राणा सांगा की जीवनी

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राणा सांगा या महाराणा संग्राम सिंह, मध्ययकालीन भारत के अंतिम शासक थे, राणा सांगा आक्रमणकारियों का डटकर समाना किया और विदेशियों के खिलाफ लड़ने के लिए कई राज्यों के राजपूतों को एकजुट करने में सक्षम किया। सही मायने में, एक सच्चे राजपूत, एक वीर योद्धा और एक राजा के रूप में अपनी शौर्य वीरता और उदारता के लिए प्रतीक है। राणा सांगा बाबर से युद्ध हार गए लेकिन उनकी वीरता ने अन्य लोगों को काफी प्रेरित किया।

राणा सांगा, राणा कुंभा को हराने के बाद मेवाड़ के राजा बनने में सफल हुए। राणा सांगा ने दिल्ली, गुजरात और मालवा के मुस्लिम शासकों द्वारा बार-बार किए जाने वाले हमलों पर अपनी वीरता दिखाकर राज्य का बचाव किया। राणा सांगा उस समय के हिंदू राजाओं में सबसे शक्तिशाली राजा थे। इनके शासनकाल के दौरान, मेवाड़ राज्य ने समृद्धि के शिखर को छुआ और राणा सांगा ने एक अच्छे राजा के रूप में अपने सुरक्षित साम्राज्य का विकास किया।

राणा सांगा एक ऐसे अदम्य साहसी व्यक्ति थे, जो एक हाथ, एक आंख और कई अन्य अंगों में गंभीर चोट होने के बावजूद भी अपना साहस नहीं खोते थे। राणा सांगा की शिष्टता तब परिलक्षित हुई, जब उन्होंने माण्डू के सुल्तान महमूद के साथ उदारता का व्यवहार किया। राणा सांगा ने महमूद को युद्ध में पराजित करके एक कैदी के रूप में कैद कर लिया, लेकिन अपनी उदारता को दिखाते हुए राणा सांगा ने उनका राज्य पुनः वापिस कर दिया।

राणा सांगा ने 1527 में राजपूतों को एकजुट किया और बाबर के साथ खानवा के युद्ध में उनका डटकर सामना किया। उस युद्ध में राणा सांगा की सेना को जीत हासिल हो गई थी, लेकिन दुर्भाग्यवश उस युद्ध में राणा सांगा गंभीर रूप से घायल हो गए और अंत में वह युद्ध हार गए। उस युद्ध के बाद राणा सांगा की मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी दृढ़ता और साहस ने राणा प्रताप सहित कई अन्य लोगों को प्रेरित किया।

 

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