15 अगस्त 2016 को भारत अपना 70वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। उसके पास जश्न मनाने के कई कारण है। हालांकि, यह दिन भारत के लिए आत्मावलोकन करने का है कि जिस स्वतंत्र भारत के लिए स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने संघर्ष किया, क्या वह हम हासिल कर सके हैं। कुछ क्षेत्रों में हम आजादी और स्वतंत्रता के साथ न्याय करने में नाकाम रहे हैं।
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2016 की रिपोर्ट हाल ही में जारी हुई। इसमें आधुनिक समय के गुलामों के तौर पर जीवन जीने वालों में भारत की स्थिति दुनिया में सबसे ऊपर है। सिर्फ नंबर ही सुनेंगे तो हम सभी भारतीयों का शर्म से सिर झुक जाएगा। 131 करोड़ लोगों की आबादी वाले देश में 1.835 करोड़ अब भी आधुनिक भारत में गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं।
इस आंकड़े की तुलना किसी और बड़े देश से करें– चीन से ही सही। उसकी आबादी तकरीबन भारत जैसी ही है। रिपोर्ट के मुताबिक 137 करोड़ लोगों की आबादी में से 33.8 लाख लोग ही आधुनिक गुलामों की जिंदगी जीने को मजबूर है। भारत का आंकड़ा चीन के मुकाबले पांच गुना ज्यादा है। हमारी आजादी के 70वें वर्ष में उपलब्धियों का बखान करने के साथ ही इस मुद्दे पर आत्मावलोकन करने की महती आवश्यकता भी दिखाई दे रही है।
ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2016 में 167 देशों को कवर किया गया है। इसमें मानवीय आजादी के पूर्व–निर्धारित मापदंडों के आधार पर देशों और उनकी सरकारों की कार्यप्रणाली की तुलना की गई। वैश्विक स्तर पर पहचान रखने वाली रिसर्च–आधारित कंपनी गैलप ने वॉक फॉर फ्रीडम के साथ मिलकर एक सर्वेक्षण कराया। 2013 से इस तरह के सर्वेक्षण कराए जा रहे हैं।
2016 की रिपोर्ट के मुख्य अंशः
सर्वेक्षण में शामिल देशः 167
दुनियाभर में गुलामों की संख्या 4.58 करोड़
भारत समेत पांच देशों में गुलामों का प्रतिशतः 58 प्रतिशत
गुलामों की संख्या के हिसाब से टॉप 5 देश और उनकी आबादी में इनका प्रतिशत
भारतः 1.835 करोड़; 1.40%
चीनः 33.8 लाख; 0.24%
पाकिस्तानः 21.3 लाख; 1.13%
बांग्लादेशः 15.3 लाख; 0.95%
उज्बेकिस्तानः 12.3 लाख; 3.97%
आबादी के प्रतिशत में गुलामों की संख्या के आधार पर टॉप 5 देश
उत्तर कोरियाः 4.37%
उज्बेकिस्तानः 3.97%
कंबोडियाः 1.64%
भारतः 1.40%
कतरः 1.35%
गुलामों की सबसे कम आबादी के आधार पर टॉप 5 देश और उनकी आबादी से गुलामों की संख्या का अनुपात
लग्जमबर्गः 100; 0.018%
आइसलैंडः 400; 0.123%
बारबडोसः 600; 0.212%
न्यूजीलैंडः 800; 0.018%
आयरलैंडः 800; 0.018%
सबसे ज्यादा कार्रवाई करने वाले टॉप 5 सरकारें
नीदरलैंड
अमेरिका
ब्रिटेन
स्वीडन
ऑस्ट्रेलिया
रिपोर्ट में 24 अतिसंवेदनशीलताओं को शामिल किया गया और उन्हें चार डाइमेंशन में बांटा गयाः
डाइमेंशन 1- नागरिक और राजनीतिक संरक्षण
न्याय तंत्र पर भरोसा
राजनीतिक अस्थिरता
हथियारों तक पहुंच
भेदभाव– लैंगिंक
विस्थापित लोग
इंडेक्स 2016- सरकार की प्रतिक्रियाः
राजनीतिक अधिकार उपाय
डाइमेंशन 2- सामाजिक स्वास्थ्य और आर्थिक अधिकार
वित्तीय समग्रताः पैसा कर्ज के तौर पर लिया हो
वित्तीय समग्रताः किसी भी तरह पैसा हासिल करने पर
सेलफोन का सब्स्क्रिप्शन
सामाजिक सुरक्षा दायरा
कुपोषण
टीबी या क्षय रोग
पानी तक सुनिश्चित पहुंच
डाइमेंशन 3- व्यक्तिगत सुरक्षा
वित्तीय समग्रताः आपात निधि की उपलब्धता
हिंसक अपराध
महिलाओं को शारीरिक सुरक्षा
जीआईएनआई कोइफिशियंट
भेदभावः बौद्धिक विकलांगता
भेदभावः प्रवासियों के साथ
भेदभावः अल्पसंख्यकों के साथ
डाइमेंशन 4- शरणार्थी आबादी और युद्ध
आतंकवाद का प्रभाव
आंतरिक युद्ध
शरणार्थी रहवासी
भारत की कहानी
1993 में, भारत की 45 प्रतिशत आबादी गरीबी में जीवनयापन कर रही थी। 2011 में यह आंकड़े घटकर 21 प्रतिशत रह गए। यह अच्छी खबर है और यह बताती है कि इस अवधि में भारत ने तेज गति से प्रगति की और गरीबों की संख्या में कमी लाने में कामयाबी हासिल की है। इसका श्रेय उसे मिलना चाहिए।
इसी तरह, आजादी के 70वें वर्ष के अवसर पर, हकीकत यह है कि 1.835 करोड़ लोग अब भी गुलामों–सी जिंदगी जीने को मजबूर है। यह भारत की विकास की कहानी में विरोधाभास पैदा करता है।
तो सवाल उठता है कि 1.835 करोड़ लोग आज भी गुलामों–सी जिंदगी क्यों जी रहे हैं?
कड़वी सच्चाई यह है कि भारत अब भी जातिगत, सामंतवाद और लैंगिक भेदभाव की वजह से पैदा होने वाली बुराइयों से पूरी तरह आजाद नहीं हुआ है। यह कई पीढ़ियों से हमारे सामाजिक जीवन का हिस्सा बना हुआ है।
2016 में, गैलप ने भारत के 15 राज्यों में सैम्पल सर्वे किया। इसमें 80 प्रतिशत आबादी को कवर किया गया। सर्वे से पता चला कि घरेलू कामकाज, शारीरिक श्रम, विनिर्माण, कृषि, मछली पालन, निर्माण, जबरन भिक्षावृत्ति और यौन धंधों में आज भी बड़ी संख्या में गुलामों जैसा काम कराया जा रहा है।
बंधुआ मजदूर
भले ही बंधुआ मजदूरी कई साल पहले गैरकानूनी ठहराई गई थी, लेकिन कई पीढ़ियों से चले आ रहे कर्ज और कर्ज चुकाने के लिए सामाजिक स्वीकार्यता की वजह से यह स्वीकार्य है।
माइक्रो–फाइनेंस और कर्ज की सुविधाएं नहीं होने से, आर्थिक रूप से कमजोर तबके आदि, गांवों के साहूकारों से कर्ज लेते हैं। ज्यादा ब्याज भी चुकाते हैं। मानसून की बारिश में निरंतरता के अभाव और विकास के अवसरों की कमी की वजह से, यह लोग कर्ज चुका नहीं पाते और अक्सर कर्ज के जाल में उलझते जाते हैं। ऐसे में उन्हें बिना मजदूरी के ही साहूकार के लिए काम करना होता है। उनकी मौत के बाद उनके नाम का कर्ज अगली पीढ़ी के नाम हो जाता है।
आज भी, कई लोग साहूकारों के खेतों पर अपने पिता के लिए कर्ज को चुकाने के लिए काम करते दिख जाते हैं। बदकिस्मती से, कई ग्रामीण और अर्द्ध–शहरी क्षेत्रों में आज भी इस व्यवस्था को स्वीकार्यता मिली हुई है।
घरेलू नौकर
सामंती मानसिकता गरीबों का लाभ उठाने की रही है। यह लोगों को काफी उम्र में घरेलू कामकाज के लिए बाध्य कर देती है। माता–पिता अपने कम उम्र के बच्चों को लोगों के घर काम करने भेजते हैं। इसके बदले में उन्हें खाना मिल जाता है और थोड़ी–बहुत मजदूरी भी। कई बार तो मजदूरी मिलती तक नहीं। इन लोगों को कोई हुनर या सामाजिक सहयोग नहीं मिलता। बड़े होने पर इनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं होती। ऐसे में उन्हें पूरी जिंदगी किसी के घर नौकर बने रहकर ही बितानी पड़ती है।
जबरन भिक्षावृत्ति
यह एक उद्योग का शक्ल लेता जा रहा है। गरीब परिवारों के बच्चों को भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है। कई मामलों में, लोगों की संवेदना और पैसा बटोरने के लिए इन बच्चों को शारीरिक रूप से विकलांग भी बनाया जाता है। यह एक माफिया–स्टाइल व्यवस्था बन चुकी है। कई जगहों पर एक पदक्रम भी दिखाई देता है।
आतंकवाद में बच्चों का इस्तेमाल
नक्सल–प्रभावित इलाके से लेकर पूर्वोत्तर व जम्मू–कश्मीर के कुछ हिस्सों में बच्चों को सरकारी सुरक्षा बलों के खिलाफ हथियार उठाने को मजबूर किया जा है। उन्हें बिना भुगतान के काम करने को मजबूर किया जाता है। कई मामलों में, बच्चों को उनके माता–पिता की सुरक्षा की खातिर आतंकी या नक्सली गतिविधियों में मदद करनी पड़ती है। ऐसे कार्यों में संलग्न बच्चों की संख्या बताना मुश्किल है, लेकिन उग्रवाद और चरमपंथ के सिर उठाते ही ऐसी गतिविधियां सामने आने लगती हैं।
व्यवसायिक यौन शोषण
मानव तस्करी के क्षेत्र में भी भारत की स्थिति बहुत दयनीय है। खासकर लड़कियों और महिलाओं की तस्करी होती है। नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से खुली सीमा होने की वजह से संगठित गिरोह के नेतृत्व में बड़ी संख्या में मानव तस्करी भारत में हो रही है।
लड़कियों को बलात्कार और अत्याचार का सामना करना पड़ता है। उन्हें एक से दूसरे ट्रैफिकर को बेचा जाता है। आखिर में वह भारत या किसी और देश के वैश्यालय में बैठी दिखती है। उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रखा जाता है। उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा चकला चलाने वाले की जेब में चला जाता है।
कई मामलों में, लड़कियों को नौकरी या शादी का लालच देकर बेच दिया जाता है। खरीदार लड़की के साथ जबरदस्ती करने के बाद उसे किसी कोठे पर बेच देता है।
यह आज के भारत की कहानी है। आईटी, अंतरिक्ष, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तमाम उपलब्धियों के साथ ही ऐसी गतिविधियां भी चरम पर हैं। हम अपने 70वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर जब तिरंगा लहराए तो यह बात भी दिमाग में आनी चाहिए कि हमारे ही 1.835 करोड़ भाई–बहन आज भी आजादी का इंतजार कर रहे हैं। दया की भावना से आगे बढ़कर सक्रियता दिखाने का वक्त आ गया है। इस संबंध में शपथ लेने के लिए 15 अगस्त से बेहतर और क्या दिन हो सकता है।
मोदी द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम:
भारत में सामाजिक सुरक्षा हेतु अटल पेंशन योजना (एपीवाय)
सुकन्या समृद्धि अकाउंटः भारत में लड़कियों के लिए नई योजना
प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाय)
भारत में सामाजिक सुरक्षा हेतु अटल पेंशन योजना (एपीवाय)
2014 में मोदी द्वारा किये गए टॉप पांच कार्यक्रम
प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाय) – एक दुर्घटना बीमा योजना