सत्र 26 अगस्त को बुलाया जाएगा। एक बार यह प्रस्ताव पारित हो गया तो संसद के पास इसे मंजूरी देने के सिवा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा। इसका मतलब यह है कि पश्चिम बंगाल औपचारिक रूप से बंगाल के तौर पर जाना जाएगा।
वर्णक्रम में ऊपर चला जाएगा

राज्य शासन के कुछ सदस्यों की राय है कि जब राज्य का नाम बदल जाएगा, उसका नाम वर्णक्रम में ऊपर चला जाएगा। इस समय राज्यों की सूची में इस पूर्वी राज्य का स्थान आखिर में आने वाले राज्यों में आता है। लेकिन राज्य के नाम से पश्चिम शब्द हटते ही उसका नाम लिस्ट में चौथे स्थान पर चला जाएगा।

दीदी की नाखुशी

समझा जाता है कि राज्य के नाम को बदलने का वास्तविक कारण, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ हुई घटना है। ममता बनर्जी को दीदी नाम से पुकारा जाता है। 16 जुलाई को जब वह अंतर-राज्य परिषद की बैठक में भाग लेने गई थी तो बोलने वालों का क्रम राज्यों के वर्णक्रम के आधार पर तय हुआ। ऐसे में ममता दीदी को अपनी बारी के लिए छह घंटे इंतजार करना पड़ा।

उनके मुताबिक, जब उनकी बारी आई, तब ज्यादा लोग उन्हें सुनने की स्थिति में नहीं थे। इसी बात पर उन्हें चिढ़ आ गई। उन्होंने अपनी नाराजगी अपने करीबी सहयोगियों से भी व्यक्त की थी। 2011 में ममता जब पहली बार मुख्यमंत्री बनी थी, तब भी उन्होंने इस आइडिया को आगे बढ़ाया था, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ सकी। लेकिन इस बार अंतर-राज्य परिषद की घटना ने उन्हें दोबारा इस पर सोचने को मजबूर कर दिया है।

फैसले पर हो रही चर्चा

पिछले कुछ वर्षों से ममता बनर्जी के शासन में लिए गए फैसले चर्चा में रहे हैं। इस फैसले पर भी चर्चा शुरू हो चुकी है। सरकार भी इस फैसले के लिए वाजिब तर्क दे रही है। लोग पूरे दिल के साथ इस फैसले के समर्थन में हैं या विरोध में। एक ख्यात लेखक सिरशेंदु मुखर्जी और बंगाल की सांस्कृतिक आइकन सौमित्र चटर्जी का कहना है कि पूर्वी बंगाल का अस्तित्व खत्म हो चुका है। ऐसे में पश्चिम बंगाल कहना अप्रासंगिक हो चुका है। इसके खिलाफ यह तर्क दिए जा रहे हैं कि राज्य का नाम बदले से विभाजन से जुड़ा दर्द खत्म हो जाएगा। उससे जुड़ी दर्दनाक यादें खत्म हो जाएंगी।

एक ख्यात इतिहासकार और विश्व भारती यूनिवर्सिटी के कुलपति रहे रजत कांता रॉय का कहना है कि राज्य का नाम बदलने का कोई कारण नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुगता बोस और प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े रहे एक इतिहासकार फैसले के समर्थन में हैं। एक ख्यात लेखक नबनीता देव सेन का कहना है कि यदि प्रांत का नाम बदलकर बांग्ला रखा तो लोगों के बांग्लादेश और बांग्ला में भ्रमित होने की संभावना बढ़ जाएगी।

Categories: India Politics
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