हैदर अली (1722-1782) एक महान भारतीय प्रमुख थे जिनके अदत्त सैन्य वैभव ने उन्हें दक्षिण-पश्चिमी भारत में मैसूर के राज्य का शासक बनते देखा था। उन्होंने फख्र-उन-निस्सा (फातिमा बेगम) से शादी की, जिससे वे महान योद्धा शासक टीपू सुल्तान के पिता बने और भारत में ब्रिटिश आक्रमण के विरोध में दोनों ने एक साथ कई लड़ाइयां लड़ी।
माना जाता है की हैदर अली का जन्म 1722 में हुआ था, जबकि अन्य स्रोतों के अनुसार उनके जन्म का वर्ष 1717 है।उनका जन्म एक शिया मुस्लिम परिवार में हुआ था, उसके परदादा डेक्कन के गुलबर्गा में एक फकीर थे। एक सैन्य वंश से सम्बंधित, हैदर के पिता एक नाइक (मुख्य कांस्टेबल) थे, जबकि उनके भाई ने मैसूर सेना में एक ब्रिगेड के एक कमांडर के रूप में सेवा की थी। अपने भाई की सहायता करते करते, युवा हैदर ने धीरे-धीरे कुछ वर्षों में युद्ध की कला सीखी, और संचालन में अपनी सैन्य प्रतिभा को बढ़ावादेते हुए अंततः मैसूर के हिंदू राज्य के एक शासक के रूप में उभरे।
एक साहसी योद्धा और स्वभाव से एक महान रणनीतिकार, हैदर अली को को पहला भारतीय होने का श्रेय दिया जाता है जिसने सशस्त्र सिपाहियों के सैन्य दल का गठन किया जिसमे यूरोपीय नाविक भी थे जिन्हें तोपखाने की टुकड़ी की सहायता प्राप्त थी। देवनहल्ली (1749) की घेराबंदी के दौरान उनके योगदान के लिएउन्हें मैसूर के राजा की और से स्वतंत्र नियंत्रण मिला जिसे आने वाले वर्षों में सत्ता हासिल करने के लिए उन्होंने सुदृढ़ किया और अंततः 1761 में मैसूर के व्यवहारिक शासक बने।
अंतःअपने राज्य का उपनिवेश का विस्तार करने के लिए हैदर अली के कई विजय अभियान शुरू हुये जिनमे कनारा की समृद्ध विजय (1763), कालीकट विजय, और 1765 में खुद को मराठाओं से बचाते हुए मालाबार तट पर हिंदुओं को निरस्त करना शामिल थे। हैदर अली के खिलाफ हैदराबाद के निजाम और मद्रास प्रेसीडेंसी के बीच गठबंधन के 1766 का प्रबल समझौता संयुक्त बलों के खिलाफ चंगम और तिरुवन्नामलाई मेंअंग्रेज़ो की लड़ाई के साथ गिर गया।
शांति प्रस्ताव की निंदा के कारण पश्चिमी तट पर हैदर के गंभीर नुकसान के बाद वे अपनी सेना को मद्रास के बाहरी इलाके में ले गए जिसके फलस्वरूप 1769 में सभी विजय अभियान के आपसी बहाली की संधि हुयी। जब अंग्रेज़ों ने सन्धि का हनन किया जिसके फलस्वरूप 1772 में मराठों के खिलाफ हैदर को नुकसान उठाना पड़ा, तब उन्होंने 1779 में फ्रेंच से माहे का कब्जा करके इसका बदला लिया और फिर 1780 में कर्नल बैली के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना को कर्नाटक क्षेत्र के आक्रमण में तबाह कर दिया। 1781 में अंग्रेज़ों ने अपनी पूरी ताकत से वापसी की और हैदर अली सर आयर कुते के खिलाफ लगातार तीन हार और ब्रिटिश बेड़े द्वारा नागपट्टिनम के कब्जा का सामना करना पड़ा।
दिसंबर 1782 में चित्तूर में हैदर अली ने अपनी अंतिम साँस ली, हालांकि उनके बेटे टीपू ने अपने पिता की विरासत को जारी रखा औरबेदर्दी पूर्वक प्रतिद्वंदी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई जारी की।
हैदर अली के बारे में तथ्य एवं जानकारी
उपनाम | हैदर अली |
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शासन | 1761-1782 ईसवी |
जन्म | 1721 ईसवी |
पूरा नाम | सुल्तान हैदर अली खान बहादुर |
जन्मस्थल | बुड़ीकोट, कोलर, कर्णाटक |
मृत्यु | 7 दिसंबर 1782 |
मृत्यु का स्थान | चित्तूर, आंध्र प्रदेश |
दफ़न | श्रीरंगपट्ट्नम, कर्णाटक |
पूर्वाधिकारी | कृष्णराज वोडेयार द्वितीय |
उत्तराधिकारी | टीपू सुल्तान |
पिता | फतह मुहम्मद |
पत्नी | फख्र-उन-निस्सा |
भाई | शाहबाज़ |
पुत्र | टीपू सुल्तान, करीम |
शाही घर | मैसूर का साम्राज्य |
धर्म | इस्लाम |
हैदर अली द्वारा बोली जाने वाली भाषाएँ | कन्नड़, तमिल, फारसी, तेलुगु, हिंदुस्तानी, मराठी |
मैसूर का शासक | हैदर अली ने मैसूर सल्तनत की स्थापना की और सुल्तान हैदर अली खान बन गये। |
मराठों से पहला युद्ध | हैदर मराठों से हार गये थे। उन्होंने युद्ध को समाप्त करने के लिए 35 लाख रुपए का भुगतान किया था। उन्होंने बड़नोर को छोड़ दिया लेकिन सिरा को वापस हासिल करने में सक्षम रहे। |
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध | प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर सल्तनत के बीच 1767 में शुरूहुआ था। |
होसकोट की लड़ाई | होसकोट की लड़ाई के दौरान, मराठाओं पर हैदर अली ने आक्रमण किया किन्तु मराठा बल जीतने में असफल रहे। |
मराठाओं के साथ दूसरा युद्ध | 1773 में हैदर ने उत्तर में मराठो को हारे गए क्षेत्रों को पुनः हासिल करने के लिए टीपू को भेजा, जबकि वह स्वयं कूर्ग की ओर कूच किया। |
द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध | द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर साम्राज्य के बीच 1780 में शुरू हुआ। |
मृत्यु | पीठ पर एक कैंसर के बढ़ने के कारण 6 दिसंबर 1782 को हैदर का निधन हो गया। |