सिराजुद्दौलाको बंगाल में अंग्रेजों के खिलाफ पहले विद्रोही के रूप में जाना जाता था। उन्होंने पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में स्तिथ का सिम बाजार कारखाने को अंग्रेजों से जीत लिया था। सन् 1757 ईसवी में हुए प्लासी के विश्वासघाती युद्ध में अंग्रेजों को पराजित करने के लिए सिराजुद्दौला को मीर काशिम से भी मदद मिली थी।

सिराजुद्दौला के दादा अलवर्दी खान की मृत्यु हो गई। जब उन्होंने शासन संभाला तो उन्हें ब्रिटिश शासन व ईर्ष्यालु रिश्तेदारों के रूप में दो कट्टरपंथियों से बहुत अधिक मुसीबतों का सामना करना पड़ा। इसके बाद, उनके प्रमुख सेनापति मीरजाफर द्वारा भयंकर युद्ध करते हुए षड्यंत्र करने वालों को पूर्णतया पराजित कर दिया गया। हालांकि इस योजना का पता चलने के बाद मीरजाफर को उनके पद से हटा दिया गया और मीर मदन को नये बक्शी के रूप में नियुक्त कर लिया। सिराज उद-दावला को ब्रिटिश शासन में हस्तक्षेप करना पसंद नहीं आया और उन्होंने फ्रांस के साथ दोस्ती करने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजों पर आक्रमण कर कलकत्ता के सिमबाजार कारखाने पर कब्जा कर लिया। उन्होंने चंदरनगर में स्तिथ ब्रिटिश के फ्रेंच कारखाने पर भी कब्जा कर लिया। जब अंग्रेज लोग कलकत्ता की ओर आक्रमित होने लगे तो सिराज उद-दावला को वहाँ से मुर्शिदाबाद भागना पड़ा। अब तक मीरजाफर को मुर्शिदा बाद में काफी शक्ति हासिल हो चुकी थी।

सिराजुद्दौला ने मीरजाफर से माफी मांग ली और अपनी शक्ति व भरोसा पुन: स्थापित कर लिया। उन्होंने रॉबर्टक्लीव के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना से संपर्क बनाया और दोनो सेना एंप्लासी के युद्ध में जा मिलीं।

मीरजाफर ने ब्रिटिश के साथ संधि की सहमति देकर फिर विश्वासघाती की भूमिका निभाई। युद्ध के मैदान में सिराज उद-दावला की पराजय के साथ मृत्यु हो गयी थी। अंग्रजों ने बंगाल पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लिया तथा अपने अधीनस्थ शासन करने वाले शासक के रूप में मीर जाफर को वहाँ का नवाब बना दिया।

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