कौटिल्य, चाणक्य या विष्णुगुप्त  भारत के इतिहास में सबसे अधिक सक्षम राजनीतिज्ञ और मंत्री के रूप में जाने जाते है। कौटिल्य एक उत्कृष्ट वर्ग के दार्शनिक और एक नीति-उपदेशक थे एवं भौतिक सफलता के लिए शास्त्रीय संकलन और राजनीति, अर्थशास्त्र का आज भी महत्व है। चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय होने और महान मौर्य राजवंश के आगमन के पीछे कौटिल्य का बहुत ज्यादा प्रभाव था।

तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व कौटिल्य का जन्म एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। कौटिल्य ने तक्षशिला में अध्ययन किया, जो उस समय शिक्षा के प्रसिद्ध केंद्रों में से एक था। कौटिल्य के पिता ऋषि कनक एक शिक्षक थे। कौटिल्य को छोटी सी उम्र से ही राजनीति के क्षेत्र में जाने के लिए उत्साहित किया गया था और अपनी शिक्षा और अनुभव के साथ उन्होंने एक महान रणनीतिकार के रूप में खुद को उभारा।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, कौटिल्य ने सबसे प्रसिद्ध और समृद्ध शहर पाटलिपुत्र को छोड़कर तक्षशिला में शिक्षण का कार्य शुरू किया। उस समय धनानन्द पाटलिपुत्र पर शासन करता था। कौटिल्य, सोंगा या ट्रस्ट के अध्यक्ष बने, जो शाहीदान को संगृहीत करते थे। धनानन्द ने बिनी किसी कारण कौटिल्य को अपमानित करके उनको निष्कासित कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर कौटिल्य ने उनको गद्दी से उतारने का संकल्प किया। इसी मौके पर कौटिल्य की मुलाकात शाही रक्त चंद्रगुप्त से हुई। चंद्रगुप्त ने राजा नंद को हराकर प्रसिद्ध मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। कौटिल्य उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ और एक रणनीतिकार थे। कौटिल्य जासूसी करके शत्रुओं को पराजित करते थे और यह उनकी योजना राज्य में सफल साबित हुई। राजनीति और धर्म के सिवाय, कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी रुचि रखते थे। कौटिल्य ने आदर्श जीवन शैली का अनुसरण करने के लिए ”नीतिशास्त्र” नामक पुस्तक लिखी।

 

 

 

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