विकलांगता के परिणामस्वरूप शारीरिक हानि हो सकती है जो कि शारीरिक, मानसिक, संवेदी, भावनात्मक, विकासात्मक या इनमें से कुछ का संयोजन हो सकती है, या विशेष क्षमता की प्रबलता के कारण भी हो सकती है। किसी व्यक्ति में विकलांगता जन्मजात या जीवनकाल के दौरान कभी भी हो सकती है।
हालांकि, जब आइंस्टीन, हेलेन केलर, स्टीफन हॉकिंग और करीब से देखने पर सुधा चन्द्रन, अरुणिमा सिन्हा (माउंट एवरेस्ट की नाप करने के लिए पहले अभियोग), राजेन्द्र सिंह राहेल (राष्ट्रमंडल खेलों में पोलियो-संकटग्रस्त और रजत पदक विजेता) जैसे नामों के बारे में सोचते हैं तब यह पता चलता है कि ये केवल विकलांग व्यक्ति ही नहीं हैं बल्कि वास्तव में बहुत ही विशेष क्षमता वाले लोग हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में पाई जाने वाली विकलांगता में शारीरिक विकलांगता और संज्ञानात्मक अक्षमता शामिल है।
जनगणना से पता चलता है कि विकलांगो की जनसंख्या 2001 में 2.19 करोड़ थी जो 2011 में 22.4% की वृद्धि करके 2.68 करोड़ हो गयी थी। यह वृद्धि ग्रामीण इलाकों और महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम के हिस्से में अधिक है। इन क्षेत्रों में विकलांगो की कुल आबादी का 2.5% हिस्सा निवास करता है।
भेदभाव का अभिशाप
जनगणना के अनुसार, भारत में विकलागों की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे विकलांगो को जिनको निम्नलिखत में बाधा आती है उन्हें समाज में शामिल नहीं किया जाता है-
- देखने में
- सुनने में
- बोलने में
- चलने-फिरने में
- मानसिक बाधायें
- मानसिक बीमारी
- विभिन्न प्रकार की विकलांगता
- अन्य (विकलांग लोगों को सूची में शामिल नहीं किया गया)
उन्हें बुनियादी शिक्षा या व्यावसायिक प्रशिक्षण से दूर रखा जाता है इसलिये इन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं हो पाते हैं। पुनर्वास के अभाव में वह निर्धनता से पीड़ित हैं। ग्रामीण इलाकों में विकलांग लोगों को विकलांगता और निर्धनता के एक दोषपूर्ण चक्र में रखा जाता है। विकलांग लोगों के बहिष्कार का समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह समय आगे होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए जमीनी स्तर पर कार्यवाही के साथ समावेशी नीतियां बनाने का है।
शहरी क्षेत्र में हालात खराब नहीं हो सकते हैं, लेकिन कुछ ऐसे मामले हैं जहाँ विकलांगो को परेशान किया जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है, जैसे कि जेट एयरवेज चलने-फिरने में अक्षम व्यक्तियों (विकलागों या आंशिक विकलांगो) को हवाई यात्रा की सुविधा प्रदान करने में विफल रहा।
विदेशों से भिन्न, भारत में विकलांगो की आवश्यकताओं की पूर्ति न करते हुये व्हीलचेयर चलाने का रास्ता (रैंप) और बैठने की व्यवस्था भी नहीं है। ऐसा लगता है कि समाज दृष्टिहीन हो गया है, उसने विकलागों की ओर से अपनी नजरें फेर ली हैं।
विकलांगता अधिनियम
भारत का विकलांगता अधिनियम 1995 में पारित हुआ जिसमें विकलांगो और वयस्कों दोनों को सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। वह इस प्रकार हैं:
देश में विकलांगो को अपने लिए उपलब्ध सुविधाओं के संबंध में जानकारी लेने के लिए विकलांग आयुक्त कार्यालय जाना पड़ेगा। यदि कोई स्कूल विकलांगो का प्रवेश लेने से इंकार करता है या स्कूल में विकलांगो के आवागमन में या प्रवेश लेने में कोई बाधा आ रही है तो उनके माता-पिता के पास विकलांगता आयुक्त के साथ मामला सुलझाने का विकल्प है।
- विकलांग बच्चों को अठारह वर्ष की आयु तक मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। यह सुविधा एकीकृत या विशेष स्कूलों में उपलब्ध है।
- विकलांग बच्चों के पास समुचित परिवहन व्यवस्था लेने, मानव द्वारा बनाये गये किसी नियम या शर्त को समाप्त करने के साथ ही पाठ्यक्रम का पुनर्गठन और परीक्षा प्रणाली में संसोधन करने का अधिकार है।
- सभी विकलांग बच्चों को छात्रवृत्ति, ड्रेस, किताबें और शिक्षण सामग्री मुफ्त में प्रदान की जाती है।
- विकलांग बच्चों की पहुँच विशेष स्कूलों तक होती है जो कि व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाओं और गैर-औपचारिक शिक्षा से सुसज्जित होते हैं। भारत मानव शक्ति की स्थापना के हेतु शिक्षकों के लिये प्रशिक्षण संस्थान उपलब्ध कराता है।
- देश में विकलांग बच्चों के माता-पिता विकलांगो के संबंध में शिकायतों के निवारण के लिए उपयुक्त अदालत में जा सकते हैं।
- विकलांग बच्चों के माता-पिता को अपने विकलांग बच्चों हेतु सुविधाओं तक पहुँच पाने के लिये विकलांग आयुक्त कार्यालय से विकलांगता प्रमाण पत्र बनवाने की आवश्यकता है।
- हर पंचायत को विकलांगो के लिए सड़कों, स्कूलों और सार्वजनिक रास्तों (रैंपों) के निर्माण के लिए सरकार द्वारा राशि प्रदान की जाती है।
- देश की सरकारी नौकरियों में तीन प्रतिशत विकलांग लोगों के लिए आरक्षण होता है और विकलांगता अधिनियम में विकलांगो के लिए सकारात्मक कार्रवाई शामिल है।
भारत में फरवरी 2014 में सरकार ने विकलांगो के पूर्वकथित अधिकारों और विशेषाधिकारों को जोड़ने के लिए राज्य सभा में एक विधेयक पेश किया था। विधेयक में निम्न बिंदु थे:
- अंतर्निहित गरिमा और व्यक्तिगत अधिकारों का सम्मान करना, जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी पसंद से स्वाधीन होने और लोगों से स्वतंत्रता प्राप्त करना शामिल है।
- भेदभाव ना करना।
- समाज में पूर्ण रुप से प्रभावी भागीदारी और समावेशन प्रदान करना।
- मानव विविधता और मानवता के रूप में विकलांग व्यक्तियों के अंतर और स्वीकृति का सम्मान करना।
निष्कर्ष
यह हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है कि उसको विकलांग लोगों को समाज में शामिल करने की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति यह कभी नहीं जानता कि किसके पास एक स्टीफन हॉकिंग या अल्बर्ट आइंस्टीन छिपा हुआ है। जैसा कि हम एक उज्ज्वल और बेहतर दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं, हमें विकलांग लोगों को अपने साथ लेकर चलना होगा। यह समय भारत को एक भेदभाव से मुक्त और समावेशी समाज बनाने का है, जहाँ विकलांगो के पास अन्य व्यक्तियों की तरह बराबरी का अधिकार होना चाहिए।