इल्तुतमिश गुलाम वंश से संबंधित था और कुतुब-उद्-दीन ऐबक के बाद इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत की बागडोर संभाली। इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत के प्रमुख शासकों में से एक थे और अपने राज्य को देश के एक बड़े हिस्से में विस्तारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। इल्तुतमिश एक तुर्की थे, जो इल्बरी जाति से संबंधित था। कुतुब-उद-दीन-ऐबक, जो उस समय दिल्ली के शासक थे, इल्तुतमिश की बुद्धिमानी और बहादुरी से प्रभावित होकर उन्हें खरीदा था।

धीरे-धीरे, इल्तुतमिश एक उच्च पद पर पहुँच गए तथा ग्वालियर के सूबेदार पद पर आसीन हो गए। इल्तुतमिश की बुद्धिमत्ता, भलाई और उत्कृष्टता से प्रेरित होकर ऐबक ने अपनी बेटी का विवाह इनके साथ कर दिया।

कुतुब-उद-दीन ऐबक की मृत्यु 1210 में हुई तथा चहलगन ने आराम शाह को नया सुल्तान घोषित किया। लेकिन जैसे ही इल्तुतमिश एक कुशल शासक बना, उसने एक वर्ष के भीतर ही आराम शाह को गद्दी से उतारकर खुद गद्दी पर बैठ गया। इल्तुतमिश एक चतुर शासक था। सिंहासन पर आसीन होने के बाद, उसने कई युद्ध लड़े और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।1292 ईस्वी में, उन्हें बगदाद के खलीफा अली मस्तानसिर बिलह से सुल्तान-ए-आजम (ग्रेट सुल्तान) के उपाधि से सम्मानित किया गया और उसने जितने भी क्षेत्र को जीता था उस क्षेत्र का वह पूर्ण शासक माना जाता था। नतीजतन मुस्लिम समुदाय में उनकी प्रतिष्ठा और अधिकार बढ़ गया और इन्होंने खुद की एक अलग पहचान बनाई। अपने शासनकाल के दौरान, इल्तुतमिश ने 1221 ईस्वी में प्रसिद्ध मंगोल चंगेज खान के नेतृत्व में हुए हमले को बहादुरी से रोक दिया था।

इल्तुतमिश कला और विद्या का संरक्षक था। दिल्ली में कुतुबमीनार का निर्माण इल्तुतमिश के पूर्ववर्ती कुतुब-उद-दीन-ऐबक द्वारा शुरू किया गया था। लेकिन इनकी देख-रेख में कुतुबमीनार का निर्माण पूर्ण हुआ था। कहा जाता है कि वास्तुकला का यह अनोखा हिस्सा दिल्ली में ध्वस्त मंदिरों के खंडहरों से बनाया गया है। विशाल स्तंभ का नाम ख्वाजा कुतुब-उद-दीन के नाम पर रखा गया था। यह बगदाद के पास उश के मूल निवासी थे, जो हिंदुस्तान में रहते थे। इल्तुतमिश और अन्य लोगों से प्यार और सम्मान मिला था। उन्होंने उस स्तंभ पर अपने संरक्षक, सुल्तान कुतुब-उद-दीन ऐबक और सुल्तान मुइज़-उद-दीन के नाम अंकित करवाए। अत्यंत धार्मिक होने के नाते सुल्तान ने शानदार कुव्वत-उल- इस्लाम मस्जिद का निर्माण करवाया। 1235  में, उन्होंने मकबरा बनवाया, जो कुव्वत-उल- इस्लाम मस्जिद के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह मकबरा बाहर और अंदर से अपनी जटिल नक्काशी के लिए जाना जाता है। इस मकबरे में प्राचीन हिंदू सभ्यता के कुछ चिन्ह जैसे घंटी और चेन, लड़ियां, चक्र, कमल और हीरे का उपयोग किया गया है।1236 ईस्वी में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई। इल्तुतमिश अपने बेटों की अयोग्यता से काफी परेशान रहता था, और इसलिए उसने अपनी बेटी रजिया सुल्तान को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *