सुखदेव (वर्ष 1907-1931) एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह उन महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इनका पूरा नाम सुखदेव थापर है और इनका जन्म 15 मई 1907 को हुआ था। इनका पैतृक घर भारत के लुधियाना शहर, नाघरा मोहल्ला, पंजाब में है। इनके पिता का नाम राम लाल था। अपने बचपन के दिनों से, सुखदेव ने उन क्रूर अत्याचारों को देखा था, जो शाही ब्रिटिश सरकार ने भारत पर किए थे, जिसने उन्हें क्रांतिकारियों से मिलने के लिए बाध्य करदिया और उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन के बंधनों से मुक्त करने का प्रण किया।

सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के सदस्य थे और उन्होंने पंजाब व उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों के क्रांतिकारी समूहों को संगठित किया। एक देश भक्त नेता सुखदेव लाहौर नेशनल कॉलेज में युवाओं को शिक्षित करने के लिए गए और वहाँ उन्हें भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में अत्यन्त प्रेरणा मिली। उन्होंने अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारियों के साथ लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ की शुरुआत की, जो विभिन्न गतिविधियों में शामिल एक संगठन था। इन्होंने मुख्य रूप से युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने और सांप्रदायिकता को खत्म करने के लिए प्रेरित किया था।

सुखदेव ने खुद कई क्रांतिकारी गतिविधियों जैसे वर्ष 1929 में ‘जेल की भूख हड़ताल’ में सक्रिय भूमिका निभाई थी। लाहौर षडयंत्र के मामले (18 दिसंबर 1928) में उनके साहसी हमले के लिए, उन्हें हमेशा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में याद किया जाएगा, क्योंकि उसमें इन्होंने ब्रिटिश सरकार की नींव को हिलाकर रख दिया था। सुखदेव, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु साथी थे, जिन्होंने मिलकर वर्ष 1928 में पुलिस उप-अधीक्षक जे. पी. सॉन्डर्स की हत्या की थी, इस प्रकार के षडयंत्र को बनाकर पुलिस उप-अधीक्षक को मारने का कारण वरिष्ठ नेता, लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना था। नई दिल्ली (8 अप्रैल 1929) की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट करने के कारण, सुखदेव और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें इस अपराध का दोषी ठहराया गया तथा फैसले के रूप में इन्हें मौत की सजा सुनाई गई।

23 मार्च 1931 को, तीन बहादुर क्रांतिकारियों, भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरू को फाँसी दी गई, जबकि उनके शरीर का सतलज नदी के किनारे गुप्त रूप से अंतिम संस्कार कर दिया गया। सुखदेव थापर सिर्फ 24 वर्ष के थे, जब वह अपने देश के लिए शहीद हो गए थे। हालांकि, उन्हें हमेशा भारत की आजादी के लिए अपने साहस, देशभक्ति और जीवन त्याग के लिए याद किया जाएगा।

सुखदेव के बारे में जानने योग्य तथ्य और सूचना

पूरा नाम सुखदेव थापर
जन्म 15 मई 1907 लुधियाना, पंजाब में
मृत्यु 23 मार्च 1931 लाहौर, पंजाब, ब्रिटिश भारत में
पिता श्री रामलाल
माता श्रीमती रल्लीदेवी
भाई माथुरदास थापर
भतीजा भारत भूषण थापर
धर्म हिन्दू धर्म
संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
राजनैतिक आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन
इनके बारे में सुखदेव, एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) सुखदेव थापर एक समर्पित नेता थे। वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बने। उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में युवा पीढ़ी को शिक्षित करने का भी काम किया।
जेल की भूख हड़ताल सुखदेव ने कई क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। सुखदेव द्वारा वर्ष 1929 में जेल में की जाने भूख हड़ताल उनमें से प्रमुख थी।
लाहौर षड़यंत्र 18 दिसंबर 1928 के लाहौर षड़यंत्र के मामले में इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए, उन्हें आज भी याद किया जाता है।
महात्मा गांधी को पत्र फाँसी लगने से कुछ दिन पहले सुखदेव ने गांधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि  “लाहौर षड्यंत्र के तीन कैदियों को मौत की सजा सुनाई गई है”। उन्होंने यह भी लिखा, “[…] देश में उनको अपराधी ठहराने से इतना बदलाव नहीं आएगा, जितना उनके द्वारा फाँसी दिए जाने पर आएगा।”
विशेष अधिकरण 7 अक्टूबर 1930 को 300 पृष्ठों के फैसले में सभी सक्ष्यों के आधार पर न्यायालय द्वारा सान्डर्स हत्याकांड के मामले के लिए सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दी गई थी।
फाँसी का दंड लाहौर षडयंत्र मामले में, भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को मौत की सजा दी गई थी। अदालत ने आदेश दिया कि तीनों को 24 मार्च 1931 को फाँसी दी जाएगी। पंजाब के गृह सचिव ने 17 मार्च 1931 को फाँसी  की तारीख को बदल 23 मार्च 1931 कर दिया था।
विशेष न्यायाधिकरण की आलोचना न्यायाधिकरण द्वारा निर्णय की राष्ट्रव्यापी आलोचना की गई, क्योंकि ब्रिटिश सरकार की इच्छा के अनुसार कानून और व्यवस्था का आयोजन किया जा रहा था। पहली बार क्रियान्वयन शाम में हुआ। इसके अलावा, अधिकारियों ने आरोपी के परिवार को फाँसी से पहले मिलने भी नहीं दिया और न ही उन्होंने तीनों के शरीर को अपने रिश्तेदारों को अपने आखिरी अनुष्ठान करने के लिए सौंपा। बल्कि शरीर का निपटारा टुकड़ों में काटकर और मिट्टी के तेल के साथ जलाकर किया। बाद में शेष अवशेष सतलुज नदी में फेंक दिया था।
सम्मान 23 मार्च देश भर में उन महान नायकों के बलिदान के सम्मान में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 

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