स्थान: नई दिल्ली के दक्षिण में, तुगलकाबाद किला
अगर मध्ययुगीन काल के शासक वास्तुकला के शौकीन न होते, तो आज दिल्ली इतनी विरासतों का उत्तराधिकारी नहीं होता जितना कि आज है। भारत के पहले तुगलक वंश शासक की स्थापना करने वाला, गयासुद्दीन तुगलक वास्तुकला का शौकीन था। जैसे ही वह सिंहासन पर बैठा, उसने तुरन्त तुगलकाबाद में किले का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया। वास्तुकला से लगाव होने के कारण वह खुद के लिए एक मकबरा कैसे न बनाता, यह किला तुगलाकाबाद के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। किले के साथ ही इस मकबरें का निर्माण 1320 ई0 -1325 ई0 के बीच करवाया था।
ऊँची दीवारों से घिरा हुआ, यह मकबरा अनियमित पंचभुज जैसा प्रतीत होता हैं। मकबरे की वास्तुकला भारतीय-इस्लामिक शैली में डिजाइन की गयी। गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा अग्रसरित रूप में तुगलक वंश से संबंधित सभी इमारतों की शैली हैं। लाल बलुआ पत्थर और सफेद पत्थर का उपयोग इस खूबसूरत वास्तुकला को सुशोभित करने के लिए किया गया है। गयासुद्दीन तुगलक, उनकी बेगम और उनके बेटे की तीन कब्रें मकबरें में मौजूद हैं। भव्य तुगलकाबाद किले के अन्दर अब ये कब्रें काफी ध्वस्त हो चुकीं हैं।
ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि यह एक व्यंग्य है, वास्तुकला के प्रेमी ने खुद के लिए केवल एक छोटा और सरल मकबरा बनवाया था, तुगलाकाबाद की भव्यता किले के अन्दर गोपनीय है। इस छोटी-सी कब्र पर जाकर- इस उदार शासक को एकमात्र श्रद्धांजलि देकर, इस शापित मृत्यु से छुटकारा दिया जा सकता है।