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अब्दुल गफ्फार खान की जीवनी

अब्दुल गफ्फार खान न केवल शारीरिक ऊँचाई से बल्कि अपने योगदान और बलिदान से भी सबसे प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। गफ्फार खान ने देशवासियों की बेहतरी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और अहिंसा और गैर-आधिपत्य वाले गाँधीवादी मूल्यों का पालन करने के लिए उत्तर-पश्चिम सीमा के पठानों को बहुत अधिक प्रेरित किया। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इनको सीमांत गांधी’ के रूप में वर्णन किया गया था।

अब्दुल गफ्फार खान का जन्म 1890 में पेशावर के उत्मानजई गांव के खान बहराम खान के घर में हुआ था। गफ्फार खान के माता-पिता अशिक्षित होने के बावजूद भी खुले विचार वाले थे और वे यह चाहते थे कि उनके बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें।अब्दुल को प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद पेशावर के मिशनरी स्कूल भेजा गया था। अब्दुल को ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए चुना गया था लेकिन इन्होंने अपनी बीमारियों का उपचार कराने के बाद सेना छोड़ दी और जहाँ पर भारतीयों को अपमान का सामना करना पड़ता था।

उस समय के पठान ज्यादातर अशिक्षित और असंगठित थे।इसके अलावा ब्रिटिश सरकार उन्हें पिछड़ा रखना चाहती थी ताकि उन परआसानी से नियंत्रणकर सके।अब्दुल ने उस समय की आवश्यकता को महसूस करते हुए बच्चों और महिलाओं के लिए स्कूल खोले।इसके लिए अब्दुल को जेल में बंद करके इनके साथ क्रूरता का व्यवहार किया गया। ब्रिटिश लोगों के अन्याय और धमकियों के बावजूद, स्कूलों ने विकास करना शुरू कर दिया। गफ्फार खान ने अपनी रिहाई के बाद एक राष्ट्रीय समाचार पत्र ‘पख्तुन’ प्रकाशित किया जो बहुत ही लोकप्रिय हुआ।उस समय, प्रगति शील राजा- अमानुल्लाह उनके समर्थन में आगे आए। ब्रिटिश और स्थानीय मुल्लाओं ने स्कूल के बढ़ते विकास को रोकने की साजिश रची।1928 में,अब्दुल गफ्फार खान भारत आए और गांधीजी और नेहरूजी से मुलाकात की। राष्ट्रवादी उत्साह से प्रभावित और प्रेरित, अब्दुल ने समाज में सुधार करने के लिए एक संगठन की स्थापना की।

इसे खुदाई खिदमत गार (लाल कुर्ती आन्दोलन) आन्दोलन कहा जाता था और संगठन के हर सदस्य ने अहिंसा, भाई-चारे का पालन करने और अल्लाह के नाम पर मानवता की सेवा करने की कसम खाई। अंग्रेजों ने इस आंदोलन को रोकने का हर संभव प्रयास किया। उन पर हमला किया गया, लोगों को हानि पहुँचाई गई, उन पर अत्याचार भी हुआ लेकिन पठानों से उनकी कसम तुड़वाने में नाकाम रहे। खान को फिर से जेल में बंद कर दिया गया और उन्हें निर्दयतापूर्वक प्रताड़ित किया गया।उन्हें मुस्लिम लीग से कोई समर्थन नहीं मिला लेकिन कांग्रेस ने पठानों से कहा कि यदि वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो जाते हैं, तो वह उनकी सहायता करेगी। कांग्रेस ने पठानों की दयनीय स्थिति के बारे में भारत, यहाँ तक कि इंग्लैंड औरअमेरिका में भी जानकारी भेजी।

अंत में, अधिक दिनों तक कारावास में रहने के बाद, खान को 1945 में रिहा कर दिया गया था। 1998 में  गफ्फार खान का निधन हो गया और हजारों लोग अपने नायक को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने गए।

अब्दुल गफ्फर खान के बारे में तथ्य और जानकारी

अन्य नाम बच्चा खान, बादशाह खान, फख्र-ए अफगान
जन्म 1890 उत्मानजई, हश्तनगर, पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में)
मृत्यु 20 जनवरी 1988 पाकिस्तान के पेशावर में
निवास स्थान जलालाबाद, नंगरहार, अफगानिस्तान
पिता का नाम बहराम खान
पत्नी का नाम मेहरकंद किनंकेल,नंबता किनंकेल
पुत्र का नाम अब्दुल वली खान, अब्दुल गनी खान, सरदारो, मेहर ताजा, अब्दुल अली खान
भाई का नाम डॉ खान साहिब
धर्म इस्लाम
राजनीतिक आंदोलन खुदाई खिदमतगार
संगठन पाकिस्तान सोशलिस्ट पार्टी,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,राष्ट्रीय अवामी पार्टी
इनके बारे में वह राजनीतिक नेता के साथ साथ एक आध्यात्मिक नेता थे।उन्होंने भारत में ब्रिटिश राज का विरोध किया।गांधी के साथ घनिष्ठ संबंधों के कारण उन्हें “सीमांत गांधी” के रूप में जाना जाता है।
स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होना वह 1911 में हाजी साहिब के स्वतंत्रता आंदोलन का एक हिस्सा बन गए।
शादी उन्होंने 1912 में मेहरकंद से शादी की और 1913 में उनके बेटे अब्दुल गनी खान का जन्म हुआ।
पुनर्विवाह मेहरकंद के बाद उन्होंने अपनी पहली पत्नी की चचेरी बहन नंबता से शादी की।उनकी बेटी मेहर ताज का जन्म 25 मई 1921 को हुआ था और 20 अगस्त 1922 को उनके बेटे अब्दुल अली खान का जन्म हुआ था।
खुदाई खिदमतगार उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए राजनीतिक संगठन खुदाई खिदमतगार (“भगवान के दास”) की स्थापना की।आंदोलन को सुर्ख पोश (“रेड शर्ट्स”) के नाम से भी जाना जाता था।
1931 में उन्होंने पार्टी की अध्यक्षता को स्वीकार करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि “मैं एक साधारण सैनिक और खुदाई खिदमतगार हूं, और मैं केवल सेवा करना चाहता हूँ।”1939 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी।युद्ध नीति के संशोधन के बादवह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(आईएनसी)में फिर से शामिल हो गए।
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