31 जनवरी 1923 को जन्में मेजर सोमनाथ शर्मा को 22 फरवरी 1942 को कुमाऊँ  रेजिमेंट में अधिकृत किया गया था। मेजर सोमनाथ शर्मा परम वीर चक्र पुरुस्कार के पहले प्राप्तकर्ता थे जो इन्हें 22 अक्टूबर 1947 को प्रारंभ होने वाले जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तानी आक्रमण में अनुकरणीय साहस और बहादुरी के लिए दिया गया था।

मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन कीडी कंपनी का हिस्सा थे, जिसे 31 अक्टूबर को श्रीनगर में ले जाया गया था। मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपनी कम्पनी के साथ जाने के लिए कहा लेकिन वे उस समय घायल अवस्था में थे क्योंकि हॉकी खेलने के दौरान उन्हें फ्रैक्चर का सामना करना पड़ा था जिसकी बजह से उन्हें आराम करने की सलाह दी गयी थी। इसके बाद दुश्मन ने गोरिल्ला रणनीति कोअपनाया था लेकिन भारतीय सैनिकों द्वारा मजबूत प्रतिरोध किया गया जिससे वे भाग गए थे।

3 नवंबर को जब उनकी कंपनी पर पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी की जा रही थी तो उस समय मेजर सोमनाथ शर्मा पाकिस्तान खतरे को लेकर हो रहे आक्रमण के खिलाफ भारत का नेतृत्व कर रहे थे। दुश्मन बहुत अधिक संख्या में थे,  लेकिन मेजर सोमनाथ शर्मा आगे बढ़े और उनको भगाने के लिए अपनी कंपनी को पीछे न हटने के निर्देश दिए। कंपनी लंबे समय तक दुश्मनों के खिलाफ अड़ी रहीउन्होंने दुश्मन को एक लंबे संकटकाल में वहीं पर रोंके रखा, जिससे श्रीनगर पर दुश्मनों को आगे बढ़ने से रोकने में सहायता मिली। मेजर सोमनाथ शर्मा ने युद्ध में अपने जीवन को त्याग दिया लेकिन दुश्मन से एक इंच नहीं दबे और इस प्रकार भारतीय सैन्य इतिहास में एक दुर्लभ उदाहरण स्थापित किया।

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