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क्या कोचिंग एप्स भारत में कोचिंग क्लास की जगह ले रहे हैं?

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बीवायजेयू’ज भारत में एजुकेशन टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराने वाली शीर्ष कंपनियों में से एक है। उसने हाल ही में चान-जकरबर्ग इनिशिएटिव (सीजेआई) और चार अन्य वेंचर कैपिटल पार्टनर- सेकोइया, सोफिना, लाइटस्पीड और टाइम्स इंटरनेट- से 50 मिलियन डॉलर हासिल किए हैं। इस पैसे का इस्तेमाल वह अपनी विस्तार योजनाओं में करेगा। संगठन के संस्थापक और सीईओ बीवायजेयू रवीन्द्रन का कहना है कि फंड्स का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय बाजारों में विस्तार के लिए किया जाएगा। साथ ही इसके जरिए दुनियाभर की कंपनियों से फंडिंग भी हासिल की जाएगी। सीजेडआई, दरअसल, मार्क जकरबर्ग और उनकी पत्नी प्रिंसिला चान की परोपकार के लिए बनाई संस्था है। यह पहली बार है जब सीजेडआई ने किसी एशियाई कंपनी पर अपना पैसा लगाया है।

बीवायजेयू की अब तक की कहानी

बीवायजेयू’ज की स्थापना एक साल पहले हुई थी और इस अवधि में उसका एप्लीकेशन, जिसका नाम के-12 एप है, 55 लाख बार डाउनलोड किया जा चुका था। रवीन्द्रन के मुताबिक, पूरे भारत में इस एप के 2,50,000 सालाना सबस्क्रिप्शन हैं। यह एप चौथी कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के स्टूडेंट्स के लिए लर्निंग कोर्स मुहैया करता है। साथ ही जॉइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई), नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट), कॉमन एडमिशन टेस्ट (कैट), इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (आईएएस), ग्रेजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन (जीआरई) और ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट (जीमैट) जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी भी करवाता है।

कैसे यह एप सीखने और पढ़ाने का तरीका बदल रहा है?

रवीन्द्रन कहते हैं कि मोबाइल का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है और बढ़ रहा है। इसकी बदौलत के-12 जैसा एप स्टूडेंट्स के पढ़ने के तरीके को बड़ी तेजी से बदल रहा है। इसका अप्रोच कुछ इस तरह है कि टीचिंग, डाटा साइंस और अध्यापन संबंधी तौर-तरीकों को मिलाकर अंत में व्यक्तिगत तौर पर पढ़ाने जैसा अनुभव स्टूडेंट्स को दिया जाए। स्कूली छात्रों को के-12 के जरिए असेसमेंट और फीडबैक्स का फायदा भी मिलता है।

सीजेडआई ने ऐसा क्या देखा, जो उनकी मदद की?

सीजेडआई के विवियन वू के मुताबिक, भारतीय परिवार अपने बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। ताकि उनका सुनहरा भविष्य सुनिश्चित हो सके। वू कहते हैं कि बीवायजेयू स्टूडेंट्स को यह मौका देता है कि वह जो पढ़ रहे हैं, उसे प्यार करें। अपनी क्षमता का पूरा फायदा उठाएं। इस वजह से उनकी संस्था ने इस स्टार्टअप में पैसा लगाने का फैसला किया। सीजेडआई की नीति दुनियाभर में लर्निंग मॉडल्स को सपोर्ट करने की रही है। इसके अलावा वह ऐसी कंपनियों को फंडिंग हासिल करने में खासी मदद भी करते हैं। वू जल्द ही बीवायजेयू के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के तौर पर इस स्टार्टअप में शामिल भी हो सकते हैं।

क्या यह सफल साबित हुआ है?  

आंकड़े बताते हैं कि इस एप का इस्तेमाल करने वाले यूजर्स तकरीबन 40 मिनट इस पर बिताते हैं। जिन लोगों ने इसका इस्तेमाल किया, उनमें से 90 प्रतिशत ने इसके सबस्क्रिप्शन को रिन्यू कराया है। इस तरह कहा जा सकता है कि यह एप काफी हद तक सफल रहा है। इससे यह भी पता चलता है कि जिन स्टूडेंट्स ने इसका इस्तेमाल किया, वे पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन कर सके। रवीन्द्रन यह भी कहते हैं कि सीजेडआई के साथ भागीदारी उनके विकास की दिशा में अगला कदम है। सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी कंपनी और सीजेडआई समान लक्ष्य लेकर काम कर रहे हैं। वे लोगों की क्षमता में बराबरी और सुधार लाना चाहते हैं।

परीक्षा की तैयारी करवाने वाले एप्स पारंपरिक तरीकों को कैसे बदल रहे हैं?

यदि हम मान ले कि बीवायजेयू’ज इस बिरादरी का इकलौता सदस्य है तो यह हमारी भूल होगी। उसके जैसे कई सारे एप्स काम कर रहे हैं और वह भारत में शिक्षा का चेहरा बदलना चाहते हैं या कम से कम इसकी कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने निश्चित तौर पर कोचिंग क्लासेस को एक गंभीर चुनौती पेश करना शुरू कर दिया है। कई सारे स्टूडेंट्स इन एप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पहले के विकल्पों के मुकाबले इसका इस्तेमाल आसान और प्रभावी है। हालांकि, इन एप्स के साथ सबसे बड़ी समस्या कोर्स कम्प्लीशन के रेट की है। यह इसमें पीछे छूट जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि देश के ज्यादातर हिस्सों में टेक्नोलॉजी सही मायनों में पहुंची ही नहीं है। उन क्षेत्रों में परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग क्लासेस ही बेहतर विकल्प बने हुए हैं।
मॉडल बिखर रहा है

विशेषज्ञों का हालांकि मानना है कि कोचिंग क्लासेस के प्रभुत्व के दिन फिरने वाले हैं। वे ग्रुप स्टडी मॉडल के जरिए पढ़ा रहे हैं। जहां बोर्ड, क्लासरूम्स, स्टूडेंट्स और टीचर्स पारंपरिक ढांचे में बंधे दिखते हैं। नए समूह मानते हैं कि यह मॉडल ज्यादातर छात्रों के लिए प्रभावी नहीं है और इसी कारण से वे अब व्यक्तिगत तरीके से पढ़ाने पर जोर दे रहे हैं।

टॉपर (Toppr)

टॉपर ऐसा ही एक एप है। ऑनलाइन लर्निंग में उसके प्रोडक्ट मैनेजर जो जोशुआ कोचित्ती ऊपर कही गई बात को दोहराते हैं। उनका कहना है कि कोचिंग क्लासेस ज्यादातर छात्रों के लिए अनुपयोगी है। यदि कोई छात्र अलग तरह से प्रैक्टिस करता है तो उसके अन्य छात्रों से पीछे छूटने की संभावना बढ़ जाती है। वह कहते हैं कि सभी छात्रों का पढ़ने और सीखने का अपना एक खास तरीका होता है। हो सकता है कि कोचिंग क्लासेस जिन ढर्रे पर चलते हो, वह उनके लिए फायदेमंद न हो। हालांकि, टॉपर जैसे एप्स भी स्टूडेंट्स को एंगेज रखने में समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

प्रिपेथॉन

प्रिपेथॉन एक ऑनलाइन प्रिपरेशन एप है, जिसे पागलगाय नाम के एक स्टार्टअप ने विकसित किया है। यह स्टार्टअप शिक्षा के क्षेत्र में व्यवसाय कर रहा है। बॉट्स के जरिए एंगेजमेंट की समस्या को दूर करने की कोशिश कर रहा है। उसके सीईओ ऑल्विन एग्नेल का कहना है कि कोर्स पूरा करने के रेट्स में 3 प्रतिशत (कोर्सेरा के केस में) से 10 प्रतिशत तक का अंतर होता है। बॉट्स का इस्तेमाल स्टूडेंट्स को ऑफर पर प्रोग्राम पूरा करने का प्रोत्साहन देने के लिए किया जा रहा है। साथ ही जो लोग लॉग-ऑन नहीं कर रहे हैं, उनके बारे में कोच को जानकारी देने में भी इस्तेमाल हो रहा है। एक बार उन्हें सूचना मिल जाए तो कोच स्टूडेंट्स को मैसेज भेज सकते हैं। प्रिपेथॉन में, छात्र कोच को सीधे-सीधे संदेश भेजकर अपने सवालों के जवाब ले सकते हैं। इस तरीके से पर्सनलाइज्ड अप्रोच मिलती है, जो बड़े वेब-बेस्ड ओपन कोर्सेस में नहीं मिलती।

शिक्षा में एनालिटिक्स का इस्तेमाल

आग्नेल कहते हैं कि ज्यादातर स्टूडेंट्स अपने संदेह और प्रश्न के साथ सामने नहीं आते और ऐसा वह अपने क्लासरूम में भी करते हैं। प्रशिक्षक बॉट्स का इस्तेमाल कर ऐसे स्टूडेंट्स की पहचान कर सकते हैं ताकि उन्हें सवाल पूछने और संदेह जताने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। वे ही स्टूडेंट्स के लिए डेली एजेंडा सेट करते हैं और स्टूडेंट्स से पूछते हैं कि कहीं उन्हें बहुत पहले पढ़ाए टॉपिक को दोबारा पढ़ाने की जरूरत तो नहीं है। कोचित्ती भी आग्नेल की बात से सहमत दिखते हैं। उन्होंने कहा कि करीब 95 प्रतिशत स्टूडेंट्स पैसिव लर्नर्स होते हैं। उन्होंने कहा कि सक्रिय स्टूडेंट्स (एक दिन में 15 प्रश्न) के मुकाबले पैसिव स्टूडेंट्स महीने में दो सवाल ही करते हैं।

यूजर्स का क्या कहना है?

विकास गुप्ता उन कई सारे यूजर्स में से एक हैं, जिन्होंने इन एप्स का फायदा उठाया है। मुंबई-बेस्ड इंजीनियर विकास 25 साल के हैं और उन्होंने कैट की तैयारी के लिए प्रिपेथॉन का इस्तेमाल किया था। वे एप के कोच फीचर की तारीफ करते हैं और कहते हैं कि यह व्हाट्सएप जैसा है। कुछ भी सवाल पूछो और तत्काल जवाब हाजिर। उन्होंने कहा कि इस एप ने उन्हें यात्रा के दौरान भी तैयारी करने में मदद की। चूंकि सभी सामग्री फोन पर है, यह सभी एप्स के साथ है। हालांकि, यह भी एक तथ्य है कि उन्होंने सिर्फ प्रिपेथॉन का इस्तेमाल नहीं किया। अन्य सुविधाओं को भी परखा।

उन्होंने आईएमएस नाम की एक कोचिंग क्लास भी जॉइन की थी, जिन्होंने उन्हें परीक्षा का माहौल उपलब्ध कराया, जैसा उन्हें कैट देते वक्त मिलता। तीन घंटे तक क्लासरूम में बैठकर परीक्षा देने जैसा माहौल बनाता है। इसी सिम्युलेशन के लिए वह कोचिंग क्लास जा रहे थे। हालांकि, उनका यह दावा है कि प्रिपेथॉन ने उन्हें पढ़ाई में काफी मदद की।

हालांकि, उनकी राय फैजान भोम्बाल से अलग है। फैजान 25 साल के हैं और मुंबई की एक कंपनी में काम करती है जो जहाजों के उपकरणों का व्यापार करती है। वे इस समय स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (एसएससी) की तैयारी कर रहे हैं। जब से उन्हें लगा कि कोचिंग क्लासेस काफी महंगी हैं, तब से ही वे प्रिपेथॉन का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे मुंबई में ट्रेन में सफर करते हैं और दो घंटे के सफर में प्रिपेथॉन का इस्तेमाल कर पढ़ाई करते हैं। वह कहते हैं कि समय की कमी की वजह से वे इन एप्स को प्राथमिकता देते हैं। वे ज्यादातर समय यात्रा करते हुए ही बिताते हैं और इसी वजह से ऑनलाइन लर्निंग उनके लिए उपयुक्त है।

कोचित्ती कहते हैं कि जो स्टूडेंट्स अलग तरीके से पढ़ना पसंद करते हैं, वे इन एप्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। वह यह भी कहते हैं कि अपनी गलतियों को दूर करने के लिए स्टूडेंट्स के फीडबैक्स से यह पता चलता है कि पढ़ाई के लिए टॉपर स्टूडेंट्स का मुख्य तरीका बना हुआ होगा।

यात्रा के दौरान पढ़ाई

टॉपर अपने प्रोडक्ट में बड़े पैमाने पर सुधार ला रहा है। मैट्रिक्स और फीडबैक पर काम कर रहा है। कोचित्ती कहते हैं कि वे उसके इंटरनल मैट्रिक्स का इस्तेमाल विभिन्न फीचर्स के आंकड़ों के इस्तेमाल को देखने में करते हैं। यदि किन्हीं फीचर्स का इस्तेमाल कम होता है तो टॉपर से उन्हें हटा दिया जाता है।

वे मशीन लर्निंग मैथड्स का इस्तेमाल भी करते हैं ताकि यह देख सके कि विभिन्न टॉपिक्स पर स्टूडेंट्स कितना सहज महसूस कर रहे हैं और उनकी प्रगति का स्तर क्या है। उनका नजरिया कोचिंग क्लासेस को लेकर भी अलग होता है, जहां छात्रों से कठिन सवालों को हल करने के लिए कहा जाता है। वे हमेशा ऐसे तरीकों पर काम करते हैं जिसमें और सुधार किया जा सके। उसे और उन्नत किया जा सके।

संगठन में 25 विशेषज्ञ हैं, जो उच्च-स्तरीय प्रश्नों को हल कर सकते हैं और हर विषय के लिए 100 ट्यूटर्स हैं। यह टीचर्स को स्टूडेंट्स को पढ़ाने का अच्छा अनुभव है। वे रोज काम करते हैं लेकिन प्रश्नों की संख्या अब भी समस्या बनी हुई है। यह एक कारण है कि कंपनी अपने वर्कफ्लो को बढ़ाने के लिए ऑटोमेशन को क्यों देख रही है। कंपनी की कोशिश है कि उसके ट्यूटर्स कामकाजी घंटों- रात 9 बजे से तड़के 1.30 बजे तक के व्यस्ततम घंटों में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे। सबसे कठिन प्रश्न सभी टीचर्स को मैनुअली भेजे जाते हैं।

प्रिपेथॉन में एक प्रशिक्षक, प्रशांत चड्ढा का कहना है कि स्टूडेंट्स अपने संदेहों पर जवाबों के साथ-साथ सलाह भी चाहते हैं। उनके पास तैयारी से जुड़े विविध पहलुओं – नजरिया, उच्च शिक्षा के विकल्प और रणनीति को लेकर विशेष प्रश्न रहते हैं। वे यह भी जानना चाहते हैं कि भविष्य में उनके लिए कौन-सी परीक्षा उपयुक्त होगी। वे यह भी कहते हैं कि इन ऑनलाइन क्लासरूम्स में होने वाली बातचीत वास्तविक क्लासरूम्स जैसी ही होती है। यहां भी कई सारे प्रश्न होते हैं।

राउंडिंग अप

हर काम की शुरुआत छोटे से होती है और यदि उसमें दम हैं तो वह आगे चलकर और बड़ा व बेहतर हो जाता है। जैसा कि लिमिटेड मार्केट में काम कर रहे इन एप्स के साथ हो रहा है। भारत में टेक्नोलॉजी पेनिट्रेशन काफी कम है। ऐसे में टेक्नोलॉजी का रेट बढ़ने पर इन सर्विस प्रोवाइडर्स की मौजूदगी भी बढ़ती जाएगी। वे निश्चित तौर पर लंबा सफर तय करने वाले हैं।

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