25 दिसंबर 1861 को एक धर्मनिष्ठ एवं समर्पित हिंदू परिवार में जन्में पंडित मदन मोहन मालवीय एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक शिक्षाविद और समाज सुधारक थे और एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर भारत उनका उद्देश्य था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर काबिज होने के साथ ही उन्होंने 1931 में पहले गोल मेज सम्मेलन में महात्मा गांधी के साथ भाग लिया था। बनारस में प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की स्थापना की। वह एक समाज सुधारक भी थे और समतामूलक समाज में विश्वास करते हैं। मालवीय एक परोपकारी भी थे, जिन्हें ‘महामना’ भी कहा जाता है। उनका निधन 1946 में हुआ था। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण भारतरत्न से मरणोपरांत 24 दिसंबर 2014 को सम्मानित किया गया।

शुरुआती जीवन

मालवीय का जन्म पंडित बृज नाथ और मूना देवी के घर इलाहाबाद में 25 दिसंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे। वे धार्मिक अवसरों पर भगवत कथा पढ़ा करते थे। उनकी शुरुआती शिक्षा हरदेव के धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में हुई और 1879 में उन्होंने मुईर सेंट्रल कॉलेज से मेट्रिक की। अब इसे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपनी एलएलबी की परीक्षा 1891 में उत्तीर्ण की थी।

मालवीय की शादी कुंदन देवी से 1878 में हुई थी। एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर उन्होंने महसूस किया कि भारत की जनता को शिक्षित करने के लिए अखबार की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने 1907 में हिंदी साप्ताहिक अभ्युदय निकालना शुरू किया। 1915 में इसे उन्होंने एक दैनिक की शक्ल दी। इसके अलावा उन्होंने 1909 में मर्यादा नाम से हिंदी मासिक और लीडर नाम से अंग्रेजी दैनिक भी शुरू किया।

इस शिक्षाविद ने 1915 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) या काशी विश्वविद्यालय की स्थापना की। वे दो राष्ट्रीय साप्ताहिकों हिंदुस्तान (हिंदी) और इंडियन यूनियन (अंग्रेजी) के संस्थापक और संपादक थे। उन्होंने 1924 से 1946 तक द हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन के तौर पर काम किया। वह मूल से राष्ट्रवादी थे और उनका भरोसा था कि विदेशी शासन से आजादी तभी मिल सकती है जब भारतीयों को सही तरीके से शिक्षा मिले।

राजनीतिक करियर

दिसंबर 1886 में, उन्होंने कोलकाता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लिया। इसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी।

1909, 1918, 1930 और 1932 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशनों की अध्यक्षता की। एक मध्यमार्गी नेता के तौर पर उन्होंने 1916 में लखनऊ पैक्ट के तहत मुस्लिमों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था का विरोध किया।

वे 1912 से 1926 तक इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रहे। उन्होंने चौरी चौरा केस में दोषी और फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद 177 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के केस लड़े और 156 लोगों को सफलतापूर्वक रिहा भी कराया।

1928 में, साइमन कमीशन के विरोध में आयोजित प्रदर्शनों में मालवीय सबसे आगे रहे। असहयोग आंदोलन में भी उनकी भूमिका प्रमुख रही। तुष्टिकरण की ब्रिटिश राजनीति का विरोध किया। खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस में रहते हुए भाग लिया। वह 1930 में हुए पहले गोल मेज सम्मेलन में एक प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए। 25 अप्रैल 1932 में उन्हें नागरिक अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए जेल भी भेजा गया था।

पेशेवर करियर

मालवीय ने 1909 में अंग्रेजी दैनिक लीडर शुरू किया। एक संपादक के तौर पर 1909 से 1911 तक उसका नेतृत्व किया। उन्होंने 1910 में एक हिंदी अखबार मर्यादा भी शुरू किया।

मालवीय ने इलाहाबाद लॉ कॉलेज से एलएलबी किया और इलाहाबाद जिला अदालत में प्रैक्टिस शुरू की। बाद में वे हाईकोर्ट में भी वकालत करने लगे। 1913 में उन्होंने राष्ट्रसेवा के लिए वकालत करना बंद कर दिया।

1924 में, उन्होंने राजनेताओं लाला लाजपत राय, एमआर जयकर और कारोबारी जीडी बिड़ला की मदद से अंग्रेजी दैनिक द हिंदुस्तान टाइम्स का अधिग्रहण किया। 1924 से 1946 तक द हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन रहे। उन्होंने 1936 में इसी अखबार का हिंदी संस्करण भी शुरू किया।

समाज कार्य
जाति और सामाजिक दायरों को तोड़ने के लिए गंभीर प्रयास किए।
200 दलितों का एक समूह बनाया और रथ यात्रा के दिन कालाराम मंदिर में प्रवेश की मांग की।
1913 में सेवा समिति के माध्यम से मूल भारतीयों के लिए स्काउटिंग शुरू की
विरासत
सत्यमेव जयते यानी सत्य की ही जीत होती है, जैसे नारे को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हें ही रहता है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की।
उनके सम्मान में, 1961 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमएनआईटी), जयपुर का नामकरण उनके नाम पर किया गया है।

मदन मोहन मालवीय के बारे में तथ्यों पर एक नजरः

जन्म 25 दिसंबर 1861 (इलाहाबाद)
मृत्यु 2 नवंबर 1946 (वाराणसी)
पिता बृजनाथ, संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे, जो आजीविका के लिए भगवत कथा का पाठ करते थे
माता मूना देवी
विवाह 16 वर्ष की उम्र में 1878 में कुंदन देवी से विवाह हुआ
बेटे रमाकांत, राधाकांत, मुकुंद और गोविंद
बेटियां रमा और मालती
सबसे छोटा बेटा उनके सबसे छोटे बेटे पंडित गोविंद मालवीय, संसद के सदस्य रहे और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के कुलपति भी। उनका निधन 1961 में हुआ था।
शिक्षा पंडित मालवीय का दाखिला पंडित हरदेव के धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में पांच साल की उम्र में हुआ था। उन्होंने स्कूल में मकरंद नाम से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उन्होंने 1879 में मुईर सेंट्रल कॉलेज से मैट्रिक की पढ़ाई की और कलकत्ता यूनिवर्सिटी से कला में स्नातक उपाधि प्राप्त की।
जीवनी मालवीयजी, बीजे अक्कड़, प्रकाशकः वोरा, मालवीयानाः अ बायोग्राफी ऑफ पंडित मदन मोहन मालवीय, सयाजी राव गायकवाड़ लाइब्रेरी, संपादकः पृथ्वी नाथ कौल, रोल ऑफ पंडित मदन मोहन मालवीय इन अवर नेशनल लाइफ, चंद्र प्रकाश झा, मॉडर्न पब्लिकेशंस, पंडित मदन मोहन मालवीयः अ सोश्यो-पॉलिटिकल स्टडी, सुंदर लाल गुप्ता, चुग पब्लिकेशंस, स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंसः मदन मोहन मालवीय, श्री राम बख्शी, अनमोल पब्लिकेशंस
कार्य भारतीय संवैधानिक सुधारों पर मोंटागु-चेम्सफोर्ड प्रस्ताव की आलोचना, सीवाय चिंतामणी प्रकाशन, स्पीचेस एंड राइटिंग्स ऑफ पंडित मदन मोहन मालवीय, जीए नटेसन प्रकाशन, 1919

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