पंडित बालकृष्ण शर्मा एक भारतीय कवि, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ थे। बालकृष्ण शर्मा महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के आदर्शवाद से अत्यधिक प्रभावित थे। बालकृष्ण शर्मा का जन्म 8 दिसंबर 1897 में हुआ था। उन्होंने शाजापुर से मिडिल स्कूल परीक्षा पास की और 1917 में उज्जैन से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। कानपुर में, बालकृष्ण शर्मा ने अपने जान-पहचान के माखनलाल चतुर्वेदी और पंडित गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ अपने भविष्य के कार्यक्षेत्र को बढ़ाया।

पंडित बालकृष्ण शर्मा के राजनीतिक कैरियर की शुरूआत तब हुई जब वह क्रिस्ट चर्च कॉलेज कानपुर में बी.ए. अंतिम वर्ष के छात्र थे। बालकृष्ण शर्मा  महात्मा गांधी के नेतृत्व में ‘असहयोग आंदोलन’ का हिस्सा बने थे। वर्ष 1921 में पंडित बालकृष्ण ने आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए महाविद्यालय को छोड़ दिया, वर्ष 1921 से 1944 की अवधि के दौरान उन्हें छः बार बन्दी बनाया गया था।

बालकृष्ण शर्मा कानपुर निर्वाचन क्षेत्र के पहले आम लोकसभा चुनाव के लिए चुने गए थे। बालकृष्ण शर्मा वर्ष 1957 से,  अपने पूरे जीवनकाल तक  राज्य सभा के सदस्य रहे। बालकृष्ण शर्मा को उनके वाक्पटु कौशल के लिए कानपुर के शेर के रूप में जाना जाता है।  बालकृष्ण शर्मा ने राजभाषा आयोग के सदस्य के रूप में भी कार्य किया और कई देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। बालकृष्ण शर्मा ने कानपुर सिटी में कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद का पदभार संभाला था।

पंडित गणेश शंकर विद्यार्थी की मृत्यु के बाद पंडित बालकृष्ण शर्मा “प्रताप” पत्रिका के संपादक बने। एक देशभक्त होने के अलावा, बालकृष्ण शर्मा की प्रसिद्ध साहित्यकारों में गणना की जाती थी। बालकृष्ण शर्मा के कुछ उल्लेखनीय कार्यों में ‘कुमकुम, ‘रश्मिरेखा, अपलक, क्वासि, विनोबा स्तवन, उर्मिला, हम विशपाई जनम के आदि शामिल हैं। बालकृष्ण शर्मा को साहित्यिक योगदान के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत के इस महान व्यक्ति का 29 अप्रैल 1960 में निधन हो गया।

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