बैरम खाँ एक असाधारण सैन्य जनरल थे जिन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं और उनके बेटे अकबर के लिए सेवा की और उनके राज्य का विस्तार करने में बहुत बड़ा योगदान दिया था। बैरम खां ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू के खिलाफ अकबर की जीत के लिए उनका नेतृत्व किया। एक योग्य संरक्षक के रूप में, उन्होंने शत्रुतापूर्ण स्थितियों के दौरान अकबर को निर्देशित भी किया। बैरम खाँ मुगल साम्राज्य के प्रति तब तक वफादार रहे जब तक कि अकबर अपनी धाय माँ माहम अनगा के करीब नहीं आए, क्योंकि माहम अनगा ने दोनों के बीच मतभेद पैदा कर दिए थे।

जब हुमायूं को इस्लाम शाह की मौत के बारे में खबर मिली, तो वह भारत पर आक्रमण करने के लिए उत्साहित हो गया। उसी समय पर, बैरम खाँ उनकी मदद के लिए आए थे।  उन्होंने अफगानों को हराकर पंजाब पर विजय प्राप्त की थी और बिना किसी विपक्ष के दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। मुगल साम्राज्य फिर से अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया क्योंकि उसमें बैरम खाँ का बहुत बड़ा योगदान था। जब अकबर केवल चौदह वर्ष का था तो हुमायूं की मृत्यु हो गई और बैरम खाँ ने अकबर का मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली। उनके संरक्षण के तहत, अकबर ने मुगल साम्राज्य को बदलकर एक विशाल साम्राज्य में समेकित किया। इसके बाद हेमू विक्रमादित्य के तहत अफगान सेना ने आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया लेकिन बैरम की अगुआई में अकबर की सेना ने पानीपत (1556) की दूसरी लड़ाई में हेमू को हरा दिया और खोए गए क्षेत्रों पर पुनः कब्जा कर लिया।

अकबर की धाय मां माहम मनगा के विचार अलग तरह के थे। वह अपने बेटे आधम खान के साथ-साथ खुद भी शासन करना चाहती थीं। उन्होंने बैरम खाँ को पद से हटाने के लिए अकबर को यह कहकर मजबूर कर दिया था कि वो अब बिल्कुल बूढ़े हो चुके हैं और कार्यभार संभालने में असमर्थ हैं। अकबर उनकी इस बात से सहमत थे और उन्होंने बैरम खाँ को हज करने के लिए मक्का की यात्रा की व्यवस्था कर दी। बैरम खां मक्का के लिए रवाना हो गए लेकिन रास्ते में उन्हें आधम खान द्वारा भेजी गई एक सेना मिली, जिसने उनसे कहा कि उन्हें पहरेदार के रूप में साथ जाने के लिए मुगल साम्राज्य द्वारा भेजा गया है। बैरम ने अपने आप को अपमानित महसूस किया और सेनाओं के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत की। जिसके कारण बैरम को बन्दी बनाकर अकबर के राज-दरबार में पेश किया गया। अनादर करने की बजाय, अकबर ने उनका आदर और सम्मान किया और मक्का की उनकी उचित यात्रा को वित्त पोषित किया। हालांकि किस्मत ने बैरम खाँ के लिए कुछ और ही सोंच रखा था, जब वह खंभात के बंदरगाह शहर पहुंचे तो अफगानों, जिसके पिता को बैरम खाँ ने पांच साल पहले एक युद्धा में मार दिया गया था, ने उनकी पीठ पर छुरा भोंक दिया था। इसके बाद 31 जनवरी 1561 को बैरम खाँ की मृत्यु हो गई।

बैरम खान के बारे में तथ्य और जानकारी      

समयाकाल                       1517-1561
जन्म बदख्शां में 1501
मृत्यु 31 जनवरी 1561, गुजरात
पत्नी सलीमा सुल्तान बेगम
पुत्र अब्दुल रहीम खान-ए-खाना
धर्म शिया इस्लाम
बारे में बैरम खाँ शीर्ष जनरलों के बीच एक सैन्य कमांडर, मुगल सेना का प्रमुख कमांडर, एक शक्तिशाली राजनेता और साथ-साथ मुगल सम्राट के दरबार में एक शासक था
सम्राट अकबर
निष्ठावान मुगल साम्राज्य
कमांड मुगल सेना
सैन्य सेवा बैरम ने 16 वर्ष की उम्र में बाबर के साम्राज्य की सेवा की थी और भारत की प्रारम्भिक मुगल विजय में सक्रिय रूप से भाग लिया था।
हुमांयू के तहत मुगल साम्राज्य की स्थापना में बैरम खान ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  1556 में हुमायूं की मौत के बाद, बैरम खाँ राज्य-संरक्षक बन गए क्योंकि अकबर उस समय शासन करने के लिए बहुत छोटे थे।
  पानीपत की दूसरी लड़ाई नवंबर 1556 में, मुगल सेनाओं का नेतृत्व बैरम खाँ ने किया था।
सलीमा सुल्तान सलीमा सुल्तान बैरम की पत्नियों में से एक थीं। बैरम की मृत्यु के बाद अकबर ने उनसे विवाह किया।
मृत्यु 1560 में, अकबर ने बैरम को पदच्युत कर दिया और उन्हें मक्का की तीर्थ यात्रा पर जाने का आदेश दिया। यद्यपि, गुजरात में 31 जनवरी 1561 को बीच रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई।
खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 को खानवा का युद्ध पानीपत की लड़ाई के बाद आगरा के लगभग 60 किलोमीटर पश्चिम में मुगल सम्राट बाबर द्वारा पहली बार लड़ा गया था।
घाघरा का युद्ध 1529 में घाघरा की लड़ाई मुगल साम्राज्य द्वारा सुल्तान महमूद लोदी द्वारा शासित पूर्वी अफगान संघ और सुल्तान नुसरत शाह द्वारा शासित बंगाल की सल्तनत के खिलाफ लड़ी गई
संभल की घेराबंदी बाबर ने कासिम संभली द्वारा छीने गए एक जिले संभल को एक सेना भेजी।
पानीपत की लड़ाई (1556) पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और सम्राट हेम चंद्र विक्रमादित्य (हेमू), हिंदू शासक के बीच लड़ी गई थी। अकबर के सेनापति और खान जमान और बैरम खां ने उनके लिए जीत सुनिश्चित की।
अंग्रेजी में किताबें जानकी प्रकाशन द्वारा राजनीतिक जीवनी खान-ए-खाना बैरम खाँ
बैरम खां: सैनिक और प्रशासक
मुहम्मद बैरम खां का जीवन और उनकी उपलब्धियां
हिन्दी में किताबें खान-ए-खाना नामा प्रतिभा प्रतिष्ठान

 

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