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रजिया सुल्तान दक्षिण एशिया की पहली महिला मुस्लिम शासक और इल्तुतमिश की बेटी थी। वह प्रतिभाशाली, बुद्धिमान, बहादुर, उत्कृष्ट प्रशासक और एक महान योद्धा थी। रजिया सुल्तान का जन्म सन् 1205 में हुआ था। वह तुर्की सेल्जुक वंशज की थी। उस समय की मुस्लिम राजकुमारियों के रूप में, उन्होंने लड़ाई करने में प्रशिक्षण प्राप्त किया, साथ ही सेनाओं का नेतृत्व किया और राज्यों का प्रशासन करना भी सीखा। एक कुशल शासक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे और अपने भाइयों की तुलना में वह शासक बनने में अधिक सक्षम थीं इसलिए इल्तुतमिश ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में रजिया सुल्तान को चुना। जब भी इल्तुतमिश राजधानी छोड़ता था, तो वह रजिया सुल्तान को एक शासक के रूप में जिम्मेदारियों का निर्वहन करने की शक्ति प्रदान करता था। लेकिन इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र रुकुन- उद- दीन फिरोज ने सिंहासन पर कब्जा कर लिया। उसने सात महीने तक दिल्ली पर शासन किया। सन् 1236 में, रजिया सुल्तान ने दिल्ली के लोगों के समर्थन से अपने भाई को हराकर दिल्ली सिंहासन की बागडोर संभाली।

एक कुशल शासक होने के नाते रजिया सुल्तान ने अपने क्षेत्र में पूर्ण कानून और व्यवस्था की स्थापना की। उन्होंने व्यापार को प्रोत्साहन देकर, सड़कों का निर्माण, कुओं की खुदाई और स्कूलों और पुस्तकालयों का निर्माण करके देश के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने की कोशिश की। यहाँ तक कि उन्होंने कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी योगदान दिया और कवि, चित्रकारों एंव संगीतकारों को प्रोत्साहित किया।

रजिया सुल्तान ने कठोर शासन करने के लिए, अपने कपड़े और गहने त्याग दिए और मर्दाना पहनावे को अपना लिया फिर चाहे वह उनका दरबार हो या युद्ध का मैदान। उन्होंने जलाल-उद-दीन याकूत नामक इथियोपियन (हाब्सी) दास पर भरोसा किया और उसको अपना निजी परिचारक बना लिया, इस प्रकार शक्तिशाली तुर्की अमीरों के एकाधिकार को चुनौती दी। तुर्की रईसों ने एक महिला को अपने शासक के रूप में स्वीकार करने के अनिच्छुक थे, खासकर जब रजिया ने उनकी शक्ति को चुनौती दी थी। उन्होंने रजिया के खिलाफ साजिश रची, सन् 1239 में जब वह लाहौर के तुर्की गवर्नर द्वारा विद्रोह को रोकने के लिए कोशिश कर रही थी, तो तुर्की के रईसों ने दिल्ली में उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठाया और उसे राज गद्दी से उतारकर उनके भाई बहराम को दिल्ली का शासक बना दिया।

सिंहासन को पुनः प्राप्त करने के लिए रजिया सुल्ताना ने भटिंडा के सेनापति, मलिक अल्तुनिया से शादी कर ली और अपने पति के साथ दिल्ली पर चढ़ाई करने के लिए बढ़ी, लेकिन 13 अक्टूबर 1240 को, बहराम ने दुर्भाग्यपूर्ण युगल (रजिया और मलिक अल्तुनिया) की हत्या कर दी।

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