पुष्पलता दास का जन्म 27 मार्च सन् 1915 को उत्तर लखीमपुर, असम में हुआ था। ये एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता कार्यकर्ता और पूर्व सांसद भी थीं। इनका जन्म स्वर्गीय रामेश्वर सैकिया और श्रीमती स्वर्णलता सैकिया के घर हुआ। पुष्पलता ने गुवाहाटी के पान बाजार गर्ल्स हाई स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण की, जहाँ से उन्हें 14 वर्ष की उम्र में मुक्ति संघ नामक संगठन की सचिव होने के कारण फरवरी 1930 में निष्कासित कर दिया गया था। उन्होंने और उनके साथियों ने भगत सिंह को दी गई फाँसी की सजा के खिलाफ अपनी आवाजें उठाई थीं।

पुष्पलता ने 1934 में निजी छात्र के रूप मेंमैट्रिक परीक्षा के बाद बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। उन्होंने आंध्र विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में परास्नातक (1938) को पूरा किया। तब उन्होंने कानून की पढ़ाई करने के लिए अर्ले लॉ कॉलेज में प्रवेश लिया लेकिन उन्हें उसे छोड़ना पड़ा क्योंकि ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ से जुड़े होने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया था। वह बचपन से ही महिला शक्ति और साहसी में दृढ़ विश्वास रखने वाली थीं। पुष्पलता ने गांधीजी की खादी अवधारणा को बढ़ावा दिया और चरखा संघ का गठन किया।

पुष्पलता राष्ट्रीय योजना समिति (1940 से 1942) की एक सक्रिय सदस्य थीं। उन्होंने 1942 में एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री ओमेओ कुमार दास से विवाह किया। इसके बाद वह तेजपुर चली गईं, जहाँ उन्होंने गोहिपुर पुलिस स्टेशन परिसर में राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाने के लिए ज्योति प्रसाद अग्रवाल के साथ शांति वाहिनी और मृत्यु वाहिनी का गठन किया। लेकिन अचानक कनक लता को इस मिशन मे शामिल होना पड़ा और उन्हें अंग्रेजों ने मिलकर मार दिया था।

पुष्पलता ने असम को समूह प्रणाली में शामिल करने वाली जवाहरलाल नेहरू की योजना का द्रढ़तापूर्वक विरोध किया। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने योगदान के लिए दिए गए ताम्रपत्र को स्वीकार करने से भी इंकार कर दिया था।

स्वतंत्रता के बाद का कैरियर:

  • सन् 1951 में राज्यसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं
  • सन् 1959 में अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की सदस्य
  • असम विधान सभा की सदस्य
  • अखिल भारतीय खादी बोर्ड, असम की अध्यक्ष

वे 9 नवंबर, 2003 को 88 साल की उम्र में मृत्यु को प्राप्त हो गईं।

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