मिशन सफल! भारत का मंगलयान पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में पहुंचा
भारत के मार्स आॅर्बिटर मिशन यानि एमओएम ने अपने खाते में सफलता दर्ज कर ली। हम दुनिया के ऐसे पहले देश बन गए हैं जिसने अपने पहले ही प्रयास में यह सफलता हासिल की है। इसरो से मिली पुष्टि के अनुसार अंतरिक्ष यान बुधवार सुबह तय समय पर मंगल की कक्षा में पहुंचा। तकनीकी तौर पर मुख्य तरल इंजन के जलने की शुरुआत काफी तेज रही। हालांकि, सूर्य की छाया में आए मंगल पर जारी ग्रहण के चलते अंतरिक्ष यान और धरती के बीच रेडियो लिंक अभी बाधित है। इसलिए तय व्यवस्था के अनुसार दोपहर तक आॅस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष केन्द्र से सिग्नल मिलने की उम्मीद है।
मार्स आॅर्बिटर मिशन भारत का पहला अन्तग्र्रहीय अभियान है, जिसमें अण्डाकार यान को कक्षा में स्थापित करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह मिशन मुख्य रुप से एक तकनीकी मिशन था जिसका संचालन और जरुरतें जोखिम भरीं थीं।
इसरो ने मिशन के जो उद्देश्य तय किये वह इस प्रकार हैंः
वैज्ञानिक उद्देश्य
मंगल की सतह की विशेषताएँ, संरचना, खनिज और जलवायु की विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों से जांच।
तकनीकी उद्देश्य
- मार्स आॅर्बिटर को डिजाईन करना और सक्षम बनाना कि वह सुरक्षित रहे और वह 300 दिन तक पृथ्वी संबंधी कार्यों को पूरा कर सके। इसका मंगल की कक्षा में प्रवेश करना, स्थापित होना और उस ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करना शामिल है।
- गहन अंतरिक्ष संचार, नेविगेशन, मिशन की योजना और प्रबंधन।
- आपात स्थ्तिि को संभालने के लिए स्वायत्त विशेषताएं डालना।
इसरो का यह पहला सफल अन्तग्र्रहीय अभियान 5 नवंबर 2013 को शुरु किया गया था और इसने भारत को सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चैथे स्थान पर ला खड़ा किया है।
सन् 2008 में चंद्रयान 1 के लाॅन्च के बाद एमओएम मिशन का विचार किया गया और इसका व्यवहारिक अध्ययन सन् 2010 में किया गया। 3 अग्स्त 2012 को भारत सरकार ने इस मिशन को मंजूरी दी। इस परियोजना की कुल लागत 4.54 बिलियन थी जिसमें से 1.25 बिलियन कक्षा के अध्ययन पर खर्च किए गए।
5 अगस्त 2013 को पीएसएलवी-एक्स एल प्रक्षेपण यान को असेंबल करना शुरु किया गया। 2 अक्टूबर 2013 को तैयार यान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा भेजा गया ताकि पीएसएलवी-एक्स एल प्रक्षेपण यान से इसे जोड़ा जा सके। इसरो अंतरिक्ष केन्द्र पर पांच वैज्ञानिक उपकरणों को सफलतापूर्वक लगाया गया। इस तरह यह यान 15 महीनों में सफलतापूर्वक पूरा हुआ। इसरो की अगली योजना सन् 2017-2020 तक ज्यादा बड़े उपकरणों के साथ अगला मिशन भेजने की है। इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन की अगुवाई में वैज्ञानिकों का एक समूह भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में एक मील का पत्थर बनाने जा रहा है।
उड़ान का शुरुआती द्रव्यमान 1,350 किलो था, जिसमें 852 किलो का 1.5 मीटर क्यूबाइड आकार का प्रोपेलेंट शामिल था। प्रोपेलेशन हार्डवेयर का विन्यास चंद्रयान 1 की तरह, लेकिन मंगल मिशन के अनुसार किए उच्च संशोधनों का था। अंतरिक्ष यान की बस का आकार आई-1के संरचना के संशोधन के रुप में है। इसमें तीन सौर उर्जा पैनल हैं जो बिजली पैदा करते हैं। कक्षा में जाने और स्थापित होने हेतु 440एन के तरल ईंधन इंजन का उपयोग हुआ है।
इस मिशन के लिए दो कारणों से इसरो ने कम शक्तिशाली पीएसएलवी को चुना, जिसे सीधे मंगल प्रक्षेपपथ पर नहीं भेजा सकता था।
पहला यह कि सन् 2010 में जीएसएलवी दो अंतरिक्ष अभियानों में असफल रहा था, इसलिए यह जोखिम नहीं उठाया जा सकता था। दूसरा यह कि नए राॅकेट के निर्माण में लगने वाले तीन सालों के समय के कारण एमओएम मिशन को टाला नहीं जा सकता था, क्योंकि पीएसएलवी कम ताकत वाला था, इसरो ने इसे पहले पृथ्वी की कक्षा में लाॅन्च किया।
इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने 19 अक्टूबर 2013 को मिशन के लाॅन्च में एक सप्ताह की देरी की घोषणा की। इसका कारण फिजी द्वीप में टेलीमेटरी जहाज आने में देरी को बताया गया। इस तरह 28 अक्टूबर 2013 की जगह एमओएम को 5 नवंबर 2013 को लाॅन्च किया गया, जिसका प्राथमिक उद्देश्य अन्तग्र्रहीय अभियान के संचालन का प्रदर्शन करना था। उस दिन ही पीएसएलवी-एक्स एल ने पृथ्वी की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक स्थापित किया।
बंगलौर के पीन्या में इसरो टेलिमेट्री, ट्रेकिंग और कमांड नेटवर्क के अंतरिक्ष यान नियंत्रण केन्द्र ने 6,7,8,10,12, और 16 नवंबर को कक्षा संबंधी कई आॅपरेशन किये। पहले तीन अभ्यास के परिणाम आशा अनुरुप नहीं आए पर चैथा बहुत सफल रहा। अंतरिक्ष यान के कक्षा में रहने के दौरान कुल छह बर्न पूरे हुए। 30 नवंबर 2013 को सातवीं बार में एमओएम को मंगल की केन्द्रीय कक्षा में पहुंचाया गया।
हालांकि मूल रुप से चार प्रक्षेपपथ की योजना बनाई गई थी पर तीन ही किए गए। 11 दिसंबर 2013 को पहला ट्रेजेक्टरी करेक्शन मैनुअर किया गया। इसके बाद दूसरा 11 जून 2014 को किया गया, जबकि वह अप्रेल 2014 में करना निर्धारित किया गया था। 15 सितंबर 2014 तक एमओएम ने अपनी 98 प्रतिशत यात्रा पूरी कर ली थी। जरुरत ना होने पर तीसरे प्रक्षेपपथ को भी टाला गया, जो कि सोमवार 22 सितंबर 2014 को किया गया। अंतिम ट्रेजेक्टरी करेक्शन बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसमें इसरो वैज्ञानिकों ने लंबे समय से बंद पड़े मार्स आॅर्बिटर मिशन के इंजन को चालू किया था।
आखिकार वह दिन आ गया जिसका लाखों भारतीयों सहित पूरी दुनिया 300 दिन से इंतजार कर रही थी। इसरो वैज्ञानिकों ने भरोसा दिलाया है कि मुख्य इंजन बहुत अच्छी हालत में है और तय समय पर मंगल में 24 मिनट की फायरिंग के लिए भी तैयार है। दुनिया भर के लोग मंगलयान के मंगल की कक्षा में पहुंचने के इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बने। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसरो के केन्द्र पर वैज्ञानिकों को बधाई देने के लिए मौजूद थे। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि ‘भारत ने इस अज्ञात दुनिया में जाने का साहस किया है। वैज्ञानिकों ने एक इतिहास रचा है। इसरो उन विशिष्ट एजेंसियों में शामिल हो गया है जो मंगल तक सफलतापूर्वक पहुंचे हैं।
एक भारतीय होने के नाते हमें अपने वैज्ञानिकों और इस मिशन से जुड़े हर व्यक्ति पर गर्व है। यह एक सपने के सच होने जैसा है। भारत मंगल की कक्षा में पहले ही प्रयास में पहुंचने वाला विश्व का पहला देश बन गया।
अंतिम संशोधन : सितम्बर 26, 2014