भारत के राज्य
भारत

भारत की संस्कृति

भारतीय संस्कृति
‘अनेकता में एकता’ सिर्फ कुछ शब्द नहीं हैं, बल्कि यह एक ऐसी चीज़ है जो भारत जैसे सांस्कृतिक और विरासत में समृद्ध देश पर पूरी तरह लागू होती है। कुछ आदर्श वाक्य या बयान, भारत के उस दर्जे को बयां नहीं कर सकते जो उसने विश्व के नक्शे पर अपनी रंगारंग और अनूठी संस्कृति से पाया है। मौर्य, चोल और मुगल काल और ब्रिटिश साम्राज्य के समय तक भारत हमेशा से अपनी परंपरा और आतिथ्य के लिए मशहूर रहा। रिश्तों में गर्माहट और उत्सवों में जोश के कारण यह देश विश्व में हमेशा अलग ही नजर आया। इस देश की उदारता और जिंदादिली ने बड़ी संख्या में सैलानियों को इस जीवंत संस्कृति की ओर आकर्षित किया, जिसमें धर्मों, त्यौहारों, खाने, कला, शिल्प, नृत्य, संगीत और कई चीजों का मेल है। ‘देवताओं की इस धरती’ में संस्कृति, रिवाज़ और परंपरा से लेकर बहुत कुछ खास रहा है।

भारतीय मूल्य - सूक्ष्म, सही और अनंत
‘भारतीय जीवनशैली प्राकृतिक और असली जीवनशैली की दृष्टि देती है। हम खुद को अप्राकृतिक मास्क से ढंक कर रखते हैं। भारत के चेहरे पर मौजूद हल्के निशान रचयिता के हाथों के निशान हैं’। ..... जाॅर्ज बर्नाड शाॅ

भारतीय संस्कृति का केनवास विशाल है और उस पर हर प्रकार के रंग और जीवंतता है। यह देश कई सदियों से सहिष्णुता, सहयोग और अहिंसा का जीवंत उदाहरण रहा है और आज भी है। इसके विभिन्न रंग इसकी विभिन्न विचारधाराओं में मिलते हैंः

सहिष्णुता और अहिंसाः पूरे विश्व में भारत एक ऐसा देश है जिसकी विशेषता इसकी सहिष्णुता रही है और यह आगे होकर हथियार और गोला बारुद का इस्तेमाल नहीं करता है। महात्मा गांधी का सत्याग्रह का आंदोलन इसका सबूत है। स्वामी विवेेकानंद ने भी इसे 11 सितंबर 1893 को शिकागो में दिए अपने भाषण में अच्छी तरह दर्शाया था। ‘दुनिया में भिक्षुओं की सबसे प्राचीन रीति, सन्यासियों का वैदिक व्यवहार और एक धर्म जिसने विश्व को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाया है।’

धर्मनिरपेक्षताः भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने के मामले में सबसे आगे है। पूजा और अपने धर्म के पालन की आजादी भारत में विविध संस्कृतियों के सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। ना किसी धर्म को नीची नज़र से देखा जाता है, ना किसी को खास उंचा स्थान दिया जाता है। वास्तव में मुसीबत के समय सभी धर्म अपने सांस्कृतिक मतभेद होने के बाद भी साथ आते हैं और विविधता में एकता दिखाते हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधः भारत का इतिहास भाईचारे और सहयोग के उदाहरणों से भरा पड़ा है। इतिहास में अलग अलग समय में विदेशी हमलावरों के कई वार झेलने के बाद भी इसकी संस्कृति और एकता कभी नहीं हारी और हमेशा कायम रही।

भारतीय संस्कृति - पारंपरिक लेकिन समकालीन
किसी भी देश के विकास में उसकी संस्कृति का बहुत योगदान होता है। देश की संस्कृति, उसके मूल्य, लक्ष्य, प्रथाएं और साझा विश्वास का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय संस्कृति कभी कठोर नहीं रही इसलिए यह आधुनिक काल में भी गर्व के साथ जिंदा है। यह दूसरी संस्कृतियों की विशेषताएं सही समय पर अपना लेती है और इस तरह एक समकालीन और स्वीकार्य परंपरा के तौर पर बाहर आती है। समय के साथ चलते रहना भारतीय संस्कृति की सबसे अनूठी बात है। भारत की कुछ बातें हैं जो पूरी दुनिया में मशहूर हैं, जैसेः

अभिवादन के तरीके
भारत एक ऐसी धरती है जिसके अभिवादन के तरीके बहुत अलग अलग हैं। यहां हर धर्म का अपना अलग अभिवादन का तरीका है। उदाहरण के तौर पर हिंदू परिवारों में बाहरी लोगों या बड़ों को नमस्ते कह कर अभिवादन किया जाता है। दोनों हथेलियां जोड़कर चेहरे से नीचे रखकर ना सिर्फ दूसरों के लिए सम्मान दिखाया जाता है, बल्कि अभिवादन करने वाला भी बदले में स्नेह महसूस करता है। उसी तरह मुस्लिम आदाब कहकर अभिवादन करते हैं जिसमें सीधे हाथ को चेहरे के सामने इस तरह उठाया जाता है कि हथेली आखों के सामने हो और उंगलियां लगभग माथा छू रही हों। यह तो पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि कोई ‘हेलो’ या ‘हाय’ ऐसा जादू नहीं पैदा कर सकता।

फूल माला
भारतीय लोग फूल माला से स्वागत करने के लिए मशहूर हैं। भारतीय शादियों में दूल्हा और दुल्हन के बीच फूल माला का आदान प्रदान अपने आप में एक रस्म है। लोग प्रार्थना करते हुए भी देवी देवताओं को फूल मालाएं प्रदान करते हैं।

भारतीय शादियां
समय बदल गया, लेकिन भव्यता हमेशा से भारतीय शादियों का अभिन्न और अनिवार्य हिसा रही है। भारत में शादी आज भी एक ऐसी संस्था है जिसमें दो लोग नहीं, दो परिवार एक होते हैं। इसलिए इसमें बहुत बड़ा उत्सव होता है जिसमें खूब संगीत और नाच होता है। भारत में हर जाति और समुदाय में शादी की रस्मों का अपना तरीका होता है। हिंदू शादियों में पंजाबी विवाह में रोका रस्म करते हैं और सिंधी बेराना रस्म। इन सबमें एक रस्म आम है और वो हस्त मिलाप है, जिसे लोकप्रिय तौर पर पाणिग्रहण संस्कार कहा जाता है।

मुसलमानों का भी शादी समारोह के उत्सव का अपना तरीका होता है जिसे निकाह कहते हैं। इस शुभ मौके पर दूल्हे का परिवार दुल्हन को मेहर देता है। शादी के समारोह में पारसी एक बर्तन में छोटा आम का पौधा लगाते हैं। इस रस्म का नाम ‘माधवसारो’ समारोह है। हर राज्य का शादी समारोह मनाने का अपना तरीका होता है।

भारतीय कपड़े
भारतीय महिला की सुंदरता उसके कपड़ों में होती है। दुनियाभर में पारंपरिक और एथिनिक फिर भी समकालीन भारतीय साडि़यां मशहूर हैं। यह एक ब्लाउज के साथ पहनी जाती है जो शरीर के उपरी हिस्से को ढंकता है। ग्रामीण इलाकों में घाघरा चोली नाम का पहनावा बहुत मशहूर है। चोली एक छोटे ब्लाउज की तरह होती है जो शरीर के उपरी भाग को ढंकती है और घाघरा एक लंबी स्कर्ट की तरह होता है। एक संपूर्ण और शालीन परिधान के लिए महिलाएं दुपट्टा पहनती हैं, जो एक उचित लंबाई का नर्म और नाजुक कपड़ा होता है जिसे कंघे पर डाला जाता है।

हालांकि मामूली बदलाव के साथ सलवार कमीज़ भारत के हर हिस्से में प्रसिद्ध पोशाक है। इस परिधान में दो पीस होते हैं - कमीज़ जो कि एक लंबा टाॅप होता है जो शरीर के उपरी भाग को ढंकता है और सलवार एक तरह की पतलून है। घाघरा चोली की तरह सलवार कमीज़ के साथ भी दुपट्टा ओढ़ा जाता है।

पुरुषों के लिए भी परिधानों के प्रकार में कोई कमी नहीं है। धोती कुरता से लेकर शर्ट पेंट तक भारतीय पुरुष वह सब कुछ पसंद करते हैं जो अच्छी तरह से फिट हो और अच्छा दिखे। लेकिन पारंपरिक तौर पर आप देख सकते हैं कि उत्तर भारतीय पुरुष औपचारिक समारोह में कुरता पायजामा, धोती कुरता या शेरवानी पहनते हैं और दक्षिण भारतीय पुरुष शर्ट के साथ लुंगी पहनना पसंद करते हैं।

भारतीय गहने
गहने पहनना भारत में एक लंबी परंपरा है। इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में गहने सिर्फ व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए नहीं खरीदे जाते बल्कि शुभ अवसरों पर तोहफे में देने के लिए भी खरीदे जाते हैं। भारतीय समाज में इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी दिया जाता है, इससे भारतीय संस्कृति में इनके महत्व और विशिष्टता का भी पता चलता है।

भारतीय गहनों का अद्वितीय डिज़ाइन, कलात्मक लुक और सृजनात्मकता भारतीय संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ग्रामीण भारत में लाख नाम की राल की पपड़ी व्यक्तिगत गहनों में इस्तेमाल होती है। गुजरात और राजस्थान की विशेषता, लाख की चूडि़यां और कंगन सभी राज्यों की महिलाओं द्वारा पसंद किए और पहने जाते हैं। गहने हर भारतीय महिला के लिए महत्वपूर्ण एक्सेसरी हैं। झुमके, नथनी, बाजूबंद, नेकलेस से लेकर पायल और कंगन तक भारतीय गहने महिलाओं को वह सब देते हैं जो उन्हें अपनी सुंदरता निखारने के लिए चाहिए होता है। गहनों के कुछ प्रकार जैसे मंगलसूत्र, नाक और पैर की उंगली के छल्ले, आमतौर पर विवाहित महिलाओं से जुड़े होते हैं जिन्हें उनकी शादी पर गहने स्त्रीधन के तौर पर दिए जाते हैं।

मेहंदी
भारतीय शादियों में और खासकर उत्तर में शादी से एक दिन पहले एक खास रात मनाई जाती है जिसमें मेहंदी या हिना जो कि एक प्रकार का पेस्ट होता है जिसे दूल्हे की हथेली पर लगाया जाता है और उसके बाद रंगीन नाच गाना होता है। इसे महिलाओं की हथेली पर भी शादी और सगाई जैसे खास मौकों पर लगाया जाता है। इस पेस्ट को कुछ घंटे या फिर रात भर रखा जाता है और पूरी तरह से सूख जाने के बाद धो दिया जाता है। इससे हथेली पर लाल-भूरा सा रंग आता है। भारत के कुछ हिस्सों में मेहंदी एक विशेष प्रकार की प्राचीन लोक कला भी है।

धार्मिक भारत
भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन या पारसी सभी तरह के धर्मों के लोग मिल सकते हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हर नागरिक को किसी भी धर्म को चुनने और मानने का समान अधिकार है। भारत की तीन चैथाई से ज्यादा आबादी हिंदू धर्म की है और देश के विभिन्न हिस्सों में आपको हिंदू तीर्थस्थान मिल जाएंगे।

उत्तर भारत में आप कई धार्मिक स्थानों की यात्रा कर सकते हैं, जैसे वैष्णो देवी, अमरनाथ, बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार और वाराणसी। देश के दक्षिण भाग में जहां आप भगवानों का आशीर्वाद पा सकते हैं वो सबरीमला, श्रृंगेरी, दक्षिणेश्वर बेलूर मठ और रामेश्वरम हैं। अगर आप पूर्वोत्तर में हैं तो गुवाहाटी के बाहरी इलाके में नीलांचल पर्वत पर स्थित कामरुप मंदिर जा सकते हैं। यदि आप गुजरात के आसपास घूम रहे हैं और भगवान कृष्ण के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको द्वारकानाथ मंदिर जरुर जाना चाहिए जो उस जगह बना है जहां मीराबाई ने प्राण त्यागे थे। आप सोमनाथ मंदिर भी जा सकते हैं जो कि भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

राजस्थान के अजमेर में दरगाह शरीफ और असम में अजन पीर की दरगाह मुस्लिमों के तीर्थ हैं। पूर्वोत्तर में पोए मक्का है। माना जाता है कि एक वफादार मुस्लिम यहां मक्का में हासिल होने वाले आध्यात्मिक ज्ञान का एक चैथाई पा सकता है।

पंजाब में सिखों के लिए कई तीर्थस्थान हैं, जैसे अमृतसर में हरमंदिर साहिब, अमृतसर के पश्चिम में तरनतारन, आनंदपुर में तख्त श्री केशगढ़ साहिब, बठिंडा में तलवांडी साबो और गुरदासपुर के पश्चिम में डेरा बाबा नानक। 4329 मीटर की उंचाई पर स्थित हेमकुंड गुरुद्वारा दुनिया का सबसे उंचाई वाली गुरुद्वारा है। दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने यहां पहाडों में सालों तक ध्यान किया और अंत में भगवान से मिलने के लिए अपना शरीर यहां छोड़ दिया।

सिखों का एक अन्य प्रसिद्ध तीर्थ हिमाचल प्रदेश स्थित मणिकरण गुरुद्वारा है जो कि अपने गर्म झरनों के लिए प्रसिद्ध है। यह माना जाता है कि इन झरनों में यूरेनियम और कई रेडियोधर्मी सामग्री है। सिखों की एक अन्य पवित्र जगह महाराष्ट्र में तख्त सचखंड श्री हज़ूर अचलनगर साहिब है। भारत में आपको हर राज्य में बड़ी संख्या में चर्च मिल जाएंगे। यदि आप दक्षिण में हैं तो आंध्र प्रदेश में मेडक चर्च और गुंडला चर्च जा सकते हैं और केरल के कोच्चि में सेंट क्रूज़ चर्च जा सकते हैं। उत्तर भारत में भी कई प्रसिद्ध चर्च हैं, जैसे उत्त्र प्रदेश में सेंट जोसफ और नई दिल्ली में सेकर्ड हार्ट चर्च। यदि आप हिमाचल की वादियों का मज़ा ले रहे हों तो शिमला में क्राइस्ट चर्च और सेंट माइकल कैथेड्रल का आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं।

धर्म के पालन में इतनी विविधता होने के बावजूद यहां लोगों में अभी भी एकता है। यह भारतीय मूल्य हैं, जो लोगों को एक साथ बांधे रखते हैं।

प्रकृति की पूजा
आमतौर पर भारत में दिन सूर्य नमस्कार के साथ शुरु होता है। इसमें लोग सूर्य को जल चढ़ाते हैं और मंत्र पढ़कर प्रार्थना करते हैं। भारतीय लोग प्रकृति की पूजा करते हैं और यह इस संस्कृति की अनूठी बात है। हिंदू धर्म में पेड़ों और जानवरों को भगवान की तरह पूजा जाता है। लोग भगवान में विश्वास रखते हैं और कई त्यौहारों पर उपवास रखते हैं। वे सुबह का ताज़ा खाना गाय को और रात का आखिरी खाना कुत्ते को देते हैं। दुनिया में कहीं भी इस तरह की उदारता नहीं देखी जाती।

यहां सभी धर्मों में दिन की शुरुआत भजन से की जाती है और यही कीमती मूल्य बच्चों में बचपन से डाले जाते हैं। सुबह की प्रार्थना और नैतिक शिक्षा भारत में शिक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा हैं। यहां लोगों को उनकी जाति, रंग या नस्ल के आधार पर नहीं आंका जाता और यह भारत को रहने के लिए एक अनूठी जगह बनाता है।

यहां सबकुछ कलात्मक है!
एक चीज़ जो भारत के अलावा विश्व में कहीं और नहीं मिलती, वह है प्रदर्शन और दृश्य कला में विविधता। सड़क किनारे शो से लेकर थियेटर में एक अत्यंत प्रबुद्ध नाटक तक आपको यहां कुछ भी और सबकुछ मिल जाएगा।

भारतीय कला को दो मुख्य रुपों में वर्गीकृत किया जा सकता है - प्रदर्शन कला और दृश्य कला।

प्रदर्शन कला
नाच, नाटक, थियेटर और संगीत, हर कला अपने आप में अनूठी है। भारत में धर्म, पुराण और शास्त्रीय साहित्य ज्यादातर प्रदर्शन कला का आधार होता हैः

नृत्य
भारतीय शास्त्रीय नृत्य, जैसे भरतनाट्यम, कथकली, कत्थक, मणिपुरी, ओडिसी और कुचिपुड़ी मुख्य तौर पर नाट्य शास्त्र, पुराण और शास्त्रीय साहित्य और रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के संकेतों का पालन करते हैं।

रंगमंच
प्रदर्शन कला का एक अन्य प्रकार रंगमंच है। हालांकि लोक थियेटर हर भाषा और हर क्षेत्र में प्रचलित है, पर व्यवसायिक थियेटर सिर्फ बड़े शहरी इलाकों और महानगरों में लोकप्रिय हैं। कठपुतली शो भारतीय रंगमंच का अहम हिस्सा थे। सदियों तक कठपुतली शो का इस्तेमाल जनता में सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए और बच्चों में सच्चाई और ईमानदारी के नैतिक मूल्य पैदा करने के लिए किया जाता रहा।

संगीत
भारतीयों के लिए संगीत आत्मा के लिए बिलकुल वैसा ही है जैसा भोजन शरीर के लिए है। वैदिक काल से ही यह हर भारतीय के दिल और दिमाग पर छाता रहा है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में मूलतः दो तरह के स्कूल होते हैं - हिंदुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत। संगीत नोटों के रागों की व्यवस्था शास्त्रीय संगीत में महत्वपूर्ण है। भारतीय गांवों में अपना खास तरह का संगीत होता है जिसमें लोक संस्कृति के रंग होते हैं। भारतीय फिल्मों का संगीत भी जनता को पसंद आता है।

फिल्में
फिल्में भी एक अन्य प्रकार की प्रदर्शन कला है जिसके लिए भारत दुनिया भर में लोकप्रिय है। हर साल देश में 1000 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण होता है जो ना सिर्फ घरेलू बाज़ार में लोकप्रिय है बल्कि एशियाई और यूरोपीय देशों में भी इनकी अच्छी खासी दर्शक संख्या है। हिंदी, पंजाबी, गुजराती, कन्नड़, तेलगु, बंगाली या मराठी, भारत में हर भाषा में फिल्में बनती हैं। हाॅलीवुड सितारों की तरह ही दुनिया भर में भारतीय सितारों को भी प्यार किया जाता है।

दृश्य कला
खूबसूरती देखने वाले की आंखों में होती है। अगर आप भारत में मूर्तियों और चित्रों को देखेंगे तो आप कहे बिना नहीं रह पाएंगे कि खूबसूरती भारतीय कलाकारों के हाथों में है।

चित्र
चित्रकारी में भारत का इतिहास अजंता और एलोरा की गुफाओं, ताड़ के पत्तों पर बौद्ध पांडुलिपियों और जैन ग्रंथों में प्रमुखता से दिखता है। चाहे अजंता के चित्रों का मुक्त रुप हो या पत्ता चित्रकारी या ग्लास चित्रकारी, भारत हमेशा से इस तरह की दृश्य कला के लिए मशहूर रहा है। भारतीय चित्रकारी में रचनात्मकता और रंगों का इस्तेमाल हमेशा से अनूठा और शालीन रहा है। अपनी संस्कृति और परंपरा को ध्यान में रखते हुए भारतीय कलाकार अन्य यूरोपीय कलाकारों के गुणों को भी आत्मसात करके भारतीय चित्रों को पारंपरिक स्पर्श के साथ समकालीन रुप भी देते हैं। भारत के प्रसिद्ध चित्रकार स्कूल में राजपूत, डेक्कन, कांगड़ा और मुगल हैं।

मूर्तियां
चोल राजवंश से लेकर आज के युग तक दृश्य कला के अन्य माध्यम मूर्तिकला में भारत शीर्ष पर रहा है। कांचीपुरम, मदुरै और रामेश्वरम का डेक्कन मंदिर, ओडिशा का सूर्य मंदिर और मध्य प्रदेश का खजुराहो, यह सब पवित्र स्थान भारतीय कलाकारों के शिल्प कौशल का शानदार नमूना हैं। सांची के स्तूप की मूर्तियां बुद्ध के जीवन और विभिन्न लोक देवताओं पर प्रकाश डालती हैं। वास्तुकला के स्पर्श के साथ अमरावती और नागर्जनघोंडा की मूर्तियां बुद्ध और उनके समकक्षों के सामाजिक जीवन को दिखाती हैं। एलोरा के मंदिर और एलिफेंटा गुफाएं भारतीय मूर्तियों की महारत का खास नमूना हैं। वनस्पति और जीव जंतु, देवता और विभिन्न पौराणिक चरित्र, यह सब मिलकर इन सभी खूबसूरत दृश्य कलाओं की डिजाइन का आधार हैं।

कुम्हारी
भारत में एक बहुत प्राचीन और सुंदर दृश्य कला कुम्हारी की है। इस कला रुप में मिट्टी के ढेर को हाथों से आकार देकर खिलौने और पूजा के लिए देवता बनाए जाते हैं। भारत में मशहूर कुम्हारी में टेराकोटा और ब्लू गेज प्रमुख हैं। कुम्हारी का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है। दुर्गा पूजा और गणेश चतुर्थी पर मां दुर्गा और भगवान गणेश की सुंदर मूर्तियां कुम्हारी, मूर्तिकला और चित्रकारी का संगम दिखाती हैं।

उत्सव मनाने के लिए तैयार!
‘देवताओं की भूमि’ को उत्सव मनाने के लिए कोई खास कारण नहीं चाहिए। उत्सव हर भारतीय के जीवन का मूलभूत हिस्सा हैं।

मेले और त्यौहार
जनवरी से दिसंबर तक हर महीने में विशेष त्यौहार या मेला आता है। मकर संक्रांति, बसंत पंचमी, होली, राम नवमीं, जन्माष्टमी, दीपावली, ईद, महावीर जयंती, बुद्ध पूर्णिमा, गुरु परब और क्रिसमस, हर धर्म के त्यौहार का अपना महत्व है और इन्हें बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

यहां लोगों को नाचने के लिए फ्लोर की जरुरत नहीं होती। दुर्गा पूजा, गणेश चतुर्थी, जन्माष्टमी और होली के दौरान भारतीयों के नाच की असली प्रतिभा दिखाई देती है।

केवल यही नहीं, यह देश एक विशेष अंतराल पर हस्तशिल्प मेलों का भी आयोजन करता है। हर साल फरवरी में हरियाणा में सूरजकुंड मेले का आयोजन होता है जिसमें बड़ी संख्या में आम जनता और विदेशी सैलानी शामिल होते हैं। इस तरह के मेलों और त्यौहारों में आप असली भारत देख सकते हैं। यह थीम मेले और उत्सव देश को एकजुट करते हैं। इनसे लोगों को एकदूसरे की संस्कृति और परंपरा के बारे में जानने का मौका मिलता है और इनकी सक्रिय भागीदारी से यह भी पता चलता है कि ये एकदूसरे के बारे में जानना कितना पसंद करते हैं।

यहां सिर्फ एक प्रकार का भोजन नहीं होता
कई राज्य और कई धर्म होने के कारण यहां व्यंजनों की संख्या भी बहुत है। अगर उत्तर भारत में छोले भटूरे, तंदूरी चिकन, राजमा चावल, कढ़ी चावल, ढोकला, दाल बाटी चूरमा और बिरयानी हैं तो दक्षिण भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। मसाला डोसा से लेकर रवा उत्तपम, रसम, सांभर-लेमन राइस और तोरन, अप्पम और मीन तक दक्षिण भारतीय व्यंजनों में बहुत प्रकार हैं।

भारत में थाली की अवधारणा भी बहुत मशहूर है। थाली को परंपरागत तौर पर परोसा जाता है और इसमें आप एक ही भोजन में विविधता का मज़ा ले सकते हैं। किसी छोटे रेस्त्रां में पेटभर खाने का सस्ता तरीका थाली ही है। यदि आप किसी होटल में जाते हैं तो आप कई प्रकार के काॅम्बो-भोजन का भी मज़ा ले सकते हैं।

भारतीय मसालों के कई प्रकार हैं, जैसे काली मिर्च, धनिया बीज, इलायची, केसर और जीरा, जो ना सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाते हैं बल्कि उसमें पोषण भी जोड़ते हैं। यदि खाने के अंत में मीठा ना हो तो भारतीय भोजन अधूरा है। चाहे एक कटोरी खीर हो या छोटा मीठा पान आदि हो, ये मुंह में मिठास और ताजगी दोनों भर देते हैं।

इतनी विविधता के बावजूद भारत में लोग एकजुट हैं और अपनी संस्कृति और परंपरा पर गर्व महसूस करते हैं। चाहे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह हो या सौंदर्य प्रतियोगिताएं, विश्व मंच पर भारत ने प्रतिभा और संस्कृति का प्रदर्शन किया है। कई शासक यहां आए लेकिन इसकी संस्कृति को नुकसान नहीं पहुंचा पाए और भारतीयों ने अपने सांस्कृतिक मूल्यों को सहेज कर रखा है। समय के साथ चलने और लचीलेपन के कारण भारतीय संस्कृति आधुनिक और स्वीकार्य भी है।

अंतिम संशोधन : फ़रवरी 18, 2015