वल्लभभाई पटेल झवेरभाई भारत के महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक नेताओं में से एक थे। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। माना जाता है कि उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था और अक्सर उन्हें सरदार के रूप में संबोधित किया जाता था।

22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक कर ली थी। हर किसी के लिए वह एक साधारण व्यक्ति से व्यक्ति थे, लेकिन उनमे दृढ़ इच्छा शक्ति थी। वे एक बैरिस्टर बनना चाहते थे। 36 साल की उम्र में अपना स्वप्न पूरा करने के लिए वह इंग्लैंड चले गए और मिडिल टेम्पल इन में शामिल हो गए।उन्होंने सिर्फ 30 महीने में अपने 36 महीने के कोर्स को पूरा किया। भारत लौटने के बाद वे अहमदाबाद के सबसे सफल बैरिस्टर में से एक बन गये।

महात्मा गांधी के काम और दर्शनशास्र से प्रेरित होकर, वह स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने खेड़ा, बारडोली और गुजरात के अन्य भागों के किसानों को एकत्रित किया और ब्रिटिश सरकार बढ़ाये गए कर के भुगतान के विरोध में गुजरात में अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया। वह अपने लक्ष्य में सफल रहे और ब्रिटिश सरकार ने उस वर्ष के लिए राजस्व का भुगतान निलंबित कर दिया। इसके साथ ही वह गुजरात में सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गये। 1920 में वह गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने और 1945 तक इस पद पर कार्य किया।

वे गांधी के असहयोग आंदोलन के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने गुजरात में शराब, अस्पृश्यता और जातीय भेदभाव के खिलाफ काम किया। वे 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद के नगर निगम के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुये थे। जब महात्मा गांधी जेल में थे, उन्होंने 1923 में भारतीय ध्वज की स्थापना पर प्रतिबंध लगाने के ब्रिटिश कानून के खिलाफ नागपुर में सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। 1931 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित किया गया था। वह 1934 और 1937 में पूरे भारत में कांग्रेस के चुनाव अभियान में सबसे आगे थे  और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के आयोजन के दौरान एक प्रमुख नेता रहे। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन से पहले गिरफ्तार कर लिया था और 1945 में रिहा किया गया था।

भारत की आजादी के बाद वह भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री बने। उन्होंने पंजाब और दिल्ली में शरणार्थियों के लिए राहत शिविरों का आयोजन किया। संयुक्त भारत के निर्माण के लिए 565 अर्ध स्वायत्त रियासतों के समेकन के पीछे उन्ही का हाथ था। पटेल महात्मा गांधी के करीबी थे। बाद में महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद उनकी हालत भी बिगड़नी शुरू हो गयी और गांधी की मौत के दो महीने के भीतर ही एक उन्हें दिल का दौरा पड़ा। 15 दिसम्बर 1950 को उनकी मृत्यु हो गई। वह एक साहसी और दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे और सही मायनों में भारत के लौह पुरुष थे।

सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में तथ्य और जानकारी

जन्मतिथि 31 अक्टूबर  1875 (नादियाड में)
पुण्यतिथि दिसम्बर 15, 1950 (बॉम्बे)
पिता झावेरभाई (किसान)
माता लाड बाई
पत्नी झावेरबा
बड़े भाई सोमभाई, नरसीभाई और विठ्लभाई पटेल
छोटे भाई काशीभाई
बहन दहीबा
पुत्र दाह्याभाई
पुत्री मणिबेन
गृह परित्याग ब्यूबोनिक प्लेग के बाद, वह नाडियाड में अकेले रहने लगे  और धीरे-धीरे स्वस्थ हो गये।
पत्नी का कैंसर पटेल की पत्नी कैंसर से ग्रस्त थी और एक प्रमुख  शल्य चिकित्सा के दौरान उनका निधन हो गया।
शुरुआती राजनैतिक कैरियर एक साहसी स्वतंत्रता सेनानी और एक निडर क्रांतिकारी चंद्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को भाबरा, मध्य प्रदेश में हुआ था। काकोरी ट्रेन डकैती, विधानसभा में बम की घटना और लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए लाहौर में सॉन्डर्स की हत्या जैसी घटनाओं में शामिल, वह क्रांतिकारी भारत का चेहरा थे।, पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के पुत्र, चंद्रशेखर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भाबरा में प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश के वाराणसी की संस्कृत पाठशाला में भेजा गया था। एक बहुत ही कम उम्र में वह क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गये। वे महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। जब क्रांतिकारी गतिविधियों लिप्त होने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें पकड़ा, अपनी पहली सजा के रूप में उन्हें 15 कौड़ों की सजा सुनाई गयी। उस समय उनकी आयु महज 15 साल थी। इस घटना के बाद चंद्रशेखर ने आज़ाद की पदवी धारण कर ली और चंद्रशेखर आजाद के रूप में जाने जाने लगे। , चौरी-चौरा की घटना के कारण असहयोग आंदोलन के महात्मा गांधी के निलंबन से मोहभंग, वह एक गरमदलीय में बदल गये। चंद्रशेखर आजाद समाजवाद में विश्वास करते थे; अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का गठन किया। वे भगत सिंह सहित कई अन्य क्रांतिकारियों के लिए एक
सरदार बारडोली में जीत के बाद  पटेल अपने  सहयोगियों और अनुयायियों के बीच सरदार के रूप में लोकप्रिय हो गये। 1931 के कराची सत्र के लिए  पटेल  कांग्रेस के  अध्यक्ष बन गए।
भारत छोड़ो आंदोलन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, पटेल ने  केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं से कांग्रेस की वापसी के  नेहरू के फैसले का समर्थन किया।, 1940 में उन्हें 9 माह के लिए कारावास में डाल दिया था। 1942 में उन्होंने क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
आजादी के बाद एकता 1946 में  कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के दौरान  पटेल ने नेहरू के पक्ष में इस्तीफा दे दिया। पहले गृह मंत्री के रूप में पटेल की भूमिका भारतीय संघ में कई रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण थी। वल्लभभाई पटेल का मानना था कि  भारत का  विभाजन मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में बढ़ती मुस्लिम अलगाववादी आंदोलन को हल कर सकता है। पटेल ने  विभाजन परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व किया और नेहरू के साथ मंत्रियों की भारतीय परिषद का चुनाव किया।
भारत का नेतृत्व पटेल ने  संपादक-मंडल  के अध्यक्ष के रूप में डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर  और संविधान लिखने की प्रक्रिया के लिए अन्य नेताओं की नियुक्ति  करने का  निर्णय लिया।  पटेल उस समिति के अध्यक्ष रहे जो  मौलिक अधिकारों, आदिवासी और बहिष्कृत क्षेत्रों, अल्पसंख्यकों और प्रांतीय संविधानों के लिए जिम्मेदार थी। जब सितंबर 1947 में कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठ शुरू हुयी, पटेल तुरंत कश्मीर में सैन्य टुकड़ी भेजना चाहते थे। किन्तु नेहरू और माउंटबैटन से सहमत होते हुये उन्होंने तब तक  इंतजार किया  जब तक कश्मीर के राजा का भारत में विलय नहीं  हो गया।  पटेल ने  श्रीनगर, बारामूला पास सुरक्षित करने के लिए भारत के सैन्य अभियानों का निरीक्षण किया और सेना आक्रमणकारियों सेकाफी  क्षेत्र वापस ले  लिया गया।
गांधी की मृत्यु और नेहरू के साथ संबंध पटेल गांधी के एक वफादार अनुयायी थे।  नेहरू और पटेल ने  राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस की। नेहरू की  कश्मीर नीति का  पटेल ने विरोध किया था। पटेल के मुताबिक, नेहरू ने गृह मंत्रालय के अधिकारियों को दरकिनार कर  उचित नहीं किया  था।
संस्थान उनके नाम पर काफी संस्थान हैं जैसे कि: सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी, मेरठ विश्वविद्यालय, सरदार वल्लभभाई राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, सूरत , सरदार पटेल विश्वविद्यालय, गुजरात, सरदार पटेल प्रौद्योगिकी संस्थान,  वसाड, सरदार पटेल विद्यालय, नई दिल्ली, सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रौद्योगिकी संस्थान, वसाड
स्मारक सरदार पटेल मेमोरियल ट्रस्ट, सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय स्मारक, अहमदाबाद, सरदार सरोवर बांध, गुजरात, सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा,  अहमदाबाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम, अहमदाबाद
सरदार पटेल पर आधारित  फिल्में अरुण सड़ेकर ने  2000 में कमल हासन की  एक फिल्म ‘हे राम’  में पटेल की भूमिका निभाई थी।, 1993 में, केतन मेहता द्वारा निर्देशित और निर्मित  बायोपिक ‘सरदार’ आयी थी जिसमे  पटेल के रूप में परेश रावल थे। इस बायोपिक में  पटेल के नेतृत्व में भारत के विभाजन और गांधी और नेहरू के साथ पटेल के संबंध का वर्णन है।, 1982 में रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ में  सईद जाफरी ने  पटेल का किरदार निभाया।
साहित्य में वर्णन अपने उपन्यास “द ग्रेट इंडियन नावेल” में शशि थरूर ने विदुर हस्तिनापुरी के चरित्र की प्रस्तुत करने के लिए  व्यंग्य का प्रयोग किया, जो पटेल के साथ ही एक पौराणिक चरित्र विदुर  पर आधारित है।
वृत्तचित्र 1976 में  कांतिलाल राठौड़ के निर्देशन में  सरदार वल्लभ भाई पटेल पर एक वृत्तचित्र का निर्माण  किया गया था।
किताबें पटेल के बारे में अधिक जानने के लिए आप पढ़ सकते हैं  सरदार वल्लभ भाई पटेल का  जीवन और  कार्य,  संपादक परषोत्तमदास सग्गी,  प्राक्कथन राजगोपालाचारी द्वारा, प्रवासी पब्लिशिंग हाउस, बॉम्बे।

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