मीर कासिम को सन् 1760 में बंगाल के नवाब के रूप में उनके ससुर मीर जाफर के स्थान पर नियुक्त किया गया था। हालांकि कासिम को अंग्रेजों द्वारा प्रतिष्ठापित किया गया था लेकिन महत्वाकांक्षी और स्वतंत्रता प्रिय होने के कारण उन्होंने उनके खिलाफ ही विद्रोह कर दिया।

जब कासिम सत्ता में आए तो उन्हें पूर्वनवाब द्वारा लिए गए भारी कर्ज का भुगतान करना पड़ा। तब उन्होंने सोचा कि कंपनी का भुगतान उन्होंने पर्याप्त रूप से किया है, इसलिए बंगाल पर शासन करने का अधिकार भी केवल उन्हीं को दिया जाना चाहिए। उन्होंने स्वयं को शासन में बनाये रखने के लिए मत्तवपूर्ण प्रशासन-संबंधी उपायों के साथ अनुशासित सैन्यदल और पर्याप्त कोष की युक्ति अपनायी। उन्होंने अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर में स्थानांतरित कर दिया। उन्होंने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए भूमि राजस्व के  ढांचे में सुधार किया।

उन्होंने इस तथ्य का भी विरोध किया था कि अंग्रेज न्यूनतम कर का भुगतान करके व्यापार करते हैं जबकि स्थानीय व्यापारियों को भारी धनराशि का भुगतान करना पड़ता है। उन्होंने समानता लाने के लिए सभी सीमा शुल्क करों को समाप्त कर दिया था। इस प्रकार धीरे-धीरे, कासिम और कंपनी (अंग्रेज) के बीच अनबन शुरू हो गई जिसके चलते उनके मध्य युद्ध सुनिश्चित हो गया।

अंग्रेजों ने कासिम की सेना को हरा दिया जिसके कारण उन्हें औध के रास्ते से भागना पड़ा। कासिम जो एक उदार भावना के व्यक्ति थे इसलिए उन्होंने औध के नवाब शुजाउद्दौला और अस्थायी बादशाह शाहआलम द्वितीय को समर्थन देना सुनिश्चित किया।

इसके बाद संयुक्त बल के साथ उन्होंने अंग्रेजों पर हमला किया लेकिन बक्सर के युद्ध में पराजित हो गए। उनकी हार के बाद अंग्रेजों ने स्वयं को पश्चिम बंगाल में एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित कर लिया। युद्ध के बाद, कासिम दिल्ली में अपनी म्रत्यु से पहले छुप गए थे जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।

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