भारत की जनसंख्या वर्तमान वर्ष में 1.26 बिलियन तक पहुँच गई है और मौजूदा जनसंख्या वृद्धि की दर पर विचार किया जाए तो वर्ष 2028 तक देश की आबादी चीन से अधिक हो जाएगी। यूएन की एक हालिया रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि हाल ही के वर्षों में परिवार नियोजन और परिवार कल्याण कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के कारण जनसंख्या वृद्धि की दर धीमी हो गई है, लेकिन फिर भी चीन की तुलना में भारत की जनसंख्या दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। राष्ट्रीय प्रजनन दर अभी भी उच्च है, जो कि भारत की दीर्घकालिक जनसंख्या की वृद्धि में अग्रणी भूमिका निभाता है।
हालांकि, भारत के परिवार नियोजन कार्यक्रम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत में परिवार नियोजन और इसने भारत में निश्चित रूप से जनसंख्या की वृद्धि की समस्या को सुलझाने में प्रमुख भूमिका कैसे निभाई है, आइए हम इसके बारे में चर्चा करें:
भारत में परिवार नियोजन का इतिहास
भारत की जनसंख्या वृद्धि बहुत लंबे समय से सरकार के लिए एक चिंता का कारण रही है। स्वतंत्रता के पश्चात वर्ष 1949 में भारत में पारिवारिक नियोजन कार्यक्रम का गठन किया गया था। वर्ष 1952 में पूरे देश में अन्य विकासशील देशों की तरह, भारत में पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया था। शुरू में इसमें जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों को शामिल किया जाता है और बाद में इसके विभाग माँ और बाल स्वास्थ्य, पोषण और परिवार कल्याण के अंतर्गत आते हैं। वर्ष 1966 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने परिवार नियोजन का एक अलग विभाग बनाया था। तत्कालीन सत्ताधारी जनता सरकार ने वर्ष 1977 में एक नई जनसंख्या नीति का गठन किया था। सरकार ने कहा कि इस नीति को मजबूरी से नहीं बल्कि स्वेच्छा से स्वीकार करना चाहिए। इस सरकार ने परिवार नियोजन विभाग का नाम बदलकर परिवार कल्याण कार्यक्रम रख दिया था।
भारत सरकार द्वारा परिवार नियोजन या परिवार कल्याण कार्यक्रम (एफडब्ल्यूपी)
यह एक केंद्रीय प्रायोजित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम के लिए केंद्र सरकार देश के सभी राज्यों के लिए 100% सहायता प्रदान करती है। एफडब्ल्यूपी कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन के लिए मुख्य रणनीतियाँ हैं:
- एफडब्ल्यूपी अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकृत है।
- इस कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा जोर दिया गया है।
- एक परिवार में 2-बच्चों के लिए जोर देना।
- 2 बच्चों के जन्म के बीच में अंतर बनाने के लिए टर्मिनल (स्थाई) विधि पर जोर देना।
- परिवारों को छोटे परिवार के आदर्शों को स्वीकार करने और प्रोत्साहित करने के लिए घर-घर जाकर जानकारी प्रदान करना।
- लड़कों और लड़कियों दोनों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करना।
- स्तनपान पर प्रोत्साहन।
- विवाह का उचित समय (पुरुषों के लिए 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष) रखना।
- लोगों की जिंदगी के स्तर को बढ़ाने के लिए कुछ आवश्यक कार्यक्रमों की शुरूआत करना।
- गरीबों को परिवार नियोजन उपायों को अपनाने के लिए मौद्रिक प्रोत्साहन प्रदान करना।
- टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र, कठपुतली के माध्यम से परिवार नियोजन की व्यापक जागरूकता संचारित करना।
भारत में परिवार नियोजन का महत्व
परिवार नियोजन केवल जन्म नियंत्रण या गर्भनिरोधन से ही नहीं नियंत्रित किया जा सकता है। परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार और माता एवं उसके बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। सबसे पहले परिवार नियोजन में जन्म अंतराल पर महत्व दिया गया है जिसमें बताया गया है कि एक से दूसरे बच्चे के जन्म के मध्य कम से कम 2 वर्ष का अंतर होना चाहिए। मेडिकल साइंसेज के अनुसार, 5 वर्ष से अधिक या 2 वर्ष से कम के अंतराल में जन्म देने वाली माता और बच्चे के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
जन्म देने में लागत शामिल है क्योंकि परिवार में बच्चों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ गर्भावस्था और जन्म की चिकित्सा के लिए बहुत रुपए खर्च करने पड़ते हैं और साथ ही बच्चों के भरण-पोषण और लालन-पालन के लिए उच्च लागत को व्यय करना पड़ता है। सभी माता-पिता का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने बच्चों के लिए भोजन, कपड़े, आश्रय, शिक्षा का बंदोबस्त करें। यदि किसी परिवार ने पारिवारिक नियोजन अपनाया है तो उसे वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने में काफी मदद मिलती है।
भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम का प्रभाव
परिवार नियोजन कार्यक्रम को लागू करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयासों का पूरे देश पर अभिप्रायपूर्ण प्रभाव पड़ा है। वर्ष 1952 में भारत एक परिवार नियोजन कार्यक्रम को स्थापित करने वाला दुनिया का पहला देश था। वर्ष 2011 के परिवार कल्याण कार्यक्रम के अनुसार कुछ प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं:
- गर्भनिरोधकों के बारे में जागरूक करने के लिए एक या एक से अधिक तरीकों का प्रयोग।
- पिछले कुछ सालों से गर्भ निरोधकों के प्रयोग में वृद्धि।
- महिला नसबंदी के ज्ञान को आधुनिक परिवार नियोजन की सबसे सुरक्षित और लोकप्रिय पद्धति माना जाता है।
- कंडोम के प्रयोग में वृद्धि।
- गर्भनिरोधक गोलियों के प्रयोग में वृद्धि।
- शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर कम।
- उच्च आय समूहों में प्रजनन दर कम।
भारत में परिवार नियोजन: अधिक सफलता की उम्मीद
परिवार नियोजन कार्यक्रम बहुत हद तक सफल हुआ है, लेकिन भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। भारत सरकार द्वारा चलाई गई जनसंख्या की नीतियों में से परिवार नियोजन पर हमेशा अधिक जोर दिया गया है। हालांकि, अभी भी अधिक सार्वजनिक जागरूकता और सार्वजनिक भागीदारी की आवश्यकता है। लिंग असमानता, बेटियों से ज्यादा बेटों पर प्राथमिकता, जीवन यापन के मानक में कमी, गरीबी, भारतीयों की परंपरागत विचार प्रक्रियाएं, पुरानी सांस्कृतिक मानदंड जैसे कारण पूरे देश में गरीब परिवार नियोजन प्रथाओं को जारी रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।