18 सितंबर 1950 को जन्मीं, शबाना आजमी भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित अभिनेत्रियों में से एक है। यह प्रसिद्ध कवि कैफी आजमी की बेटी हैं, इन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई), पुणे में एक्टिंग कोर्स करने से पहले, सेंट जेवियर कॉलेज, मुंबई में मनोविज्ञान विषय में स्नातक किया है।
इन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1972 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से की थी और उनकी पहली आर्ट फिल्म ‘फालसा’ थी। 1983 से 1985 के बीच लगातार तीन सालों तक उन्हें अर्थ, खंडहर और पार जैसी फिल्मों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। शबाना आजमी ने समानांतर भारतीय सिनेमा में अपने अभिनय का प्रमाण दिया। दीपा मेहता की 1996 की फिल्म ‘फायर’ में, अपनी भूमिका के लिए लॉस एंजिल्स में आउटफेस्ट में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का जूरी पुरस्कार, 32 वें शिकागो फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का रजत ह्यूगो पुरस्कार मिला था।
शबाना आजमी की कुछ प्रमुख फिल्मों में निशांत, जूनून, सुस्मन, अंर्तनाद, शतरंज के खिलाडी, खंडहर, जीनियस, अमर अकबर अन्थोनी, परवरिश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता हैं है, एक दिन अचानक स्पर्श, दिशा; पार; पिकनिक, सती, अर्थ और गॉड मदर शामिल हैं। शबाना आजमी ने छोटी स्क्रीन पर धारावाहिक ‘अनुपमा’ में भी अभिनय किया है।
शबाना आजमी ने हॉलीवुड की कई फिल्मों में अभिनय किया है, जिसमें जॉन स्लेसिंगर्स मैडमें, सूजात्का, निकोलस कलोतजस बंगाली नाइट, रोनाल्ड जोफेस सिटी ऑफ जॉय, चाइनल फोर इमैक्यलिट कन्सेप्शन, ब्लैक इडावर्डस द सन ऑफ पिंक पैथर और इस्लामी मर्चेंट इन कस्टडी शामिल है।
शबाना आज़मी एक बहुत ही सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वह राज्यसभा का सदस्य रही हैं। उन्होंने सांप्रदायिकता के खिलाफ कई नाटकों और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है। 1989 में, शबाना आजमी ने नई दिल्ली से मेरठ तक सांप्रदायिक सद्भाव के लिए चार दिवसीय यात्रा की।

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