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भगत सिंह की जीवनी

उनकी विरासत ने भारतीय युवाओ को भारत की स्वतन्त्रता हेतु लड़ने को प्रेरित किया और आज के आधुनिक भारत के लिए, भगत सिंह युवाओ के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं। भगत सिंह के जन्मदिन के अवसर पर रिज़र्व बैंक ने उनको श्रद्धांजलि देने के लिए 5 रुपए के सिक्के जारी किये। सिक्के के दोनों तरफ भगत सिंह हिन्दी और इंग्लिश में लिखे होने के साथ उनके चित्र को दर्शाया गया है।

भगत सिंह को अक्सर “युवाओ का प्रेरणास्रोत” या “युवाओ का क्रांतिकारी” कहा जाता है लेकिन उनका कद इतना बड़ा है जो उनको भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल प्रमुख नामो के साथ खड़ा करता है।

उनकी देशभक्ति अंग्रेज़ो के खिलाफ मजबूत विध्वंसक हिंसा तक ही सीमित नहीं थी बल्कि उनकी बुद्धिमता और ज्ञान एक ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्ति की तरह था जो सांप्रदायिक आधार पर भारत के विभाजन को पहले से देख पा रहा था जो उस समय के कई सम्मानित नेता भी नहीं देख पाए थे। देश को धर्म से बढ़कर देखना उनकी परिपक्वता और तर्कसंगत बुद्धिमता का एक और प्रमाण है। उनकी शैक्षणिक योग्यता ये तथ्य साफ़ दर्शाती हैं कि उनकी राय और विचार सिर्फ उन्माद भरे जन आंदोलन के लिए नहीं थे बल्कि वे एक अच्छी सोच से ओत प्रोत थे।

भगत सिंह की निजी जिंदगी 

भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा गांव में , जो अब पाकिस्तान में है ,एक सिक्ख परिवार में हुआ था। सरदार किशन सिंह और विद्यावती के तीसरे बेटे भगत सिंह के परिवार में उनके पिता व चाचा ग़दर पार्टी के सदस्य थे।

भगत सिंह पर प्रभाव

उनका झुकाव समाजवाद की तरफ काफी ज्यादा था।  भगत सिंह, जिनको भारत के शुरूआती मार्क्सवादियों में से एक माना जाता है, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख नेताओ और संस्थापको में से एक थे। 1919 में हुए जलियावाला बाग नरसंहार ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला। असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के बावजूद, उनको गहरी निराशा तब हुई जब चौरी चोरा घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन रद्द कर दिया था। उन्होंने लाहौर के राष्ट्रीय कॉलेज में पढाई की जहां वो अन्य क्रांतिकारियों जैसे कि भगवती चरण, सुखदेव और अन्य के सम्पर्क में आये। वो जल्द शादी होने से बचने के लिए घर से भाग निकले और नौजवान भारत सभा संगठन के सदस्य बन गए।

भगत सिंह द्वारा किये गए कार्य 

भगत सिंह आंतकवाद के व्यक्तिगत कृत्यों के खिलाफ थे और उन्होंने जन लामबंदी के लिए आह्वान किया। 1928 में, वो एक और प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आये। दोनो ने सयुंक्त रूप से मिलकर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ’ की स्थापना की। फरवरी 1928 में भारत में साइमन कमीशन की यात्रा के दौरान, लाहौर में साइमन कमीशन की भारत यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहा था। इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान, लाला लाजपत राय लाठीचार्ज में घायल हो गए थे और बाद में इस वजह से उनकी मृत्यु हो गई थी। लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए, भगत सिंह ने ब्रिटिश अधिकारी उप महानिरीक्षक स्कॉट को, जो उनकी(लाला लाजपत राय )  हत्या के लिए ज़िम्मेदार था, मारने का फैसला किया। लेकिन उन्होंने गलती से बजाये उसको (स्कॉट) मारने के, सहायक अधीक्षक सॉन्डर्स को स्कॉट समझकर गोली मार दी ।
भगत सिंह ने  8 अप्रैल 1929 के केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंक दिया और उसके बाद गिरफ्तारी दी। भगत सिंह, सुखदेव और राज गुरु को उनकी विध्वंसक गतिविधियों के लिए एक अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। उन सभी को 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह को आज भी भारत में एक बड़ी संख्या में युवा अपने आदर्श के रूप में देखते हैं। उनके बलिदान, देशभक्ति और साहस को हमारी आने वाली पीढियां श्रद्धापूर्वक बरसो तक याद रखेंगी।

शहीद भगत सिंह से संबधित जानकारी व तथ्य

जन्म सितम्बर 1908
धर्म सिक्ख
जन्मस्थान बंगा, तहसील  जरनवाला, ज़िला ल्यालपुर, पंजाब, ब्रिटिश भारत
राष्ट्रीयता भारतीय  पंजाब, ब्रिटिश भारत
शिक्षा उन्होंने नेशनल कॉलेज ,लाहौर से पढाई की जहां वो अन्य क्रांतिकारियों जैसे भगवती चरण के संपर्क में आये।
राजनीति में आने से पहले पेशा यूरोपियन क्रन्तिकारी आंदोलनों और मार्क्सवादी विचारधारा से  प्रभावित
एसोसिएशन हिंदुस्तान सोशलिस्ट  रिपब्लिकन एसोसिएशन
राजनीतिक करियर नौजवान भारत सभा, कीर्ति किसान पार्टी
प्रकाशन और लेखन उन्होंने अमृतसर से प्रकाशित उर्दू और पंजाबी के अख़बारों के लिए लिखा और संपादित किया, साथ ही साथ उन्होंने नौजवान भारत सभा के कम कीमत वाले पर्चो में भी योगदान दिया जिन्होंने अंग्रेज़ो की चमड़ी उधेड़ दी। उन्होंने वीर अर्जुन अख़बार के लिए, जो दिल्ली से प्रकाशित किया जाता था, और कीर्ति के लिए, कीर्ति किसान पार्टी की पत्रिका  (“मजदूरों और किसानों की  पार्टी””) संक्षेप में लिखा। वह अक्सर छद्मनाम जैसे कि  बलवंत, रंजीत और विद्रोही जैसे नामो    का इस्तेमाल किया करते थे।
पुरस्कार और सम्मान मौत की सजा से सम्मानित ।
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