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फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की जीवनी

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फणीश्वरनाथ रेणु, हिंदी साहित्य के पूर्व-प्रेमचंद युग के एक प्रसिद्ध क्रांतिकारी उपन्यासकार हैं। वह समकालीन ग्रामीण भारत की आवाज थे और मुख्यधारा हिंदी साहित्य के बीच में क्षेत्रीय आवाज लाने के लिए अग्रणी थे। फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को पूर्णिया जिले के गाँव औरही हिंगना में हुआ था।

फणीश्वरनाथ रेणु ने अररिया और फॉरबिसगंज में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने विराटनगर आदर्श विद्यालय (स्कूल), नेपाल के विराटनगर से मैट्रिक शिक्षा प्राप्त की और 1942 में उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इंटरमीडियट की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने सन् 1942 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया था। वह 1950 में नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के नेतृत्व में राणा के तानाशाही और उत्पीड़न के खिलाफ नेपाली क्रांतिकारी संघर्ष में भी शामिल हुए थे।

फणीश्वरनाथ रेणु की लेखन शैली पाठकों के अंतर्मन को छूती थी, जिसे उन्होंने खड़ी बोली के बजाय स्थानीय भाषा का उपयोग करके विकसित किया था। उनके द्वारा लिखित उपन्यासों में, मैला आंचल, पार्टी परिकथा, जूलूस, दीर्घपता, कितने चौराहे और पलटू बाबू रोड आदि शामिल हैं। उनकी सभी कृतियों में मैला आंचल सबसे उत्कृष्ट कृति (1954) है। इस उपन्यास के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। यह उपन्यास मुख्य रूप से उन लोगों के समकालीन सामाजिक जीवन को दर्शाता है, जो गरीब और पिछड़े होते हैं। यह हिंदी साहित्य में अभी भी बेहतरीन उपन्यासों में से एक माना जाता है। यह बिहार के परिदृश्य, जाति के आधार पर समाज का विभाजन, स्वतंत्रता के लिए भारतीय संघर्ष और ग्रामीण भारत की असल रूपरेखा को दर्शाता है। हिंदी उपन्यासों की संरचना और कथा शैली को बदलकर यह उपन्यास का एक नया रूप पेश करता है।

फणीश्वरनाथ नाथ रेणु ने लघु कथाएं भी लिखी हैं, जिसमें मारे गये गुलफाम, एक आदिम रात्रि की महक, लाल पान की बेगम, पंचलाइट, ठेस, संवदिया, तबे एकला चलो रे और कुछ कहानियों का संग्रह ठुमरी, अग्निखोर और अच्छे आदमी शामिल हैं। उनकी लघु कथा पंचलाइट मानव व्यवहार के सुखद चित्रण के लिए जानी जाती है। वास्तव में विषयों के चुनाव के संबंध में उनके लेखन विशेषतः प्रेमचंद के लेखन के समान ही हैं। उनकी लघु कथा ‘मारे गये गुलफाम’ पर एक फिल्म तीसरी कसम में भी बनाई गई है।

इस महान लेखक ने 11 अप्रैल 1977 को यह संसार त्याग दिया।

Categories: Literature
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