नवाब वाजिद अली शाह (वर्ष 1822-1887) उत्तर प्रदेश के राजसी राज्य अवध के नवाब थे। यह अपने पिता नवाब अमजद अली शाह के उत्तराधिकारी होने के साथ-साथ प्रांत के दसवें और अंतिम नवाब थे। मोहम्मद वाजिद अली शाह बहादुर का जन्म 13 फरवरी 1847 को उत्तर प्रदेश लखनऊ में हुआ था। वाजिद अली शाह वर्ष 1847 में अवध के सिंहासन पर बैठने के बाद, अवध के शासक के रूप में नौ साल तक उचित तरीके से शासन किया। वर्ष 1856 में अंग्रेजों ने वाजिद अली शाह के राज्य पर कब्जा कर लिया था। नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता भेज दिया गया था, जहाँ उन्होंने अपने पूरे जीवन को काफी अच्छे से बिताया। हालांकि ललित कलाओं के श्रेय में वाजिद अली शाह ने अपना विशेष योगदान दिया था, जो आज तक उन्हें प्रसिद्ध बनाता है।

नवाब वाजिद अली शाह को एक दयालु, उदार, करुणामय और एक अच्छे शासक के रूप में जाना जाता है, जो राज्य के कार्यों में ज्यादा रुचि रखते थे। हालांकि वाजिद अली शाह, एक अलग तरह के शासक होने के कारण अंग्रेजों द्वारा उनकी छवि को कलंकित किया गया था। अवध उनके शासन के अन्तर्गत एक समृद्ध और धनी राज्य था। प्रशासन में सुधार लाने और न्याय एवं सैन्य मामलों की देख रेख के अलावा, वाजिद अली शाह एक कवि, नाटककार, संगीतकार और नर्तक भी थे, जिनके भव्य संरक्षण के अन्तर्गत ललित कलाएं विकसित हुई थीं।

ललित कलाओं के लिए अपने लक्ष्य का पीछा करते हुए, वाजिद अली शाह ने केसरबाग बारादरी महल परिसर का निर्माण करवाया था। इसमें नृत्य-नाटक, रास, जोगियाजश्न और कथक नृत्य की सजीवता झलकती थी, जिसने लखनऊ को एक आकर्षक सांस्कृतिक केंद्र बनाया था। उनके समय कई प्रतिष्ठित संगीतकारों, कवियों, संगीतकारों और नर्तकियों ने थुमरी में हल्के शास्त्रीय रूप को समृद्ध करने के साथ-साथ कथक नृत्यांतों के भव्य पुनरुद्धार और हिंदुस्तानी रंगमंच की लोकप्रियता में वृद्धि की। कलकत्ता जाने के बाद, नवाब वाजिद अली शाह ने अपनी जन्म भूमि लखनऊ की भव्यता को देखने की अभिलाषा कर रहे थे। हुगली नदी के तट पर स्थित मटियाबुर्ज से निर्वासित किए गए वाजिद अली शाह ने एक बार फिर अपनी संपत्ति का इस्तेमाल अपनी पहली आकर्षक जीवन शैली को पुनः प्राप्त करने के लिए किया था। मटियाबुर्ज के दरबार की खूबसूरत दीवारें वहाँ के संगीत सम्मेलनों की साक्षी हैं और अक्सर संगीत प्रेमी यहाँ भ्रमण करने के लिए आते हैं। जिसमें कलकत्ता के संगीत प्रेमी अघोरनाथ चक्रवर्ती, सज्जाद मोहम्मद, धीरेन्द्रनाथ बोस, श्यामलाल गोस्वामी और राय चन्द्र बोरल आदि शामिल हैं।

वाजिद अली शाह ने अनेक कविताओं, गद्य, राग, नाटक और गजलों में महारथ हासिल किया था। हालांकि उनकी प्रसिद्ध रचनाओं जैसे भैरवी थुमरी ‘बाबुल मोरा छूटो जाए’ जिसे कई प्रमुख गायकों द्वारा गाया गया है, उनके राग (जोगी, जुही, शाह-पसंद आदि), नाट्य कविताएं (दर्या-ए-तश्श्क, अफ्सेन-ए-इसाक, बहारे-ए-उलफत) और गजल (दीवाने-अख्तर, हुसैने-ए-अख्तर) हैं और वाजिद अली के इन महान कार्यों ने कलाकारों और नाटक कारों को प्रेरित किया है। नवाब वाजिद अली शाह कला के प्रति अपने जुनून को लेकर काफी महत्वाकांक्षी थे और शिया कानून का लाभ उठाकर 359 बार विवाह किया। भारत में नवाब के विशिष्ट योगदान के अलावा, उनकी पत्नी बेगम हजरत महल को एक महान भारतीय स्वतंत्रता-सेनानी के रूप में जाना जाता है। जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (वर्ष 1857-58) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

नवाब वाजिद अली शाह का इन्तकाल 1 सितंबर 1887 को भारत के कोलकाता में हुआ था, जबकि उनका मकबरा मटियाबुर्ज के इमामबाड़ा सिबटेनाबाद में स्थित है। महान इतिहासकारों जैसे डॉ. जी डी भटनागर और रणबीर सिंह के विस्तृत कार्य और आत्मकथाएं, हमें नवाब के जीवन के परिप्रेक्ष्यअंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *