गयासुद्दीन बलबन गुलाम वंश के सुल्तान और एक बेहद चतुर सैन्य प्रमुख शासक थे। गयासुद्दीन बलबन एक सम्पन्न इलाबरी जन जाति के तुर्क परिवार से थे। लेकिन दुर्भाग्य से, मंगोलों द्वारा गयासुद्दीन को बन्दी बना लिया गया था और बगदाद में ख्वाजा जमाल-उद-दीन के हाथों एक दास के रूप में बेच दिया और उसके बाद उन्हें दिल्ली लाया गया, जहाँ उन्हें इल्तुतमिश ने एक गुलाम के रूप में खरीद लिया। शुरुआत से ही गयासुद्दीन अपने गुरु का अनुग्रह प्राप्त करने वाले बन गए थे और जल्द ही चेहलगन दल (दरबार के चालीस मुख्य सम्मानित व्यक्ति) में से एक बन गए। 1266 की शुरुआत में गयासुद्दीन, नसीर-उद्-दीन महमूद के शासनकाल में धीरे-धीरे सत्ता हासिल करने लगे और नसीर-उद्-दीन की मृत्यु के बाद गयासुद्दीन सुल्तान बने।
एक सुल्तान के रूप में गयासुद्दीन बलबन ने अपने राज्य में बहुत ही कठोरता के साथ शासन किया। नसीर-उद्-दीन के बीस साल के शासनकाल के दौरान, चेहलगन दल (दरबार के चालीस मुख्य सम्मानित व्यक्ति) जो काफी मजबूत हो चुका था और गयासुद्दीन बलबन के सिंहासनारूढ़ होने से वो उनसे ईर्ष्या करने लगा था। इसलिए विद्रोही चेहलगन दलों के पराक्रम को रोकने के लिए गयासुद्दीन ने या तो उन्हें मार डाला या फिर उन्हें यहाँ से दूर भगा दिया। मेवात, जाट और राजपूतों ने भी सत्ता हासिल की और राज्य के खिलाफ विद्रोह किया। गयासुद्दीन ने शाही सेना से उन्हें कुचलने का आदेश भी दिया।
गयासुद्दीन बलबन का यह मानना था कि धरती पर एक राजा ईश्वर का उपासक होता है और जिसे अद्वितीय शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। गयासुद्दीन बलबन का दरबार बहुत ही अनुशासित था और कोई भी व्यक्ति उसके दरबार में मुस्कुराने की हिम्मत नहीं कर सकता था। यहाँ तक कि गयासुद्दीन ने खुफिया विभाग की स्थापना की और देश के विभिन्न हिस्सों में जासूसों को उनके खिलाफ हो रहे षड्यंत्रों की जानकारी इकट्ठा करने के लिए तैनात किया।
गयासुद्दीन बलबन ने अपने शासनकाल के दौरान, विद्रोहियों को बहुत ही कुशलतापूर्वक घेर लिया। गयासुद्दीन ने विद्रोहियों को परास्त करने के लिए दोआब राज्य में अफगान सैनिकों को तैनात किया। रोहिलाखण्ड में गयासुद्दीन ने गांवों को जलाकर और पुरुष आबादी को मारकर विद्रोहियों के अन्दर दहशत पैदा कर दी। गयासुद्दीन बलबन के शासनकाल के आखिरी दिनों में बंगाल के शासक तुगरल बेगने ने उनके शासन के खिलाफ विरोध किया। जैसा कि राजा बूढ़ा हो चुका था और बंगाल दिल्ली से बहुत दूर था, इसलिए उन्होंने विद्रोही सैनिकों से युद्ध करने के लिए अपनी सेना भेजी थी। सेना पराजित हो चुकी थी और जब बलबन द्वारा सेना का नेतृत्व किया गया तब विशेष रूप से गयासुद्दीन बलवन ने पश्चिम बंगाल पर फिर से विजय प्राप्त कर ली थी। इसके बाद गयासुद्दीन बलबन ने अपने बेटे बुगरा ख़ाँ को बंगाल का शासक घोषित कर दिया था। 1279 और 1285 ईस्वी के हमलों में मंगोलों को पराजित किया था, हालांकि, गयासुद्दीन बलबन ने युद्ध में अपने बेटे मोहम्मद को खो दिया था। अपने बेटे की मृत्यु से गयासुद्दीन बहुत ज्यादा टूट चुके थे और इस वजह से गयासुद्दीन बलबन की 1287 में मृत्यु हो गई।
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि गयासुद्दीन बलबन ने इल्तुतमिश के कार्य को आगे बढ़ाया और वह उनके वास्तविक उत्तराधिकारी बने।
गयासुद्दीन बलबन के बारे में तथ्य और जानकारी
जन्म | तुर्कीस्तान (1200 ईस्वी) |
शासन | 1266 से 1287 ईस्वी |
मृत्यु | 1287 ईस्वी |
समाधि | गयासुद्दीन बलबन की समाधि, दिल्ली के मेहरौली, पुरातत्व पार्क में बलबन के कब्र के रूप में प्रसिद्ध है। |
उत्तराधिकारी | मुईजुद्दीन काइकाबाद (पोते) |
बेटे | मोहम्मद खान, नसीरूद्दीन बुगरा खान |
वंश | दिल्ली का मामलुक वंश |
प्रारंभिक जीवन | इलबारी जनजाति के मध्य एशिया के तुर्किक महान के पुत्र थे। एक बच्चे के रूप में, उन्हें मंगोलों द्वारा एक दास के रूप में बेचा गया था। सुल्तान इल्तुतमिश ने 1232 ईस्वी में उसे खरीदा।
उनकी शिक्षा व्यापक थी। जमीनबोस, फारसी संस्कृति, उनके द्वारा पेश की गई थी। वह सुल्तान के लिए व्यक्तिगत परिचर्य के रूप में नियुक्त किया गए थे। उन्हें सुल्तान नसीरूद्दीन महमूद (1246 से 1266) के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था। बाद में उन्होंने महमूद की बेटी से शादी कर ली। |
खुद को सुल्तान घोषित किया | सुल्तान नसीरुद्दीन की मृत्यु के बाद, गयासुद्दीन बलबन खुद को दिल्ली का सुल्तान घोषित करके सिंहासन पर बैठे (1266)। |
सैन्य अभियान | उन्होंने मेयो के खिलाफ सैन्य अभियान का आयोजन किया, जो मेवात के लोग थे। |