वराहगिरि वेंकट गिरि जिन्हें वी. वी. गिरि के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 10 अगस्त 1894 को मद्रास के पूर्व प्रेसीडेंसी बेरहमपुर (वर्तमान में उड़ीसा में) में तेलगू भाषी राष्ट्रवादी परिवार में हुआ था। ये कांग्रेस के एक प्रमुख नेता थे। गिरि ने 24 अगस्त 1969 से 23 अगस्त 1974 तक भारत के चौथे राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया था।

इन्होंने वर्ष 1913 में कानून का अध्ययन करने के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज डब्लिन में प्रवेश लिया था। वहाँ पर इन्होंने कई प्रसिद्ध व्यक्तियों से परिचित हुए। भारत लौटने के बाद, ये श्रम आंदोलन में सक्रिय भागीदार और महासचिव और अखिल भारतीय रेलकर्मी संघ के अध्यक्ष बने। इन्होंने दो बार अखिल भारतीय व्यापार संघ में कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।

इन्होंने वर्ष 1936 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से आम चुनाव लड़े और चुनाव में जीत हासिल की। वी. वी. गिरि वर्ष 1937 में सी. राजगोपालाचारी द्वारा गठित मद्रास प्रेसीडेंसी में कांग्रेस सरकार के श्रम और उद्योग मंत्री बने। वी. वी. गिरि ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था और जिसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा था।

अंग्रेजों से स्वतंत्रता हासिल करने के बाद, वी. वी. गिरि भारत में सिलोन के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए थे। वर्ष 1957 में वी. वी. गिरि इंडियन सोसाइटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स (आईएसईएलई) की स्थापना के लिए प्रमुख सार्वजनिक व्यक्तित्वों और शिक्षाविदों के दल का नेतृत्व करते थे।

वी. वी. गिरि ने उत्तर प्रदेश (1957-1960), केरल (1960-1965) और मैसूर (1965-1967) के राज्यपाल के रूप में कार्य किया और वर्ष 1967 में जाकिर हुसैन की मौत के बाद भारत के राष्ट्रपति बने।

वी. वी. गिरि एक महान वक्ता और एक विपुल लेखक थे और उन्हें वर्ष 1975 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

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